बने पकौड़े गरम-गरम
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ख्यातिलब्ध पत्रिका 'अनुभूति' के 'गरम पकौड़े' विशेषाँक में मेरे गीत 'बने पकौड़े गरम-गरम' को सम्मिलित करने हेतु 'आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी' का हार्दिक आभार ।
घुमड़-घुमड़ कर घिरी घटाएं
बिजली चमकी चम चम चम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम
सनन सनन कर चली हवाएं,
सर सर सर सर डोले पात
भीगी माटी सौंधी महकी
पुलकित हुआ अवनि का गात
राहत मिली निदाघ से अब तो
हुआ सुहाना ये मौसम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम
अदरक वाली कड़क चाय की,
फरमाइश करते दादा ।
दादी बोली मेरी चाय में
मीठा हो थोड़ा ज्यादा !
बच्चों को मीठे-मीठे
गुलगुले चाहिए नरम नरम
झम झम झम झम बरसी बूँदें,
बने पकौड़े गरम-गरम
खट्टी मीठी और चटपटी
चटनी डाली थाली में
बच्चों को शरबत बाँटा
और चाय बँटी फिर प्याली में
बारिश की बोछारों के संग
ओले बरसे ठम ठम ठम
झम झम झम झम बरसी बूँदें
बने पकौड़े गरम-गरम
पढ़िए बरसात और बारिश पर मेरी एक कविता
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टिप्पणियाँ
बने पकौड़े गरम-गरम
जवाब देंहटाएंसारगर्भित
सादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह
Wah kya khub sama bandha hai ke hamare mann mein bhi varsha ka mahol aur pakode-chai ki jigyasa jaag uthi - bahut sundar rachana hai!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन सुधा जी “अनुभूति” में रचना प्रकाशन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ॥
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