मौसम बदलने लगा धीरे-धीरे
जगा आँख मलने लगा धीरे-धीरे ।
जमाना जो आगे बहुत दूर निकला
रुका , साथ चलने लगा धीरे - धीरे।
हुआ चाँद रोशन खिली सी निशा है
कि बादल जो छँटने लगा धीरे-धीरे ।
खुशी मंजिलों की मनायें या मानें
सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।
अवचेतन में आशा का दीपक जला तो
मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।
हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है
मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।
अनावृत हुआ सच भले देर से ही
लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।
39 टिप्पणियां:
ग़ज़ल अच्छी लिखी है आपने।
सादर आभार एवं धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.सर ! मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद मंच पर चयन करने हेतु ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अवचेतन में आशा का दीपक जला तो
मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी !
कभी-कभी कोई बात जो मन में घुमड़ रही होती है,वही अचानक सामने आ जाती है. पढ़ कर ऐसा लगा. बादल छंट गया धीरे-धीरे. अभिनन्दन !
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी !
जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
तहेदिल से धन्यवाद आ.शास्त्री जी ! मेरी रचना को चयन करने के लिए ।
सादर आभार ।
खुशी मंजिलों की मनायें या मानें
सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।
एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
और फिर पढ़ा धीरे धीरे
बहुत सुंदर रचना!!
वाह्ह दी लाज़वाब गज़ल लिखी है आपने।
हर शेर मुकम्मल और बेहतरीन है।
सस्नेह प्रणाम।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार रूपा जी !
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !
गंगा-जमुनी तहज़ीब की नुमाइंदगी करने वाली ज़ुबान में ग़ज़ल पढ़ते वक़्त पहले तो दिलो-दिमाग में खटकती है फिर मन को ये भाने लगती है - धीरे-धीरे है !
अनावृत हुआ सच भले देर से ही
लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।
बहुत सुन्दर रचना यह सच है कि यदि भरम टूट जाए तभी सत्य से परिचय हो सकता है।साधुवाद।
वाह! सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर !
सस्नेह आभार भाई !
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार शुभा जी !
सुरा - सा सुधा रस,
जो मन में है छलका।
बहकने लगी है,
गजल धीरे - धीरे।
बहुत सुंदर ग़ज़ल
वाह! बहुत खूबसूरत 😍
सपनों का सफर शुरू हुआ है धीरे- धीरे
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूबसूरत सृजन।
लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ते गए
असर हुआ हम पर धीरे धीरे ।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय मनीषा !
दिल से धन्यवाद एवं आभार रितु जी !
सादर आभार एवं धन्यवाद आ.संगीता जी !
सुंदर काव्य सृजन
एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
और फिर पढ़ा धीरे धीरे.......बहुत सुंदर रचना!!
बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।
बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।
बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी !
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद संजय जी !
दिल से धन्यवाद आपका ।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है
मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।
ये विश्वास बढ़ता रहें धीरे धीरे।
बहुत खूबसूरत गज़ल।
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