सोमवार, 24 अप्रैल 2023

सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे

 

stair night

मौसम बदलने लगा धीरे-धीरे

जगा आँख मलने लगा धीरे-धीरे ।


जमाना जो आगे बहुत दूर निकला

रुका , साथ चलने लगा धीरे - धीरे।


हुआ चाँद रोशन खिली सी निशा है

कि बादल जो छँटने लगा धीरे-धीरे ।


खुशी मंजिलों की मनायें या मानें

सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।


अवचेतन में आशा का दीपक जला तो

 मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।


हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है

मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।


अनावृत हुआ सच भले देर से ही

लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।




39 टिप्‍पणियां:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

ग़ज़ल अच्छी लिखी है आपने।

Sudha Devrani ने कहा…

सादर आभार एवं धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.सर ! मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद मंच पर चयन करने हेतु ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)  पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Meena Bhardwaj ने कहा…

अवचेतन में आशा का दीपक जला तो
मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी !

नूपुरं noopuram ने कहा…

कभी-कभी कोई बात जो मन में घुमड़ रही होती है,वही अचानक सामने आ जाती है. पढ़ कर ऐसा लगा. बादल छंट गया धीरे-धीरे. अभिनन्दन !

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी !

Sudha Devrani ने कहा…

जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.शास्त्री जी ! मेरी रचना को चयन करने के लिए ।
सादर आभार ।

Rupa Singh ने कहा…

खुशी मंजिलों की मनायें या मानें
सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।

एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
और फिर पढ़ा धीरे धीरे

बहुत सुंदर रचना!!

Sweta sinha ने कहा…

वाह्ह दी लाज़वाब गज़ल लिखी है आपने।
हर शेर मुकम्मल और बेहतरीन है।
सस्नेह प्रणाम।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार रूपा जी !

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !

बेनामी ने कहा…

गंगा-जमुनी तहज़ीब की नुमाइंदगी करने वाली ज़ुबान में ग़ज़ल पढ़ते वक़्त पहले तो दिलो-दिमाग में खटकती है फिर मन को ये भाने लगती है - धीरे-धीरे है !

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

अनावृत हुआ सच भले देर से ही

लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।
बहुत सुन्दर रचना यह सच है कि यदि भरम टूट जाए तभी सत्य से परिचय हो सकता है।साधुवाद।

शुभा ने कहा…

वाह! सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर !

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई !

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार शुभा जी !

विश्वमोहन ने कहा…

सुरा - सा सुधा रस,
जो मन में है छलका।
बहकने लगी है,
गजल धीरे - धीरे।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल

Manisha Goswami ने कहा…

वाह! बहुत खूबसूरत 😍

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सपनों का सफर शुरू हुआ है धीरे- धीरे
सुन्दर प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत सृजन।
लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ते गए
असर हुआ हम पर धीरे धीरे ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी !

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय मनीषा !

Sudha Devrani ने कहा…

दिल से धन्यवाद एवं आभार रितु जी !

Sudha Devrani ने कहा…

सादर आभार एवं धन्यवाद आ.संगीता जी !

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुंदर काव्य सृजन

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
और फिर पढ़ा धीरे धीरे.......बहुत सुंदर रचना!!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद संजय जी !

Sudha Devrani ने कहा…

दिल से धन्यवाद आपका ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है
मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।

ये विश्वास बढ़ता रहें धीरे धीरे।
बहुत खूबसूरत गज़ल।

हो सके तो समभाव रहें

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