दुखती रगों को दबाते बहुत हैं
दुखती रगों को दबाते बहुत हैं,
कुछ अपने, दुखों को बढ़ाते बहुत हैं ।
सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,
उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।
भूखे से बासी भी भोजन छुपाते,
मनभर को छक-छक खिलाते बहुत हैं ।
बनी बात सुनने की फुर्सत नहीं है,
बिगड़ी को फिर-फिर दोहराते बहुत हैं ।
पूछो तो कुछ भी नहीं जानते हैं ,
भटको तो ताने सुनाते बहुत है ।
बड़े प्यार से अपनी नफरत निभाते,
समझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।
दिखाना है इनको मंजिल जो पाके,
इसी होड़ में कुछ, कमाते बहुत हैं ।
तानों से इनके आहत ना हों तो,
अनजाने ही दृढ़ बनाते बहुत हैं ।
पढ़िए रिश्तों पर आधारित एक और रचना
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टिप्पणियाँ
सत्य उकेरती सराहनीय रचना दी।
सस्नेह
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
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खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
मानवीय संतुष्टिकरण शायद कारण हो । सत्य को उकेरती रचना ।
समझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।
बहुत सुंदर... समाज की सच्चाई सटीकता से बयाँ करती रचना...
सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,
उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।
बहुत बार अनुभव हुआ है।
ऐसे दोस्तों, ऐसे रिश्तेदारों से और ऐसे पड़ौसियों से, राम बचाए !
ऐसे ही मेहरबान दोस्तों पर एक शायर ने कहा है -
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
यथार्थ पर बहुत सुंदर रचना लिखी है सखी। बधाई।