जिसमें अपना भला है , बस वो होना है
जब से खुद को खुद सा ही स्वीकार किया
हाँ औरों से अलग हूँ, खुद से प्यार किया ।
अपने होने के कारण को जब जाना ।
तेरी रचनात्मकता को कुछ पहचाना ।
जाना मेरे आस-पास चहुँ ओर है तू।
दिखे जहाँ कमजोर वही दृढ़ छोर है तू।
ना चाहा फिर बल इतना मैं कभी पाऊँ ।
तेरे होने के एहसास को खो जाऊँ ।
दुनिया ने जब जब भी नफरत से टेरा ।
तूने लाड दे आकर आँचल से घेरा ।
तेरी पनाह में जो सुख मैंने पाया है ।
किसके पास मेरा सा ये सरमाया है ।
दुनिया ढूँढ़े मंदिर मस्जिद जा जा के,
ना देखे, तू पास मिरे ही आया है ।
तेरी प्रणाली को लीला सब कहते हैं ।
शक्ति-प्रदाता ! निर्बल के बल रहते हैं ।
अब न कभी अपनी कमियों का रोना है ।
जिसमें अपना भला है, बस वो होना है ।
कुछ ऐसा विश्वास हृदय में आया है ।
माया प्रभु की कहाँ समझ कोई पाया है ।
सरमाया = धन - दौलत, पूँजी
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-8-22} को "रक्षाबंधन पर सैनिक भाईयों के नाम एक पाती"(चर्चा अंक--4509)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जिसमें अपना भला है, बस वो होना है ।
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क्या बात है! बहुत खूब। सब प्रभु की माया है जिसके कौन समझ पाया है। वाह। सादर।
बहुत बहुत सुंदर सृजन सुधा जी।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ अगस्त २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
माया प्रभु की कहाँ समझ कोई पाया है ।
बहुत खूब,विश्वास ही तो ओ शक्ति है जो हमें हर परिस्थिति में खड़े रख सकती है।
सादर
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
माया प्रभु की कहाँ समझ कोई पाया है ।
जिसने पुर्ण समर्पण किया उसी ने उस परम शक्ति को जाना है, मगर परिस्थितियों कभी कभी तोड़ देती है सुधा जी और विश्वास डगमगा जाता है। बहुत ही सुन्दर सृजन 🙏