बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

क्रिकेट जैसे खेल अमीरों के चोंचले

 

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कन्स्ट्रक्शन एरिया में अकरम को देख शर्मा जी ने आवाज लगाई , "अरे अकरम ! बेटा आज तुम ग्राउण्ड में नहीं गये ? वहाँ तुम्हारी टीम हार रही है"।

"नमस्ते अंकल ! नहीं, मैं नहीं गया" । (अकरम ने अनमने से कहा)

तभी बीड़ी सुलगाते हुये कमर में लाल साफा बाँधे एक मजदूर शर्मा जी के सामने आकर बोला, "जी सेठ जी ! क्या काम पड़े अकरम से ? मैं उसका अब्बू" ।

"अरे नहीं भई, काम कुछ नहीं, वो,, मैं इसे क्रिकेट खेलते देखता हूँ । बहुत अच्छा खेलता है ये।  क्या कैच पकड़ता है !  बहुत बढ़िया !  क्रिकेट में आगे बढ़ाओ इसे। खूब खेलने दो। नाम रोशन कर देगा ये लड़का तुम्हारा ! शर्मा जी अकरम की तारीफों के पुल बाँधने लगे।

 बड़ा सा कश भर बीड़ी को पत्थर पे बुझा वापस माचिस की डिबिया में रख,  कमर का साफा खोलकर सिर में बाँधते हुए मजदूर मुस्कुराकर बोला, "हाँ सेठ जी ! कैच तो बढ़िया पकड़े ये ! तभी तो आज से काम पर ले आया इसे ।  वो देखो ! फसक्लास ईंटा कैच कर रिया" ।

पहले माले में खड़ा अकरम बेसमेन्ट से फैंकी ईंटें बड़े अच्छे से कैच कर रहा था, बिल्कुल क्रिकेट बॉल की तरह ।

उसे देखते हुए शर्मा जी बोले ,  "इतने छोटे बच्चे को काम पर ले आये !  खेलने कूदने की उमर में काम ? अरे ! ऐसे काम से क्या फायदा ?  खेलने दो उसे ! वैसे भी अभी तो बच्चा है ये" ।

"बच्चा ना है ये, पूरे चौदह बरस का हो रिया । और ये किरकेट फिरकेट तो अमीरों के चोंचले होवें । भूखा पेट रोटी माँगे, जे नाम से नहीं , काम से मिले है सेठ जी" !  कहते हुए उसने ईंटों का ढ़ेर उठाया और चल दिया ।

शर्मा जी भी अब कुछ कह नहीं पाये, बस कुछ देर तक देखते रहे, नीचे से ऊपर फैंकी ईटों को कैच करते इस होनहार फील्डर या फिर विकेट-कीपर को। जिनके लिए क्रिकेट जैसे खेल अमीरों के चोंचले हैं ।



टिप्पणियाँ

  1. वाह! समाज के सच को दर्शाती अत्यंत सार्थक लघुकथा!!! बधाई और आभार!!!

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !

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  2. सुधा दी, आज अकरम जैसे कई बच्चे है जिनकी प्रतिभा पेट की आग के आगे दम तोड़ देती है। सुंदर लघुकथा।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !

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  3. सच बात है , जिनको दो वक्त की रोटी नहीं मिलती उनके लिए तो खेल अमीरों के चोंचले ही लगेंगे । सार्थक लघु कथा ।

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    1. जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
    'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी मेरी रचना को मच प्रदान करने हेतु ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी मेरी रचना को चयन करने हेतु ।

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  6. मर्म स्पर्शी लघु कथा सुधा जी सच बात है प्रतीभा तो दिखते दिखते दिखती है या नाम कमाती है पर भूखा पेट रोज रोटी मांगता है।
    गरीबों की प्रतिभा यूं ही घुट कर रह जाती है।
    यथार्थ पर प्रहार करती शानदार लघुकथा।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !

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  7. भूखे पेट भजन नहीं होता । यथार्थ का सटीक चित्रण करती लघुकथा ।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!

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  8. नई सोच..
    लाजवाब..
    आभार..
    सादर..

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  9. उम्दा कथानक शिल्प और भाषायी सौंदर्य बहुत सुन्दर...
    चार चाँद लगाने में शीर्षक पर श्रम खोज रहा है

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    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी !

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  10. बहुत खूब..बखूबी यथार्थ का चित्रण।

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  11. ऐसी कई प्रतिभाएँ आर्थिक रूप से कमजोर होने के चलते अपना मुकाम हासिल नहीं कर पाती हैं। यथार्थ का चित्रण करती लघु-कथा।

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  12. गरीबी प्रतिभाओं को रोटी के जुगाड़ में नष्ट कर देती हैं । हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी !

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  13. सही बात, जिसे रोटी के ही लाले हों वह क्या करे? सभ्यता के विकास में पेट भर रोटी का सबसे बड़ा योगदान है।

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  14. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय सुधा जी।
    जब सवाल पेट की भूख शान्त करने का हो तो कोई भविष्य की अपार संभावनाएं नहीं देखता।उसे चाहिये त्वरित उदरपूर्ति का साधन।इसी क्रम में अकरम जैसी अनगिन प्रतिभाएँ परिवार के पालन पोषण के लिए अपने सपनों का संसार छोड़ देती हैं।मार्मिक कहानी जो समाज की विद्रूपता पर कड़ा प्रहार करती है

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    उत्तर
    1. जी, रेणु जी ! हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  15. सच बात है क्रिकेट से जरूरी है रोटी
    वास्तविक सच से परिचित कराती
    अच्छी लाघुकथा

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  16. बच्चा ना है ये, पूरे चौदह बरस का हो रिया । और ये किरकेट फिरकेट तो अमीरों के चोंचले होवें । भूखा पेट रोटी माँगे, जे नाम से नहीं , काम से मिले है सेठ जी" !

    सच, खाली पेट तो भजन भी नहीं होता फिर भविष्य संवारने के सपने कैसे आयेगा। मर्मस्पर्शी लघुकथा आदरणीय सुधा जी 🙏

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    उत्तर
    1. जी, सही कहा आपने...
      हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  17. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. आलोक जी!

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  18. हकीकत से दो-चार करती अद्भुत कहानी सुधा जी, आपने ज़मीन दिखा दी ये कह कर कि और ये किरकेट फिरकेट तो अमीरों के चोंचले होवें । भूखा पेट रोटी माँगे, जे नाम से नहीं , काम से मिले है सेठ जी" !..वाह

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