धन्य-धन्य कोदंड (कुण्डलिया छंद)

चित्र
💐 विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं💐 पुरुषोत्तम श्रीराम का, धनुष हुआ कोदंड । शर निकले जब चाप से, करते रोर प्रचंड ।। करते रोर प्रचंड, शत्रुदल थर थर काँपे। सुनकर के टंकार, विकल हो बल को भाँपे ।। कहे सुधा कर जोरि, कर्म निष्काम नरोत्तम । सर्वशक्तिमय राम,  मर्यादा पुरुषोत्तम ।। अति गर्वित कोदंड है,  सज काँधे श्रीराम । हुआ अलौकिक बाँस भी, करता शत्रु तमाम ।। करता शत्रु तमाम, साथ प्रभुजी का पाया । कर भीषण टंकार, सिंधु का दर्प घटाया ।। धन्य धन्य कोदंड, धारते जिसे अवधपति । धन्य दण्डकारण्य, सदा से हो गर्वित अति । सादर अभिनंदन 🙏🙏 पढ़िए प्रभु श्रीराम पर एक और रचना मनहरण घनाक्षरी छंद में ●  आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है

सुख का कोई इंतजार....


women working at construction site with her little son
                       चित्र :साभार गूगल से"

मेरे घर के ठीक सामने
बन रहा है एक नया घर
वहीं आती वह मजदूरन
हर रोज काम पर ।
देख उसे मन प्रश्न करता
मुझ से बार-बार ।
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इंतजार ?

गोद में नन्हा बच्चा
फिर से है वह जच्चा
सिर पर ईंटों का भार
न सुख न सुविधा ऐसे में
दिखती बड़ी लाचार..
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इन्तजार ?

बोझ तन से ढो रही वह
मन में बच्चे का ध्यान,
पल-पल में होता उसको
उसकी भूख-प्यास का भान ।
छाँव बिठाकर सिर सहलाकर
देती है माँ का प्यार..
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इन्तजार ?

जब सब हैं सुस्ताते
वह बच्चे पर प्यार लुटाती ।
बड़ी मुश्किल से बैठ जतन से
गोद मेंं उसको अपना सुलाती
वह ही तो उसका संसार..
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इन्तजार ?
 
ना कोई शिकवा इसे अपने रब से
ना ही कोई गिला है किस्मत से
जो है उसी में खुशी ढूँढती सी
संतुष्ट जीवन का सार..
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इंतजार...?

लगता है खुद की न परवाह उसको
वो माँ है सुख की नहीं चाह उसको
संतान सुख ही चरम सुख है उसका
उसे पालना ही है कर्तव्य उसका
न मानेगी किस्मत से हार..
होगा इसे भी जीवन में कहीं सुख का कोई इंतजार ।



पढ़िये मेरी एक और रचना इसी ब्लॉग पर

टिप्पणियाँ

  1. उसे पालना ही अब कर्तव्य उसका
    न मानेगी किस्मत से हार.....
    होगा इसे भी जीवन में कहीं
    सुख का कोई इंतजार.......।

    बहुत सुन्दर ,सटीक एवं सारगर्भित भावपूर्ण रचना...

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २२ "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" (चर्चा अंक-३७११) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को स्थान देने हेतू....
      सस्नेह आभार आपका।

      हटाएं
  3. होगा इसे भी जीवन में कहीं
    सुख का कोई इन्तजार...?

    सच ऐसे हाल में भी वो खुश रह लेते हैं ,मार्मिक सृजन सुधा जी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !

      हटाएं
  4. होगा इसे भी जीवन में कहीं
    सुख का कोई इंतजार...?
    हृदयस्पर्शी चिन्तन सुधा जी ..सुख का इन्तज़ार होता है उन्हें भी
    मगर उनके हिस्से में परेशानियां ही अधिक होती हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. मार्मिक यथार्थ दिखाती बहुत दर्द भरी रचना सुधा जी।
    सारगर्भित सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !

      हटाएं

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