आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

आँधी और शीतल बयार



Sea side; palm trees ;struggling in storm

आँधी और शीतल बयार, 
आपस में मिले इक रोज।
टोकी आँधी बयार को 
बोली अपना अस्तित्व तो खोज।


तू हमेशा शिथिल सुस्त सी,
धीरे-धीरे बहती क्यों...?
सबके सुख-दुख की परवाह,
सदा तुझे ही रहती क्यों...?

फिर भी तेरा अस्तित्व क्या,
कौन मानता है तुझको..?
अरी पगली ! बहन मेरी !
सीख तो कुछ देख मुझको।

मेरे आवेग के भय से,
सभी  कैसे भागते हैं।
थरथराते भवन ऊँचे,
पेड़-पौधे काँपते हैं।

जमीं लोहा मानती है ,
आसमां धूल है चाटे।
नहीं दम है किसी में भी,
जो आ मेरी राह काटे।

एक तू है न रौब तेरा
जाने कैसे जी लेती है ?
डर बिना क्या मान तेरा
क्योंं शीतलता देती है ?

शान्तचित्त सब सुनी बयार ,
फिर हौले से मुस्काई.....
मैं सुख देकर सुखी बहना!
तुम दुख देकर हो सुख पायी।

मैं मन्दगति आनंदप्रद,
आत्मशांति से उल्लासित।
तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,
कष्टप्रद किन्तु क्षणिक।

सुमधुर शीतल छुवन मेरी
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।

            

             चित्र साभार गूगल से...







टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर रचना. आँधी सिर्फ तब अच्छी लगती है जब आम के बगीचा में हम हों और आँधी से आम टूट कर गिरे और हम बटोरें. शीतल बयार तो हर मौसम में सुहानी लगती है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सच्ची खुशी दूसरे को खुशी देने में ही मिलती है। वो खुशी शीतल बयार ही दे सकती है। बहुत सुंदर रचना सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी , ज्योति जी रचना का सार स्पष्ट करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सांध्य दैनिक मुखरित मौन में मेरी रचना साझा करने हेतु सादर धन्यवाद यशोदा जी!

      हटाएं
  4. बहुत ही सुदर रचना...बस बहुत ही ...आनंद आ गया क‍ि अहंकार और शांत मन क‍िस क‍िस तरह हमें घेरे रहता ळै आपकी इस रचना ने बहुत अच्छी तरह उकेरा है सुधा जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार,अलकनंदा जी!

      हटाएं
  5. बेहद शानदार
    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं मन्दगति आनंदप्रद,
    आत्मशांति से उल्लासित।
    वाह

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहद सुंदर और सराहनीय रचना सखी।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी, बहुत सुंदर, मनभावनी रचना है यह आपकी सुधा जी । अभिनंदन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जितेन्द्र जी!

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद Dawn ji!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  10. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शिवम जी!

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सतीश जी!
      सादर आभार।

      हटाएं
  12. सुमधुर शीतल छुवन मेरी
    आनंद भरती सबके मन।
    सुख पाते मुझ संग सभी
    परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
    अद्भुत सृजन । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  13. नमस्ते
    आपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद माथुर जी!
      आपको भी दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।

      हटाएं
  14. मैं मन्दगति आनंदप्रद,आत्मशांति से उल्लासित।तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,कष्टप्रद किन्तु क्षणिक। बहुत बहुत सरस , सुन्दर |

    जवाब देंहटाएं

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