बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन, माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित, फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता , ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर, स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो, जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से, मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे, पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से, निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा, मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर, ...
सभी हायकु बहुत बढ़िया है,सुधा दी।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!उत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 29 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी!यशोदा जी तहेदिल से धन्यवाद आपका।
हटाएंसादर आभार।
लाजवाब हाइकु । विविधताओं से परिपूर्ण । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आ. जोशी जी!
हटाएंसटीक हाइकू...वाह सुधा जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अलकनंदा जी!
हटाएंसादर आभार।
सुंदर हाइकु.....
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद विकास जी!
हटाएंबाखूबी हाथ आजमाया है इस हाइकू की विधा में भी आपने ... स्पष्ट, तीखे, सामयिक और लाजवाब हैं सभी ...
जवाब देंहटाएंऐसे ही लिखती रहे ... मेरी बहुत बहुत शुभकामनायें ...
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ आ.नासवा जी!
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवन आभार आपका।
लॉक डाउन का सामयिक चित्रण।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सर!
हटाएंसादर आभार।