पावस के कजरारे बादल
पावस के कजरारे बादल,
जमकर बरसे कारे बादल ,
उमस धरा की मिटा न पाए,
बरस बरस कर हारे बादल ।
घिरी घटा गहराये बादल,
भर भर के जल लाये बादल,
तीव्र ताप से तपी धरा पर,
मधुर सुधा बरसाये बादल ।
सूरज से घबराए बादल,
चढ़ी धूप छितराए बादल,
उमड़-घुमड़ पहुँचे गिरि कानन,
घन घट फट पछताए बादल ।
भली नहीं अतिवृष्टि बादल,
करे याचना सृष्टि बादल,
कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ?
समता की रख दृष्टि बादल !
छोड़ भी दो मनमानी बादल,
बहुत हुई नादानी बादल,
बरसो ऐसा कि सब बोलें,
पावस भली सुहानी बादल ।
पढ़िए बादलों पर आधारित मेरी एक और रचना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंभली नहीं अतिवृष्टि बादल,
जवाब देंहटाएंकरे याचना सृष्टि बादल,
कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ?
समता की रख दृष्टि बादल !
अति सुन्दर !! लाजवाब सृजन सुधा जी !बादलों की मनुहार और समझाइश भरे भाव बहुत अच्छे लगे ।
लाजबाब सृजन
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