अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं

 

Poor womam


पोषी जो संतति तूने,  उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।

अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।


मान सभी को इतना देती ,तुझको माने ना कोई ।

पूरे घर की धुरी है तू, फिर भी कुछ तेरे हाथ नहीं ।


एक भिखारी दर पे आ, पल में मजबूरी भाँप गया ।

खाली लौट गया बोला, " माता कोई बात नहीं"।


पंख दिये जिनको तूने, उड़ने की नसीहत देते वे ।

ममता की घनेरी छाँव दिखी, क्षमता तेरी ज्ञात नहीं ।


पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।

अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।


जनमों की उलझन है ये , धर धीरज ही सुलझाना तू ।

अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं ।



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टिप्पणियाँ

  1. दिगंबर नासवा1 जुलाई 2024 को 7:37 pm बजे

    बहुत ही गहरी और भावपूर्ण …

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  2. अत्यंत संवेदनशील भावों से भरी प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी।
    कुछ अव्यक्त भावों को आपकी लेखनी बखूबी व्यक्त कर जाती है।
    सस्नेह।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेरणादायक पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  4. द‍िल चीर रही हैं आपकी ल‍िखी ये पंक्त‍ियां क‍ि-
    ''पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।''
    और एक ज‍िज‍िव‍िषा में समेट हौसलों को नई उड़ान दे रही हैं सुधा जी....वाह क्या खूब ल‍िखा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आपका अलकनंदा जी !

      हटाएं
  5. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. पोषी जो संतति तूने, उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।
    अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।
    हर पंक्ति बहुत सार्थक और विचार करने को प्रेरित करती हुई।

    जवाब देंहटाएं
  7. रेखा श्रीवास्तव4 जुलाई 2024 को 2:22 pm बजे

    नारी के जीवन की दायित्वों और बंधनों को समर्पण में बाँध कर बहुत अच्छी रचना रची। हार्दिक बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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