शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

आँधी और शीतल बयार



Sea side; palm trees ;struggling in storm

आँधी और शीतल बयार, 
आपस में मिले इक रोज।
टोकी आँधी बयार को 
बोली अपना अस्तित्व तो खोज।


तू हमेशा शिथिल सुस्त सी,
धीरे-धीरे बहती क्यों...?
सबके सुख-दुख की परवाह,
सदा तुझे ही रहती क्यों...?

फिर भी तेरा अस्तित्व क्या,
कौन मानता है तुझको..?
अरी पगली ! बहन मेरी !
सीख तो कुछ देख मुझको।

मेरे आवेग के भय से,
सभी  कैसे भागते हैं।
थरथराते भवन ऊँचे,
पेड़-पौधे काँपते हैं।

जमीं लोहा मानती है ,
आसमां धूल है चाटे।
नहीं दम है किसी में भी,
जो आ मेरी राह काटे।

एक तू है न रौब तेरा
जाने कैसे जी लेती है ?
डर बिना क्या मान तेरा
क्योंं शीतलता देती है ?

शान्तचित्त सब सुनी बयार ,
फिर हौले से मुस्काई.....
मैं सुख देकर सुखी बहना!
तुम दुख देकर हो सुख पायी।

मैं मन्दगति आनंदप्रद,
आत्मशांति से उल्लासित।
तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,
कष्टप्रद किन्तु क्षणिक।

सुमधुर शीतल छुवन मेरी
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।

            

             चित्र साभार गूगल से...







33 टिप्‍पणियां:

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना सुधा जी।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना. आँधी सिर्फ तब अच्छी लगती है जब आम के बगीचा में हम हों और आँधी से आम टूट कर गिरे और हम बटोरें. शीतल बयार तो हर मौसम में सुहानी लगती है.

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सच्ची खुशी दूसरे को खुशी देने में ही मिलती है। वो खुशी शीतल बयार ही दे सकती है। बहुत सुंदर रचना सुधा दी।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद शबनम जी !

Sudha Devrani ने कहा…

जी , ज्योति जी रचना का सार स्पष्ट करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सांध्य दैनिक मुखरित मौन में मेरी रचना साझा करने हेतु सादर धन्यवाद यशोदा जी!

Alaknanda Singh ने कहा…

बहुत ही सुदर रचना...बस बहुत ही ...आनंद आ गया क‍ि अहंकार और शांत मन क‍िस क‍िस तरह हमें घेरे रहता ळै आपकी इस रचना ने बहुत अच्छी तरह उकेरा है सुधा जी

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

खूबसूरत मनभावन पोस्ट।

Lokesh Nashine ने कहा…

बेहद शानदार
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति

hindiguru ने कहा…

मैं मन्दगति आनंदप्रद,
आत्मशांति से उल्लासित।
वाह

SUJATA PRIYE ने कहा…

बेहद सुंदर और सराहनीय रचना सखी।

Sudha Devrani ने कहा…

सराहनीय प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार,अलकनंदा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. माथुर जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार लोकेश जी !

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद राकेश जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार, सखी!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

बहुत अच्छी, बहुत सुंदर, मनभावनी रचना है यह आपकी सुधा जी । अभिनंदन ।

Dawn ने कहा…

सुन्दर सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शिवम जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.जोशी जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जितेन्द्र जी!

Satish Saxena ने कहा…

वाह , अनूठी रचना !!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद Dawn ji!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सतीश जी!
सादर आभार।

Meena Bhardwaj ने कहा…

सुमधुर शीतल छुवन मेरी
आनंद भरती सबके मन।
सुख पाते मुझ संग सभी
परसुख में सुखी मेरा जीवन ।।
अद्भुत सृजन । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

नमस्ते
आपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार मीना जी!

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद माथुर जी!
आपको भी दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।

आलोक सिन्हा ने कहा…

मैं मन्दगति आनंदप्रद,आत्मशांति से उल्लासित।तुम क्रोधी अति आवेगपूर्ण,कष्टप्रद किन्तु क्षणिक। बहुत बहुत सरस , सुन्दर |

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ. आलोक जी!

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...