सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

ज्ञान के भण्डार गुरुवर

 ख्याति लब्ध पत्रिका 'अनुभूति' के 'अपनी पाठशाला' विशेषांक में मेरी रचना 'ज्ञान के भण्डार गुरुवर ' प्रकाशित करने हेतु आ.पूर्णिमा वर्मन दीदी का हार्दिक आभार ।


Web page

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।

डगमगाती नाव जीवन,

 खे रहे गुरु के सहारे ।


गुरु की पारस दृष्टि से ही , 

मन ये कुंदन सा निखरता ।

कोरा कागज सा ये जीवन, 

गुरु की गुरुता से महकता ।

देवसम गुरुदेव को हम, 

दण्डवत कर, पग-पखारें  ।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


गुरु कृपा से ही तो हमने ,

नव ग्रहों का सार जाना ।

भू के अंतस को भी समझा, 

व्योम का विस्तार जाना ।

अनगिनत महिमा गुरु की, 

पा कृपा, जीवन सँवारें ।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


तन में मन और मन से तन, 

के गूढ़ को बस गुरु ही जाने ।

बुद्धि के बल मन को साधें, 

चित्त चेतन के सयाने ।

अथक श्रम से रोपते ,

अध्यात्म शिष्योद्यान सारे।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


पढ़िए पत्रिका 'अनुभूति' में प्रकाशित मेरी एक और रचना

● बने पकौड़े गरम-गरम




टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह... बहुत सुंदर,गुरूजनों के सम्मान में लिखी आपकी रचना मात्र शब्द नहीं हैं वर्तमान समय में छात्रों के लिए सकारात्मक संदेश है।
    बहुत बधाई दी पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं के लिए। ऐसे ही सुंदर लिखिए और हमें प्रेरित करते रहिए।
    सस्नेह. प्रणाम दी।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय श्वेता ! सृजन को सार्थकता प्रदान करती टिप्पणी के साथ रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

      हटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह सुधा जी...क्या खूब ल‍िखा ..अद्भुत

    जवाब देंहटाएं
  4. गुरु जनों के प्रति समर्पित भाव ... कमाल की रचना और बहुत बधाई इस प्रकाशन की ...

    जवाब देंहटाएं
  5. गुरुजनों के सम्मान में हृदय तल को स्पर्श करते श्रद्धापूरित भाव लिए मनविभोर करती लाजवाब रचना सुधा जी ! अनुभूति पत्रिका में सृजन प्रकाशित होने पर आपको हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

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