आँधी और शीतल बयार
आँधी और शीतल बयार,
आपस में मिले इक रोज।
टोकी आँधी बयार को
बोली अपना अस्तित्व तो खोज।
फिर भी तेरा अस्तित्व क्या,
कौन मानता है तुझको..?
अरी पगली ! बहन मेरी !
सीख तो कुछ देख मुझको।
मेरे आवेग के भय से,
सभी कैसे भागते हैं।
थरथराते भवन ऊँचे,
पेड़-पौधे काँपते हैं।
जमीं लोहा मानती है ,
आसमां धूल है चाटे।
नहीं दम है किसी में भी,
जो आ मेरी राह काटे।
एक तू है न रौब तेरा
जाने कैसे जी लेती है ?
डर बिना क्या मान तेरा
क्योंं शीतलता देती है ?
शान्तचित्त सब सुनी बयार ,
फिर हौले से मुस्काई.....
मैं सुख देकर सुखी बहना!
तुम दुख देकर हो सुख पायी।
मैं मन्दगति आनंदप्रद,
आत्मशांति से उल्लासित।
तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,
कष्टप्रद किन्तु क्षणिक।
सुमधुर शीतल छुवन मेरी
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
चित्र साभार गूगल से...
टिप्पणियाँ
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
आत्मशांति से उल्लासित।
वाह
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर आभार।
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
अद्भुत सृजन । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।
आपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।
आपको भी दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।