बीती ताहि बिसार दे

चित्र
  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं

 

Poor womam


पोषी जो संतति तूने,  उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।

अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।


मान सभी को इतना देती ,तुझको माने ना कोई ।

पूरे घर की धुरी है तू, फिर भी कुछ तेरे हाथ नहीं ।


एक भिखारी दर पे आ, पल में मजबूरी भाँप गया ।

खाली लौट गया बोला, " माता कोई बात नहीं"।


पंख दिये जिनको तूने, उड़ने की नसीहत देते वे ।

ममता की घनेरी छाँव दिखी, क्षमता तेरी ज्ञात नहीं ।


पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।

अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।


जनमों की उलझन है ये , धर धीरज ही सुलझाना तू ।

अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं ।



 पढ़िये एक और रचना इसी ब्लॉग पर

सुख का कोई इंतजार


टिप्पणियाँ

  1. दिगंबर नासवा1 जुलाई 2024 को 7:37 pm बजे

    बहुत ही गहरी और भावपूर्ण …

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेरणादायक पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  3. द‍िल चीर रही हैं आपकी ल‍िखी ये पंक्त‍ियां क‍ि-
    ''पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।''
    और एक ज‍िज‍िव‍िषा में समेट हौसलों को नई उड़ान दे रही हैं सुधा जी....वाह क्या खूब ल‍िखा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आपका अलकनंदा जी !

      हटाएं
  4. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. पोषी जो संतति तूने, उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।
    अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।
    हर पंक्ति बहुत सार्थक और विचार करने को प्रेरित करती हुई।

    जवाब देंहटाएं
  6. हृदयतल से धन्यवाद आपका प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं
  7. रेखा श्रीवास्तव4 जुलाई 2024 को 2:22 pm बजे

    नारी के जीवन की दायित्वों और बंधनों को समर्पण में बाँध कर बहुत अच्छी रचना रची। हार्दिक बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय सुधा, सबका संबल बनने की धुन में अपने व्यक्तित्व को ही गँवा देती हैं नारी! बाहर जाती है तो उसकी नैतिकता और मूल्य दाव पर लग जाते हैं! सच में अपना मूल्यांकन और स्वाभिमान पर अधिकार के साथ नैतिकता के साथ कोई समझौता ना हों ये बेहद जरूरी है! एक मर्मांतक रचना जो गहरे तक उतर गई

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं