शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

वह प्रेम निभाया करता था....


Flower in Rain

एक कली जब खिलने को थी,
तब से ही निहारा करता था।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
वह प्रेम निभाया करता था ।

दीवाना सा वह भ्रमर, पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

कली खिली फिर फूल बनी,
खुशबू महकी फ़िज़ा में मिली।
फ़िज़ा में महकी खुशबू से ही
कुछ खुशियाँ चुराया करता था।
वह दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
बस प्रेम निभाया करता था

फूल की सुन्दरता को देख
सारे चमन में बहार आयी।
आते जाते हर मन को ,
महक थी इसकी अति भायी।
जाने कितनी बुरी नजर से
इसको बचाया करता था ।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा, 
वह प्रहरी बन जाया करता था ।

फूल ने समझा प्रेम भ्रमर का,
चाहा कि अब वो करीब आये।
हाथ मेरा वो थाम ले आकर,
प्रीत अमर वो कर जाये।
डरता था छूकर बिखर न जाये,
बस  दिल में बसाया करता था ।
दीवाना सा वह भ्रमर पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

एक वनमाली हक से आकर,
फूल उठा कर चला गया ।
उसके बहारों भरे चमन में,
काँटे बिछाकर चला गया ।
तब विरही मन यादों के सहारे,
जीवन बिताया करता था ।
दूर वहीं क्षितिज में खड़ा,
वह आँसू बहाया करता था ।

दीवाना था वह भ्रमर पुष्प पे,
जान लुटाया करता था.......
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा,
बस प्रेम निभाया करता था।

                 चित्र; साभार गूगल से...

15 टिप्‍पणियां:

Sudha Devrani ने कहा…

हदयतल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी!मेरी रचना को विशेषांक मे शामिल करने हेतु...।
अभिभूत हूँ आपके स्नेह एवं सहयोग हेतु पुनः आत्मीय आभार आपका।

Sweta sinha ने कहा…

सुधा जी आपकी पुरानी रचना पढ़कर आनंद आ गया। सार्थक संदेश देती रही सुंदर रचना।
सादर।

Sudha Devrani ने कहा…

प्रेरक एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनुराधा जी!

अनीता सैनी ने कहा…

वाह! प्रेम और समर्पण का सार्थक सृजन आदरणीया दीदी.
उत्क़ष्ट अभिव्यक्ति.
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना चयन करने के लिए।

मन की वीणा ने कहा…

मूक समर्पित प्रेम कैसे बस यादों का सफर बन कर रह जाता है।
अनुपम भाव सौंदर्य।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!

रेणु ने कहा…

पुष्प और भ्रमर के निष्कलुष प्रेम पर बहुत ही मर्मांतक शब्द चित्र प्रिय सुधा जी। वनमाली के हाथों में पड़ विभिन्न अनजान पथों की ओर अग्रसर हो जाना एक सुन्दर पुष्प की नियती है।भ्रमर बस उसके लिए तरस कर रह जाने के लिए पैदा हुआ है।इस मार्मिक भावाभिव्यक्ति के लिए आभार और धन्यवाद बधाई स्वीकार करें।

Sudha Devrani ने कहा…

सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से आभार जवं धन्यवाद रेणु जी!

Shreedhar ने कहा…

वास्तविक अंतर्स्थिति ज़ाहिर करती , भावपूर्ण और सार्थक शृंगारमय रचना लिखी है आपने सुधा जी आपने.. सादर नमस्कार..🙏🙏

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.श्रीधर जी !आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।

बेनामी ने कहा…

Sabka apna apna sach hota hai. Parantu birle log hi apne sach ko abhivyakt kar pate hain. Jab kisi ki abhivyakti apni bhawnaon ki mirror image prateet ho, tab hriday ko kya lagta hai, hriday to bol nahi sakta.......

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