सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

पावस के कजरारे बादल

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पावस के कजरारे बादल,

जमकर बरसे कारे बादल ,

उमस धरा की मिटा न पाए,

बरस बरस कर हारे बादल ।


घिरी घटा गहराये बादल,

भर भर के जल लाये बादल,

तीव्र ताप से तपी धरा पर,

मधुर सुधा बरसाये बादल ।


सूरज से घबराए बादल,

चढ़ी धूप छितराए बादल,

उमड़-घुमड़ पहुँचे गिरि कानन,

घन घट फट पछताए बादल ।


भली नहीं अतिवृष्टि बादल,

करे याचना सृष्टि बादल,

कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ?

समता की रख दृष्टि बादल !


छोड़ भी दो मनमानी बादल,

बहुत हुई नादानी बादल,

बरसो ऐसा कि सब बोलें,

पावस भली सुहानी बादल ।



पढ़िए बादलों पर आधारित मेरी एक और रचना

● ये भादो के बादल



टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. भली नहीं अतिवृष्टि बादल,
    करे याचना सृष्टि बादल,
    कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ?
    समता की रख दृष्टि बादल !
    अति सुन्दर !! लाजवाब सृजन सुधा जी !बादलों की मनुहार और समझाइश भरे भाव बहुत अच्छे लगे ।

    जवाब देंहटाएं

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