बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

वह प्रेम निभाया करता था....


Flower in Rain

एक कली जब खिलने को थी,
तब से ही निहारा करता था।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
वह प्रेम निभाया करता था ।

दीवाना सा वह भ्रमर, पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

कली खिली फिर फूल बनी,
खुशबू महकी फ़िज़ा में मिली।
फ़िज़ा में महकी खुशबू से ही
कुछ खुशियाँ चुराया करता था।
वह दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
बस प्रेम निभाया करता था

फूल की सुन्दरता को देख
सारे चमन में बहार आयी।
आते जाते हर मन को ,
महक थी इसकी अति भायी।
जाने कितनी बुरी नजर से
इसको बचाया करता था ।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा, 
वह प्रहरी बन जाया करता था ।

फूल ने समझा प्रेम भ्रमर का,
चाहा कि अब वो करीब आये।
हाथ मेरा वो थाम ले आकर,
प्रीत अमर वो कर जाये।
डरता था छूकर बिखर न जाये,
बस  दिल में बसाया करता था ।
दीवाना सा वह भ्रमर पुष्प पे
जान लुटाया करता था ।

एक वनमाली हक से आकर,
फूल उठा कर चला गया ।
उसके बहारों भरे चमन में,
काँटे बिछाकर चला गया ।
तब विरही मन यादों के सहारे,
जीवन बिताया करता था ।
दूर वहीं क्षितिज में खड़ा,
वह आँसू बहाया करता था ।

दीवाना था वह भ्रमर पुष्प पे,
जान लुटाया करता था.......
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा,
बस प्रेम निभाया करता था।

                 चित्र; साभार गूगल से...

टिप्पणियाँ

  1. हदयतल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी!मेरी रचना को विशेषांक मे शामिल करने हेतु...।
    अभिभूत हूँ आपके स्नेह एवं सहयोग हेतु पुनः आत्मीय आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वास्तविक अंतर्स्थिति ज़ाहिर करती , भावपूर्ण और सार्थक शृंगारमय रचना लिखी है आपने सुधा जी आपने.. सादर नमस्कार..🙏🙏

      हटाएं
    2. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.श्रीधर जी !आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।

      हटाएं
  2. सुधा जी आपकी पुरानी रचना पढ़कर आनंद आ गया। सार्थक संदेश देती रही सुंदर रचना।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रेरक एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

      हटाएं
  3. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनुराधा जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह! प्रेम और समर्पण का सार्थक सृजन आदरणीया दीदी.
    उत्क़ष्ट अभिव्यक्ति.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !

      हटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना चयन करने के लिए।

      हटाएं
  6. मूक समर्पित प्रेम कैसे बस यादों का सफर बन कर रह जाता है।
    अनुपम भाव सौंदर्य।

    जवाब देंहटाएं
  7. पुष्प और भ्रमर के निष्कलुष प्रेम पर बहुत ही मर्मांतक शब्द चित्र प्रिय सुधा जी। वनमाली के हाथों में पड़ विभिन्न अनजान पथों की ओर अग्रसर हो जाना एक सुन्दर पुष्प की नियती है।भ्रमर बस उसके लिए तरस कर रह जाने के लिए पैदा हुआ है।इस मार्मिक भावाभिव्यक्ति के लिए आभार और धन्यवाद बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से आभार जवं धन्यवाद रेणु जी!

      हटाएं
  8. Sabka apna apna sach hota hai. Parantu birle log hi apne sach ko abhivyakt kar pate hain. Jab kisi ki abhivyakti apni bhawnaon ki mirror image prateet ho, tab hriday ko kya lagta hai, hriday to bol nahi sakta.......

    जवाब देंहटाएं

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