सुख का कोई इंतजार....
मेरे घर के ठीक सामने
बन रहा है एक नया घर
वहीं आती वह मजदूरन
हर रोज काम पर.....
देख उसे मन प्रश्न करता
मुझ से बार-बार......
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार...?
गोद में नन्हा बच्चा
फिर से है वह जच्चा
सिर पर ईंटों का भार
न सुख न सुविधा ऐसे में
दिखती बड़ी लाचार....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इन्तजार...?
बोझ तन से ढो रही वह
मन से बच्चे का ध्यान
पल-पल में होता उसको
उसकी भूख-प्यास का भान...
छाँव बिठाकर सिर सहलाकर
देती है माँ का प्यार...
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इन्तजार....?
जब सब सुस्ताते,थकान मिटाते
वह बच्चे पर प्यार लुटाती
बड़ी मुश्किल से बैठ जतन से
गोदी मेंं अपना बच्चा सुलाती
ना कोई शिकवा इसे अपने रब से
ना ही कोई गिला इसे किस्मत से
जो है उसी में जीती जाती...
अचरज होता देख के उसको
मुझको तो बार-बार......
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार...?
लगता है खुद की न परवाह उसको
वो माँ है सुख की नहीं चाह उसको
संतान सुख ही चरम सुख है उसका
उसे पालना ही अब कर्तव्य उसका
न मानेगी किस्मत से हार.....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार.......।
टिप्पणियाँ
न मानेगी किस्मत से हार.....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
सुख का कोई इंतजार.......।
बहुत सुन्दर ,सटीक एवं सारगर्भित भावपूर्ण रचना...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २२ "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" (चर्चा अंक-३७११) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सस्नेह आभार आपका।
सुख का कोई इन्तजार...?
सच ऐसे हाल में भी वो खुश रह लेते हैं ,मार्मिक सृजन सुधा जी ,सादर नमन
सुख का कोई इंतजार...?
हृदयस्पर्शी चिन्तन सुधा जी ..सुख का इन्तज़ार होता है उन्हें भी
मगर उनके हिस्से में परेशानियां ही अधिक होती हैं ।
सारगर्भित सृजन।