भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

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सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

उठे वे तो जबरन गिराने चले

 

Falling

उठे वे तो जबरन गिराने चले 

कुछ अपने ही रिश्ते मिटाने चले 

अपनों की नजर में गिराकर उन्हें

गैरों में अपना बताने चले ।।


ना राजा ना रानी, अधूरी कहानी

दुखों से वे लाचार थे बेजुबानी

करम के भरम में फँसे ऐसे खुद ही

कल्पित ही किस्से सुनाने चले 

उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।


दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर

चले राह अपनी सभी आस खोकर

हर छाँव सर से उनकी गिराकर

राहों में काँटे बिछाने चले

उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।


काँटों में चल के तमस से निकल के

रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के

पहचान खुद से नयी जब बनी तो

मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले

उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।



पढ़िए इन्हीं भावों पर आधारित एक और सृजन

"दुखती रगों को दबाते बहुत हैं"




टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 मई 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।🙏🙏

      हटाएं
  3. आगे बढ़ता देख लोगों को खुशी के बजाय ईर्ष्या होती है , लेकिन जो संघर्ष कर सकता है उसे फर्क नहीं पड़ता ।
    यथार्थ को कहती सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।🙏🙏

      हटाएं
  4. वाह!सुधा जी ,खूबसूरत सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. काँटों में चल के तमस से निकल के
    रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के
    पहचान खुद से नयी जब बनी तो
    मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले
    उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
    .. मन की बात लिख दी सखी।
    कुछ लोग हराने के लिए साथ देते हैं और जीतते ही झंडाबरदार बनकर सबसे आगे कूदते है।
    यथार्थपरक गीत के लिए बहुत बधाई मित्र।

    जवाब देंहटाएं
  6. गोपेश मोहन जैसवाल23 मई 2023 को 11:42 am बजे

    सुधाजी, हमारे नेताओं को आपने ख़ूब पहचाना !
    मसलना और कुचलना ही उनकी आदत है, नफ़रत और हसद ही उनकी फ़ितरत है.

    जवाब देंहटाएं

  7. दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर

    चले राह अपनी सभी आस खोकर

    हर छाँव सर से उनकी गिराकर

    राहों में काँटे बिछाने चले

    उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हौसलों की दृढता जब ऊंचाइयों को उड़ान देती है .. ऊपर देखने वालों की कतार लग जाती है .

      हटाएं
  8. लगता है मानो, दुनिया का दस्तूर यही होता जा रहा,
    दूसरों को गिराकर आगे बढ़ने की।

    यथार्थ को बयां करती सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं

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