तन में मन है या मन में तन ?

ये मन भी न पल में इतना वृहद कि समेट लेता है अपने में सारे तन को, और हवा हो जाता है जाने कहाँ-कहाँ ! तन का जीव इसमें समाया उतराता उकताता जैसे हिचकोले सा खाता, भय और विस्मय से भरा, बेबस ! मन उसे लेकर वहाँ घुस जाता है जहाँ सुई भी ना घुस पाये, बेपरवाह सा पसर जाता है। बेचारा तन का जीव सिमटा सा अपने आकार को संकुचित करता, समायोजित करता रहता है बामुश्किल स्वयं को इसी के अनुरूप वहाँ जहाँ ये पसर चुका होता है सबके बीच। लाख कोशिश करके भी ये समेटा नहीं जाता, जिद्दी बच्चे सा अड़ जाता है । अनेकानेक सवाल और तर्क करता है समझाने के हर प्रयास पर , और अड़ा ही रहता है तब तक वहीं जब तक भर ना जाय । और फिर भरते ही उचटकर खिसक लेता वहाँ से तन की परवाह किए बगैर । इसमें निर्लिप्त बेचारा तन फिर से खिंचता भागता सा चला आ रहा होता है इसके साथ, कुछ लेकर तो कुछ खोकर अनमना सा अपने आप से असंतुष्ट और बेबस । हाँ ! निरा बेबस होता है ऐसा तन जो मन के अधीन हो। ये मन वृहद् से वृहद्तम रूप लिए सब कुछ अपने में समेटकर करता रहता है मनमानी । वहीं इसके विपरीत कभी ये पलभर में सिकुड़कर या सिमटकर अत्यंत सूक्ष्म रूप में छिपक...
सुधा दी, बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट आई। सच कहा हमें ब्लॉग के लिए ही सही लेकिन ईंटरनेट का हमें उपयोग करना पड़ता हैं। इसलिए बच्चों को नही समझ सकते। लेकिन दीदी ईंटरनेट का उपयोग करना गलत नही हैं यदि उसका उपयोग सही तरीके से किया जाए।
जवाब देंहटाएंजी, ज्योति जी सही कहा इंटरनेट का उपयोग करना गलत नहीं है पर मोबाइल, कम्प्यूटर पर ज्यादा रहने से उसके रेडिएशन से बच्चों को अनेक स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं आजकल हर दूसरे बच्चे को आँखो की समस्या है बच्चे बाहर खेलने के बजाय कम्प्यूटर गेम खेलने में व्यस्त हैं मोबाइल पर चैट करते है दोस्तों के साथ समय बिताना खेलना सब खत्म होता जा रहा है..हर छोटे-बड़े सवाल का जबाब इंटरनेट में ढूढना अपनी समझ बूझ को खत्म करने के बराबर है।इन्हीं वजहों से उन्हें इन चीजों से रोकना चाहो तो पहले खुद को रोकना पड़ रहा है....।
हटाएंरचना पर प्रतिक्रिया से विमर्श करने हेतु आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
आपका तहेदिल से धन्यवाद
बहुत सुंदर 👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद नीतू जी !
हटाएंबेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद, अनुराधा जी!
हटाएंआपका अभिनंदन है प्रिय सुधा जी। ब्लॉग से दूरी का ये सिलसिला मेरे साथ भी चल रहा है। अत्यंत रोचकता से आपने अपनी बात कही है। और ये बात कहकर आपने दुखती रग पर हाथ रख दिया है। ____
जवाब देंहटाएंहाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया !!!
सच में यही कड़वा सच है हमारी पीढी का। आप के लेखन की निरंतरता की कामना करती हूँ। सस्नेह। 🙏🌹🌹🌹🌹🌹
जी, रेणु जी! ब्लॉग या लेखन बच्चे कहाँ समझ पाते हैं बस उनके हिसाब से तो सब गेम खेल रहे हैं पढ़ना है तो किताबें पढ़ो...😀😀
हटाएंअच्छा आपके साथ भी ये सिलसिला चल रहा है फिर तो हम दुख के भी साथी हैं...हैं न...😩😅😅
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सस्नेह आभार ।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी !
हटाएंसादर आभार...
वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सुजाता जी !
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रेरक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद, अभिलाषा जी !
हटाएंसस्नेह आभार...
समय प्रबन्धन कर समय निकालिये और थोड़ा थोड़ा जोड़ते चलिये। अति किसी चीज की भली नहीं ये सच है।
जवाब देंहटाएंजी, जोशी जी! यही करने की कोशिश करती हूँ ....
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सादर आभार।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुखरित मौन पर मेरी रचना को साझा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
जवाब देंहटाएंउनसे कह देते हैं
"आप क्यों" कहकर वे तो
हमें ही चुप कर देते हैं
सही कहा आपने... होता तो यही है । मगर ब्लॉग की नाराजगी भी सही है । बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला आपका लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा ।
कहा आपने
हृदयतल से धन्यवाद मीना जी!
हटाएंसस्नेह आभार...
सुधा जी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बहुत सारे पहलू हैं.
जवाब देंहटाएंपर फिर कृपया निरंतरता बनाने का प्रयास करिये न।
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने।
जी ,श्वेता जी प्रयास के बाद ही आप सभी को पढ़ने का अवसर निकाल पाती हूँ ... लिखने से ज्यादा पढ़ना अच्छा लगता है....आपको कविता अच्छी लगी हृदयतल से धन्यवाद आपका आपकी सराहना लिखने को प्रेरित करती है
हटाएंसस्नेह आभार।
जवाब देंहटाएंहाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया
बिलकुल सही कहा आपने सुधा जी ,उनकी सलामती के लिए ही उनसे डर कर भी रहना पड़ता हैं ,बहुत ही खूबसूरती से आपने वर्णन किया है ,सुंदर रचना ,सादर नमन
जी कामिनी जी बस यही हाल है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार उत्साहवर्धन हेतु।
आभार भाई !...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब सुधा जी । बात तो आपने एकदम सही कही है ,लगता हे हम सबका हाल एक -सा ही है ।
जवाब देंहटाएंजी,लगभग सभी माँओं का तो यही हाल होता होगा...
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार
सस्नेह...
वाह ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग की नाराजगी और अपने मन का .... कितना सहज और आकर्षित अंदाज़ में लिखा है ...
सच है की कई बार बच्चों की खातिर ये सब करना होता है ... और करना भी चाहिए, जरूरी भी है ... समाज में समाज की सचाइयों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ... पर कहीं मन में एक बच्चा भी होना चाहिए ... कभी कभी उसकी खातिर, कभी यूँ ही ... नज़र बचा कर ब्लॉग पर आ जाना भी चाहिए ... चाहे शैतान मन के बच्च्चे की खातिर ...
बहुत लाजवाब और सुन्दर अभिव्यक्ति है ... बहुत खूब ...
जी, नासवा जी हृदयतल से धन्यवाद।
हटाएंसादर आभार...
वैसे इतने दिनों बाद आपको ब्लॉग पे देख कर अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंकभी कभी आने जाने में कोई बुराई नहीं है ...
जी, नासवा जी अपना बस चले तो यहीं रहें हमेशा
जवाब देंहटाएंपढने और लिखने में ही ....
सादर आभार आपका।
जीवन में अनेकों छोटी-मोती उलझनें रहतीं हैं उन्हीं में से एक आम समस्या को बड़ी सादगी के साथ उलझनों को बयां करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ राकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका.....
हटाएंबहुत दिनो बाद आपका शुभागमन हुआ आपके आशीर्वचन पाकर कृतकृत्य हूँ।
वाह !आदरणीया दीदी जी नि:शब्द हूँ
जवाब देंहटाएंसादर
आभारी हूँ अनीता जी !बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
हटाएंसुधा जी ,बहुत सहज स्वाभाविक उलाहना हैं । हम सभी एक ही नाव पर सवार हैं। मन मर्जी की एक-आध 'दंडी'मारने में कोई बुराई नहीँ है ।सुंदर लेखन की बधाई ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ पल्लवी जी!तहेदिल से धन्यवाद
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है
हे फ़ेसबुक ! अब तू ही मेरा चेहरा है !
जवाब देंहटाएंहे मेरे ब्लॉग ! तू पाठक रूपी ग्राहकों से सूनी दुकान है. फिर भी मेरे भावों की उड़ान है ! तू जीवन की मुस्कान है !
वाहवाह आप तो हमेशा ही कमाल का लिखते है गोपेश जी !
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपका
सादर आभार।
सुधा जी, बढ़िया ,ब्लॉग भी बेचारा क्या करे अपने रहनुमा का इंतजार उसे भी तो रहता है
जवाब देंहटाएंजी, सुधा जी! हार्दिक धन्यवाद आपका
हटाएंसस्नेह आभार...।
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
जवाब देंहटाएंजी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार संजय जी !
हटाएंसहज सुलभ सी अभिव्यक्ति सुधाजी ।
जवाब देंहटाएंहम तो सदा इंतजार में रहते हैं आपके, आपने ही अपने को वादों में उलझा लिया , पर आज खिंची आई तो हम भी खुश हुवे ।आते रहिए रुक रुक के ही सही ।
जी, कुसुम जी! हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका...
हटाएंबहुत सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद श्रीराम रॉय जी !
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है
जी ! जरूर आउंगी , पर आपका ब्लॉग मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं आता तो आपकी रचना का पता नहीं चल पाता ।
जवाब देंहटाएंरचना पढ़ते समय लगा "अरे ये तो मेरी कहानी है..!"
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने तक यात्रा करते-करते लगा कि–"अरे! यह तो बहुत लोगों की कहानी है।"
जी आदरणीय शायद ऐसा सभी माँँओं के साथ होता होगा
हटाएंहृदयतल से धन्ययवाद आपका
सादर आभार...