मिन्नी और नन्हीं तितली
चित्र : साभार गूगल से कम्प्यूटर गेम नहीं मिलने पर मिन्नी बहुत बहुत रोई... गुस्से से लाल होकर वह घर से बाहर चली गयी.... घर नहीं आउंगी चाहे जो हो, ऐसा सोच के ऐंठ गयी, पार्क में जाकर कुछ बड़बड़ाकर वहीं बैंच पर बैठ गयी । रंग बिरंगे पंखो वाली इक नन्हींं सी तितली आयी पास के फूलों में वह बैठी, कभी दूर जा मंडरायी... नाजुक रंग बिरंगी पंखों को खोल - बन्द कर इतरायी थोड़ी दूर गई पल में वह अपनी सखियों को लायी.... भाँति-भाँति की सुन्दर तितलियां मिन्नी के मन को भायी । भूली मिन्नी रोना धोना, तितली के संग संग खेली कली फूल तितली से खुश, वह अब कम्प्यूटर गेम भूली मनभाते सुन्दर फूल देख, मिन्नी खुश हो खिलखिलाई तितली सी मंडराई वह खेली, गालों में लाली छायी । साँझ हुई तो सभी तितलियाँ दूर देश को चली गयी..... कल फिर आना,मिलक़र खेलेंगे बोली और ओझल हो गयी । खुशी-खुशी और सही समय पर मिन्नी वापस घर आयी..... तरो-ताजा और भली लगती थी लाड़-प्यार सबका पायी । रात सुहाने सपनों में बीती परी लोक की परियों संग... तितलियों के संग उड़ी वह रंगीले थे उस