सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

जीवन की राहों में

Way of life


बचपन से परीक्षाओं में उत्तीर्ण और कक्षा में अव्वल रहने वाले ज्यादातर लोगों को अपनी बुद्धिमानी पर कोई शक नहीं रहता । उन्हें विश्वास हो जाता है कि जीवन की अन्य परीक्षाएं भी वे अपनी बुद्धि के बल पास कर ही लेंगे । 

अक्सर उन्हें नहीं पता होता कि जीवन की ये परीक्षाएं कुछ अलग ही होंगी जिसमें प्रतिस्पर्धी अपने ही होंगे ।
जब पता चलता भी है तो वे सोचते हैं कि अपनों से ही प्रतिस्पर्धा में भला क्या डर !
हार भी अपनी तो जीत भी अपनी ।

वे प्रतिस्पर्धा में इसी भाव के साथ सम्मिलित होते है सबसे अपनापन और स्नेह के भाव लिए । 
और अपने प्रतिस्पर्धियों से दो कदम आगे बढ़ते ही अकेले हो जाते हैं ।

क्योंकि अपनों के साथ होने वाली ऐसी प्रतिस्पर्धाएं अक्सर आगे बढ़ने की होती ही नहीं, ये प्रतिस्पर्धाएं तो किसी को आगे ना बढ़ने देने की होती हैं । 
हाँ ! ये प्रतिस्पर्धाएं ऊपर उठने की भी नहीं होती, बल्कि ऊपर उठने वाले को र्खीचकर नीचे गिराने की होती हैं ।

जो ना पीछे धकेले जाते हैं और ना ही नीचे गिराए जाते हैं ,  वे अकेले हो जाते हैं जीवन की राहों में ।

और फिर अक्सर भुला दिये जाते हैं , अपनों द्वारा ।  या फिर त्याग दिए जाते हैं, गये बीते की तरह ।
उनके सभी अपने वहीं होतें है सब एक साथ , और जाने वाले का गढ़ देते है अपना मनचाहा प्रारूप ।

आगे बढ़ने वालों को आगे बढ़कर भी खुशी नहीं मिल पाती, बल्कि मलाल रहता है !
उन्हें लगता है कि उनका कोई अपना नहीं ,जो उनके सुख -दुख में साथ हो। वो अकेले हैं और अब उनका कोई प्रतिस्पर्धी भी नहीं।

मन की खिन्नता के चलते वे पीछे भी लौट नहीं पाते और आगे बढ़ना भी उनके लिए निरर्थक सा हो जाता है ।  फिर वे भी ठहर से जाते हैं तब तक, जब तक उन्हें बोध नहीं होता है कि हमारी असली प्रतिस्पर्धा तो अपनेआप से है । 




पढ़िए एक और रचना 



टिप्पणियाँ

  1. जीवन का सब से बड़ा सत्य यही है सुधा जी !बहुत सुन्दर चिन्तन परक सृजन ।

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    1. जी, मीना जी ! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।

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  2. बहुत सुंदर सुधा संदेश 🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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  3. सच है इंसान को अपनी सोच से लड़ना होता है ... आगे आना होता है ...

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