बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

जीवन की राहों में

Way of life


बचपन से परीक्षाओं में उत्तीर्ण और कक्षा में अव्वल रहने वाले ज्यादातर लोगों को अपनी बुद्धिमानी पर कोई शक नहीं रहता । उन्हें विश्वास हो जाता है कि जीवन की अन्य परीक्षाएं भी वे अपनी बुद्धि के बल पास कर ही लेंगे । 

अक्सर उन्हें नहीं पता होता कि जीवन की ये परीक्षाएं कुछ अलग ही होंगी जिसमें प्रतिस्पर्धी अपने ही होंगे ।
जब पता चलता भी है तो वे सोचते हैं कि अपनों से ही प्रतिस्पर्धा में भला क्या डर !
हार भी अपनी तो जीत भी अपनी ।

वे प्रतिस्पर्धा में इसी भाव के साथ सम्मिलित होते है सबसे अपनापन और स्नेह के भाव लिए । 
और अपने प्रतिस्पर्धियों से दो कदम आगे बढ़ते ही अकेले हो जाते हैं ।

क्योंकि अपनों के साथ होने वाली ऐसी प्रतिस्पर्धाएं अक्सर आगे बढ़ने की होती ही नहीं, ये प्रतिस्पर्धाएं तो किसी को आगे ना बढ़ने देने की होती हैं । 
हाँ ! ये प्रतिस्पर्धाएं ऊपर उठने की भी नहीं होती, बल्कि ऊपर उठने वाले को र्खीचकर नीचे गिराने की होती हैं ।

जो ना पीछे धकेले जाते हैं और ना ही नीचे गिराए जाते हैं ,  वे अकेले हो जाते हैं जीवन की राहों में ।

और फिर अक्सर भुला दिये जाते हैं , अपनों द्वारा ।  या फिर त्याग दिए जाते हैं, गये बीते की तरह ।
उनके सभी अपने वहीं होतें है सब एक साथ , और जाने वाले का गढ़ देते है अपना मनचाहा प्रारूप ।

आगे बढ़ने वालों को आगे बढ़कर भी खुशी नहीं मिल पाती, बल्कि मलाल रहता है !
उन्हें लगता है कि उनका कोई अपना नहीं ,जो उनके सुख -दुख में साथ हो। वो अकेले हैं और अब उनका कोई प्रतिस्पर्धी भी नहीं।

मन की खिन्नता के चलते वे पीछे भी लौट नहीं पाते और आगे बढ़ना भी उनके लिए निरर्थक सा हो जाता है ।  फिर वे भी ठहर से जाते हैं तब तक, जब तक उन्हें बोध नहीं होता है कि हमारी असली प्रतिस्पर्धा तो अपनेआप से है । 




पढ़िए एक और रचना 



टिप्पणियाँ

  1. जीवन का सब से बड़ा सत्य यही है सुधा जी !बहुत सुन्दर चिन्तन परक सृजन ।

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    1. जी, मीना जी ! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।

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  2. बहुत सुंदर सुधा संदेश 🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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  3. सच है इंसान को अपनी सोच से लड़ना होता है ... आगे आना होता है ...

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