शनिवार, 24 अप्रैल 2021

खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं

 

Flower


तुम कहते रहोगे वो सुनेंगे नहीं

अब तुम्हारे ही तुमसे मनेंगे नहीं


इक कदम जो उठाया सबक देने को

चाहकर भी कदम अब रुकेंगे नहीं


जा चुका जो समय हाथ से अब तेरे

जिन्दगी भर वो पल अब मिलेंगे नहीं


जोड़ते -जोड़ते वक्त लगता बहुत

टूटे  रिश्ते सहज तो जुड़ेंगे नहीं


तेरे 'मैं' के इस फैलाव की छाँव में

तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं


छोटी राई का पर्वत बना देख ले

खाइयां पाटकर भी पटेंगे नहीं


चढ़ ले चढ़ ले कहा तो चढ़े पेड़ पर

अब उतरने को कोई कहेंगे नहीं


निज का अभिमान इतना बड़ा क्या करें 

घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं


जो दलीलें हों झूठी, और इल्ज़ाम भी

सच के साहस के आगे टिकेंगे नहीं


दिल के रिश्तों को जोड़ा फिर तोड़ा, मगर

 खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं


ऐसे ही रिश्तों पर आधारित मेरा एक और सृजन

● उठे वे तो जबरन गिराने चले


40 टिप्‍पणियां:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सुधा जी। आप कम लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं तो लाजवाब कर देती हैं।

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने। ।।।

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-04-2021) को
"धुआँ धुआँ सा आसमाँ क्यूँ है" (चर्चा अंक- 4047)
पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.


"मीना भारद्वाज"

Jyoti Dehliwal ने कहा…

निज का अभिमान इतना बड़ा क्या करें

घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत ख़ूब !
लेकिन आज के डिजिटल दौर में खून के रिश्ते भी गाढ़े नहीं रहे बल्कि वर्चुअल हो गए हैं.

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

बहुत सुंदर।
चढ़ ले चढ़ ले कहा तो चढ़े पेड़ पर

अब उतरने को कोई कहेंगे नहीं। लाजवाब

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद जितेंद्र जी! सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार पुरुषोत्तम जी!
उत्साहवर्धन हेतु...।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार मीना जी !मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु...।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!उत्साहवर्धन हेतु...।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सर! वैसे आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।
तहेदिल से धन्यवाद आपका।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार एवं धन्यवाद भाई!

Meena Bhardwaj ने कहा…

कृपया शुक्रवार के स्थान पर रविवार पढ़े । धन्यवाद.

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन रचना सखी

Anita ने कहा…

जोड़ते -जोड़ते वक्त लगता बहुत

टूटे रिश्ते सहज तो जुड़ेंगे नहीं

वाकई अहम की दीवार बीच में खड़ी हो तो रिश्तों का जुड़ना सहज नहीं होता, सुंदर संदेश देती रचना

Nitish Tiwary ने कहा…

वाह! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सादर आभार एवं धन्यवाद ओंकार जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नितीश जी !

शुभा ने कहा…

वाह!सुधा जी ,लाजवाब सृजन ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तेरे मैं' के इस फैलाव की छाँव में

तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं ।

ये "मैं " न जाने क्यों इतना हावी रहता है ।
खूबसूरत ग़ज़ल । ग़ज़ल का हर शेर दिल से निकल हुआ और दिल तक पहुँचा ।
वाह बस वाह

Kamini Sinha ने कहा…

दिल के रिश्तों को जोड़ा फिर तोड़ा, मगर

खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं

बहुत खूब कहा आपने,ये रिश्तें जो एक बार बंध गए लाख खींचातानी करों टूटेंगे तो नहीं हाँ,दरार भले पड़ जाये।
एक-एक शेर लाज़बाब ,सादर नमन सुधा जी

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद संगीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


तेरे 'मैं' के इस फैलाव की छाँव में

तेरे नन्हे भी खुलके बढेंगे नहीं



छोटी राई का पर्वत बना देख ले

खाइयां पाटकर भी पटेंगे नहीं...बहुत ही सटीक संदर्भों को उठाती हुई खूबसूरत गजल, खासतौर से अहम पर खास चोट कर गई आपकी उत्कृष्ट लेखनी । बहुत शुभकामनाएं सुधा जी ।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!

रेणु ने कहा…

निज का अभिमान इतना बड़ा क्या करें
घर की देहरी पे जो झुक सकेंगे नहीं
क्या बात है प्रिय सुधा जी! जीवन के विभिन्न संदर्भो पर गहरे चिंतन से भरी रचना में खरी बात मन को छू गयी! सच में अपने हर हाल में अपने होते हैं और निजदेहरी के लिए मान क्या अभिमान क्या!! सटीक विमर्श 👌👌👌👌भावपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹💐❤🙏

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार रेणु जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सही कहा सुधा जी ख़ून के रिश्ते कभी मिटते नहीं
गहन भाव सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद रितु जी!

हरीश कुमार ने कहा…

बेहतरीन

Banjaarabastikevashinde ने कहा…

ख़ून के रिश्तों से परे .. मन के रिश्तों को अक़्सर मज़बूत पाया है .. कम से कम हमने .. हो सकता है निजी अनुभव गलत हो .. शायद ...

आपकी इस अनुपम रचना के अवलोकन के तहत अचानक रचना की तिथि पर निगाह गयी और तत्कालीन प्रतिक्रिया करने वालों की लम्बी फेहरिस्त पर भी सरसरी निगाह बरबस चली गयी .. मालूम नहीं इन दिनों ये या वे लोग कैसे हैं और कहाँ हैं .. सभी स्वस्थ ही होंगे .. शायद ...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.सुबोध जी !
सही कहा मन के रिश्ते मजबूत होता होते हैं परन्तु खून के रिश्तों पर भी यदि मन लगायें तो थोड़ी मजबूती व़े भी पा लें ..शायद..
और हाँ सच में अब ब्लॉग जगत सूना -सूना है पहले सी रौनक नहीं रही । पर आते रहिएगा दुबारा रौनक लाने की कोशिश करते हैं । वो कहते हैं न , एक और एक ग्यारह...

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. जोशी जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार हरीश जी !

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी !

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...