मेरे ब्लॉग ! देखो मैं आ गयी !
थोड़े समय के लिए ही सही
मन में खुशियाँ छा गयी !
जानते हो तुमसे मिलने को
क्या कुछ नहीं किया मैंने !
और तो और छोटों से किया
वादा ही तोड़ दिया मैंंने !
पर ये क्या ! ऐसे क्यों उदास बैठे हो !
जरा उत्साहित भी नहीं,
ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो !
ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो !
अब तुमसे क्या बताना या छुपाना
तुम भी तो जानते हो न,
मोबाइल, कम्प्यूटर ठीक नहीं
सेहत के लिए
ये तुम भी तो मानते हो न !!!
परन्तु तुम तक आने का माध्यम
परन्तु तुम तक आने का माध्यम
सिर्फ इंटरनेट है...
उसी से हो तुम,और तुम्हारा सबकुछ
कम्प्यूटर में सैट है ।
हम भी नहीं मिलेंगे तुमसे
जब ये वादा करते हैं
तभी अपने छोटों को
कम्प्यूटर वगैरह से दूर रखते हैं।
रेडिएशन के नुकसान अगर
उनसे कह देते हैं
"आप क्यों" कहकर वे तो
हमें ही चुप कर देते हैं।
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया !!!
खैर ! उनकी सलामती के लिए
डर कर ही रह लेते हैं
हम अपने छोटों के खातिर मेरे ब्लॉग !
तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं...
तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं...
51 टिप्पणियां:
सुधा दी, बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट आई। सच कहा हमें ब्लॉग के लिए ही सही लेकिन ईंटरनेट का हमें उपयोग करना पड़ता हैं। इसलिए बच्चों को नही समझ सकते। लेकिन दीदी ईंटरनेट का उपयोग करना गलत नही हैं यदि उसका उपयोग सही तरीके से किया जाए।
बहुत सुंदर 👌👌👌
बेहतरीन रचना सखी 👌
आपका अभिनंदन है प्रिय सुधा जी। ब्लॉग से दूरी का ये सिलसिला मेरे साथ भी चल रहा है। अत्यंत रोचकता से आपने अपनी बात कही है। और ये बात कहकर आपने दुखती रग पर हाथ रख दिया है। ____
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया !!!
सच में यही कड़वा सच है हमारी पीढी का। आप के लेखन की निरंतरता की कामना करती हूँ। सस्नेह। 🙏🌹🌹🌹🌹🌹
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर प्रेरक रचना
जी, ज्योति जी सही कहा इंटरनेट का उपयोग करना गलत नहीं है पर मोबाइल, कम्प्यूटर पर ज्यादा रहने से उसके रेडिएशन से बच्चों को अनेक स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं आजकल हर दूसरे बच्चे को आँखो की समस्या है बच्चे बाहर खेलने के बजाय कम्प्यूटर गेम खेलने में व्यस्त हैं मोबाइल पर चैट करते है दोस्तों के साथ समय बिताना खेलना सब खत्म होता जा रहा है..हर छोटे-बड़े सवाल का जबाब इंटरनेट में ढूढना अपनी समझ बूझ को खत्म करने के बराबर है।इन्हीं वजहों से उन्हें इन चीजों से रोकना चाहो तो पहले खुद को रोकना पड़ रहा है....।
रचना पर प्रतिक्रिया से विमर्श करने हेतु आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
आपका तहेदिल से धन्यवाद
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद नीतू जी !
बहुत बहुत धन्यवाद, अनुराधा जी!
जी, रेणु जी! ब्लॉग या लेखन बच्चे कहाँ समझ पाते हैं बस उनके हिसाब से तो सब गेम खेल रहे हैं पढ़ना है तो किताबें पढ़ो...😀😀
अच्छा आपके साथ भी ये सिलसिला चल रहा है फिर तो हम दुख के भी साथी हैं...हैं न...😩😅😅
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सस्नेह आभार ।
मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी !
सादर आभार...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सुजाता जी !
बहुत बहुत धन्यवाद, अभिलाषा जी !
सस्नेह आभार...
समय प्रबन्धन कर समय निकालिये और थोड़ा थोड़ा जोड़ते चलिये। अति किसी चीज की भली नहीं ये सच है।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मुखरित मौन पर मेरी रचना को साझा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद यशोदा जी !
सादर आभार...
जी, जोशी जी! यही करने की कोशिश करती हूँ ....
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सादर आभार।
उनसे कह देते हैं
"आप क्यों" कहकर वे तो
हमें ही चुप कर देते हैं
सही कहा आपने... होता तो यही है । मगर ब्लॉग की नाराजगी भी सही है । बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला आपका लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा ।
कहा आपने
सुधा जी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बहुत सारे पहलू हैं.
पर फिर कृपया निरंतरता बनाने का प्रयास करिये न।
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने।
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया
बिलकुल सही कहा आपने सुधा जी ,उनकी सलामती के लिए ही उनसे डर कर भी रहना पड़ता हैं ,बहुत ही खूबसूरती से आपने वर्णन किया है ,सुंदर रचना ,सादर नमन
जी ,श्वेता जी प्रयास के बाद ही आप सभी को पढ़ने का अवसर निकाल पाती हूँ ... लिखने से ज्यादा पढ़ना अच्छा लगता है....आपको कविता अच्छी लगी हृदयतल से धन्यवाद आपका आपकी सराहना लिखने को प्रेरित करती है
सस्नेह आभार।
जी कामिनी जी बस यही हाल है ...
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार उत्साहवर्धन हेतु।
हृदयतल से धन्यवाद मीना जी!
सस्नेह आभार...
आभार भाई !...
वाह!!बहुत खूब सुधा जी । बात तो आपने एकदम सही कही है ,लगता हे हम सबका हाल एक -सा ही है ।
वाह ...
ब्लॉग की नाराजगी और अपने मन का .... कितना सहज और आकर्षित अंदाज़ में लिखा है ...
सच है की कई बार बच्चों की खातिर ये सब करना होता है ... और करना भी चाहिए, जरूरी भी है ... समाज में समाज की सचाइयों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ... पर कहीं मन में एक बच्चा भी होना चाहिए ... कभी कभी उसकी खातिर, कभी यूँ ही ... नज़र बचा कर ब्लॉग पर आ जाना भी चाहिए ... चाहे शैतान मन के बच्च्चे की खातिर ...
बहुत लाजवाब और सुन्दर अभिव्यक्ति है ... बहुत खूब ...
वैसे इतने दिनों बाद आपको ब्लॉग पे देख कर अच्छा लगा ...
कभी कभी आने जाने में कोई बुराई नहीं है ...
जी, नासवा जी अपना बस चले तो यहीं रहें हमेशा
पढने और लिखने में ही ....
सादर आभार आपका।
जी, नासवा जी हृदयतल से धन्यवाद।
सादर आभार...
जी,लगभग सभी माँओं का तो यही हाल होता होगा...
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार
सस्नेह...
जीवन में अनेकों छोटी-मोती उलझनें रहतीं हैं उन्हीं में से एक आम समस्या को बड़ी सादगी के साथ उलझनों को बयां करती सुंदर रचना।
वाह !आदरणीया दीदी जी नि:शब्द हूँ
सादर
सुधा जी ,बहुत सहज स्वाभाविक उलाहना हैं । हम सभी एक ही नाव पर सवार हैं। मन मर्जी की एक-आध 'दंडी'मारने में कोई बुराई नहीँ है ।सुंदर लेखन की बधाई ।
आभारी हूँ राकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका.....
बहुत दिनो बाद आपका शुभागमन हुआ आपके आशीर्वचन पाकर कृतकृत्य हूँ।
आभारी हूँ अनीता जी !बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
आभारी हूँ पल्लवी जी!तहेदिल से धन्यवाद
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
हे फ़ेसबुक ! अब तू ही मेरा चेहरा है !
हे मेरे ब्लॉग ! तू पाठक रूपी ग्राहकों से सूनी दुकान है. फिर भी मेरे भावों की उड़ान है ! तू जीवन की मुस्कान है !
सुधा जी, बढ़िया ,ब्लॉग भी बेचारा क्या करे अपने रहनुमा का इंतजार उसे भी तो रहता है
वाहवाह आप तो हमेशा ही कमाल का लिखते है गोपेश जी !
हृदयतल से धन्यवाद आपका
सादर आभार।
जी, सुधा जी! हार्दिक धन्यवाद आपका
सस्नेह आभार...।
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
सहज सुलभ सी अभिव्यक्ति सुधाजी ।
हम तो सदा इंतजार में रहते हैं आपके, आपने ही अपने को वादों में उलझा लिया , पर आज खिंची आई तो हम भी खुश हुवे ।आते रहिए रुक रुक के ही सही ।
जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार संजय जी !
जी, कुसुम जी! हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका...
बहुत सुंदर चित्रण
हार्दिक धन्यवाद श्रीराम रॉय जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
जी ! जरूर आउंगी , पर आपका ब्लॉग मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं आता तो आपकी रचना का पता नहीं चल पाता ।
रचना पढ़ते समय लगा "अरे ये तो मेरी कहानी है..!"
टिप्पणी करने तक यात्रा करते-करते लगा कि–"अरे! यह तो बहुत लोगों की कहानी है।"
जी आदरणीय शायद ऐसा सभी माँँओं के साथ होता होगा
हृदयतल से धन्ययवाद आपका
सादर आभार...
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