आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
बर्ष कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता,,,कुछ अच्छा बीते तो मन खुश वरना मन खट्टा कर निकल जाता है,,,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
नव वर्ष मंगलमय हो आपका,,,
सुधा जी, अभी पूरा साल कहाँ बीता है?
जवाब देंहटाएंअभी भी इस साल के बीतने में दो दिन से ज़्यादा का वक़्त बाक़ी है.
हम इस साल के बाक़ी के दिन अगर आपकी इस ख़ूबसूरत कविता का आनंद लेते हुए बिताएंगे तो आने वाला हमारा साल बड़ा ख़ुशगवार बीतेगा.
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन सुधा जी
हटाएंमीना शर्मा
behad khubsurat
जवाब देंहटाएंMore Hindi poetry - https://www.youtube.com/watch?v=OChK_3FHBKQ
वाह! सखी ,बेहतरीन सृजन!
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंअनवरत चल रहे पलों के खट्टी-मीठी स्मृतियों से गूँथा जीवन बस रीत ही रहा है। दार्शनिक, व्यवहारिक ,यथार्थ वादी भावों के मिश्रण से बनी कविता मानों संपूर्ण वर्ष का लेखा जोखा कह रही।
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष की सुभकामनाएं | सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ सुधा जी ! जीवन की आपाधापी में गुजरते समय का लाजवाब वर्णन करती बहुत सुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएंसचमुच २०२4 तो ऐसे ही पीता ... पल भर में ...
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