उठे वे तो जबरन गिराने चले
कुछ अपने ही रिश्ते मिटाने चले
अपनों की नजर में गिराकर उन्हें
गैरों में अपना बताने चले ।।
ना राजा ना रानी, अधूरी कहानी
दुखों से वे लाचार थे बेजुबानी
करम के भरम में फँसे ऐसे खुद ही
कल्पित ही किस्से सुनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर
चले राह अपनी सभी आस खोकर
हर छाँव सर से उनकी गिराकर
राहों में काँटे बिछाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
काँटों में चल के तमस से निकल के
रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के
पहचान खुद से नयी जब बनी तो
मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
13 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 मई 2023 को साझा की गयी है
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति
आगे बढ़ता देख लोगों को खुशी के बजाय ईर्ष्या होती है , लेकिन जो संघर्ष कर सकता है उसे फर्क नहीं पड़ता ।
यथार्थ को कहती सुंदर रचना ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।🙏🙏
जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।🙏🙏
वाह!सुधा जी ,खूबसूरत सृजन।
काँटों में चल के तमस से निकल के
रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के
पहचान खुद से नयी जब बनी तो
मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
.. मन की बात लिख दी सखी।
कुछ लोग हराने के लिए साथ देते हैं और जीतते ही झंडाबरदार बनकर सबसे आगे कूदते है।
यथार्थपरक गीत के लिए बहुत बधाई मित्र।
सुधाजी, हमारे नेताओं को आपने ख़ूब पहचाना !
मसलना और कुचलना ही उनकी आदत है, नफ़रत और हसद ही उनकी फ़ितरत है.
वाह! बहुत बढ़िया!!
दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर
चले राह अपनी सभी आस खोकर
हर छाँव सर से उनकी गिराकर
राहों में काँटे बिछाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
हौसलों की दृढता जब ऊंचाइयों को उड़ान देती है .. ऊपर देखने वालों की कतार लग जाती है .
लगता है मानो, दुनिया का दस्तूर यही होता जा रहा,
दूसरों को गिराकर आगे बढ़ने की।
यथार्थ को बयां करती सुंदर रचना।
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