आई है बरसात (रोला छंद)

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अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित रोला छंद आया सावन मास,  झमाझम बरखा आई। रिमझिम पड़े फुहार, चली शीतल पुरवाई। भीनी सौंधी गंध, सनी माटी से आती। गिरती तुहिन फुहार, सभी के मन को भाती ।। गरजे नभ में मेघ, चमाचम बिजली चमके । झर- झर झरती बूँद, पात मुक्तामणि दमके । आई है बरसात,  घिरे हैं बादल काले । बरस रहे दिन रात, भरें हैं सब नद नाले ।। रिमझिम पड़े फुहार, हवा चलती मतवाली । खिलने लगते फूल, महकती डाली डाली । आई है बरसात, घुमड़कर बादल आते । गिरि कानन में घूम, घूमकर जल बरसाते ।। बारिश की बौछार , सुहानी सबको लगती । रिमझिम पड़े फुहार, उमस से राहत मिलती । बहती मंद बयार , हुई खुश धरती रानी । सजी धजी है आज, पहनकर चूनर धानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏 पढ़िए बरसात पर एक और रचना निम्न लिंक पर ●  रिमझिम रिमझिम बरखा आई

अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं

 

Poor womam


पोषी जो संतति तूने,  उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।

अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।


मान सभी को इतना देती ,तुझको माने ना कोई ।

पूरे घर की धुरी है तू, फिर भी कुछ तेरे हाथ नहीं ।


एक भिखारी दर पे आ, पल में मजबूरी भाँप गया ।

खाली लौट गया बोला, " माता कोई बात नहीं"।


पंख दिये जिनको तूने, उड़ने की नसीहत देते वे ।

ममता की घनेरी छाँव दिखी, क्षमता तेरी ज्ञात नहीं ।


पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।

अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।


जनमों की उलझन है ये , धर धीरज ही सुलझाना तू ।

अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं ।



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सुख का कोई इंतजार


टिप्पणियाँ

  1. दिगंबर नासवा1 जुलाई 2024 को 7:37 pm बजे

    बहुत ही गहरी और भावपूर्ण …

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  2. प्रेरणादायक पंक्तियाँ

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  3. द‍िल चीर रही हैं आपकी ल‍िखी ये पंक्त‍ियां क‍ि-
    ''पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।''
    और एक ज‍िज‍िव‍िषा में समेट हौसलों को नई उड़ान दे रही हैं सुधा जी....वाह क्या खूब ल‍िखा

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    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आपका अलकनंदा जी !

      हटाएं
  4. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, सुधा दी।

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  5. पोषी जो संतति तूने, उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।
    अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।
    हर पंक्ति बहुत सार्थक और विचार करने को प्रेरित करती हुई।

    जवाब देंहटाएं
  6. हृदयतल से धन्यवाद आपका प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं
  7. रेखा श्रीवास्तव4 जुलाई 2024 को 2:22 pm बजे

    नारी के जीवन की दायित्वों और बंधनों को समर्पण में बाँध कर बहुत अच्छी रचना रची। हार्दिक बधाई !

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  8. प्रिय सुधा, सबका संबल बनने की धुन में अपने व्यक्तित्व को ही गँवा देती हैं नारी! बाहर जाती है तो उसकी नैतिकता और मूल्य दाव पर लग जाते हैं! सच में अपना मूल्यांकन और स्वाभिमान पर अधिकार के साथ नैतिकता के साथ कोई समझौता ना हों ये बेहद जरूरी है! एक मर्मांतक रचना जो गहरे तक उतर गई

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