आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आँधी और शीतल बयार,
आपस में मिले इक रोज।
टोकी आँधी बयार को
बोली अपना अस्तित्व तो खोज।
फिर भी तेरा अस्तित्व क्या,
कौन मानता है तुझको..?
अरी पगली ! बहन मेरी !
सीख तो कुछ देख मुझको।
मेरे आवेग के भय से,
सभी कैसे भागते हैं।
थरथराते भवन ऊँचे,
पेड़-पौधे काँपते हैं।
जमीं लोहा मानती है ,
आसमां धूल है चाटे।
नहीं दम है किसी में भी,
जो आ मेरी राह काटे।
एक तू है न रौब तेरा
जाने कैसे जी लेती है ?
डर बिना क्या मान तेरा
क्योंं शीतलता देती है ?
शान्तचित्त सब सुनी बयार ,
फिर हौले से मुस्काई.....
मैं सुख देकर सुखी बहना!
तुम दुख देकर हो सुख पायी।
मैं मन्दगति आनंदप्रद,
आत्मशांति से उल्लासित।
तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,
कष्टप्रद किन्तु क्षणिक।
सुमधुर शीतल छुवन मेरी
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
चित्र साभार गूगल से...
बहुत सुंदर रचना सुधा जी।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद सखी!
हटाएंबहुत सुन्दर रचना. आँधी सिर्फ तब अच्छी लगती है जब आम के बगीचा में हम हों और आँधी से आम टूट कर गिरे और हम बटोरें. शीतल बयार तो हर मौसम में सुहानी लगती है.
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद शबनम जी !
हटाएंसच्ची खुशी दूसरे को खुशी देने में ही मिलती है। वो खुशी शीतल बयार ही दे सकती है। बहुत सुंदर रचना सुधा दी।
जवाब देंहटाएंजी , ज्योति जी रचना का सार स्पष्ट करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन में मेरी रचना साझा करने हेतु सादर धन्यवाद यशोदा जी!
हटाएंबहुत ही सुदर रचना...बस बहुत ही ...आनंद आ गया कि अहंकार और शांत मन किस किस तरह हमें घेरे रहता ळै आपकी इस रचना ने बहुत अच्छी तरह उकेरा है सुधा जी
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार,अलकनंदा जी!
हटाएंखूबसूरत मनभावन पोस्ट।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. माथुर जी!
हटाएंबेहद शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार लोकेश जी !
हटाएंमैं मन्दगति आनंदप्रद,
जवाब देंहटाएंआत्मशांति से उल्लासित।
वाह
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद राकेश जी!
हटाएंबेहद सुंदर और सराहनीय रचना सखी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद एवं आभार, सखी!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.जोशी जी!
हटाएंबहुत अच्छी, बहुत सुंदर, मनभावनी रचना है यह आपकी सुधा जी । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जितेन्द्र जी!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद Dawn ji!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शिवम जी!
जवाब देंहटाएंवाह , अनूठी रचना !!
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सतीश जी!
हटाएंसादर आभार।
सुमधुर शीतल छुवन मेरी
जवाब देंहटाएंआनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
अद्भुत सृजन । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।
अत्यंत आभार मीना जी!
हटाएंनमस्ते
जवाब देंहटाएंआपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।
बहुत बहुत धन्यवाद माथुर जी!
हटाएंआपको भी दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।
मैं मन्दगति आनंदप्रद,आत्मशांति से उल्लासित।तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,कष्टप्रद किन्तु क्षणिक। बहुत बहुत सरस , सुन्दर |
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ. आलोक जी!
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