अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं
पोषी जो संतति तूने, उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।
अंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।
मान सभी को इतना देती ,तुझको माने ना कोई ।
पूरे घर की धुरी है तू, फिर भी कुछ तेरे हाथ नहीं ।
एक भिखारी दर पे आ, पल में मजबूरी भाँप गया ।
खाली लौट गया बोला, " माता कोई बात नहीं"।
पंख दिये जिनको तूने, उड़ने की नसीहत देते वे ।
ममता की घनेरी छाँव दिखी, क्षमता तेरी ज्ञात नहीं ।
पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।
अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।
जनमों की उलझन है ये , धर धीरज ही सुलझाना तू ।
अपना मूल्यांकन हक तेरा, नैतिकता पर आघात नहीं ।
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बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी !
हटाएंबहुत सुंदर👏
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आपका ।
हटाएंबहुत ही गहरी और भावपूर्ण …
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !
हटाएंअत्यंत संवेदनशील भावों से भरी प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंकुछ अव्यक्त भावों को आपकी लेखनी बखूबी व्यक्त कर जाती है।
सस्नेह।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदयतल से धन्यवाद आपका प्रिय श्वेता !
हटाएंभाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी !
हटाएंप्रेरणादायक पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंदिल चीर रही हैं आपकी लिखी ये पंक्तियां कि-
जवाब देंहटाएं''पर तू अपनी कोशिश से, अपना लोहा मनवायेगी ।अब जागी है तो भोर तेरी, दिन बाकी है अब रात नहीं।''
और एक जिजिविषा में समेट हौसलों को नई उड़ान दे रही हैं सुधा जी....वाह क्या खूब लिखा
तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आपका अलकनंदा जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार एवं धन्यवाद आ.आलोक जी !
हटाएंजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी !
हटाएंपोषी जो संतति तूने, उसमें भी क्यों जज्बात नहीं ।
जवाब देंहटाएंअंतरिक्ष तक परचम तेरा, पर घर में औकात नहीं।
हर पंक्ति बहुत सार्थक और विचार करने को प्रेरित करती हुई।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीनाजी !
हटाएंनारी के जीवन की दायित्वों और बंधनों को समर्पण में बाँध कर बहुत अच्छी रचना रची। हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.रेखा जी !
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