गुरुवार, 5 जनवरी 2023

वसुधा अम्बर एक हो गये


winter season

दिग-दिग्गज हैं अलसाये से

खग मृग भी सब सोये से हैं ।

थर थर थर है शिशिर काँपती,

साग-पात सब रोये से हैं ।


लता वृक्ष सब मुरझाए से,

पात बिछड़ने का झेलें गम ।

मारी-मारी फिरें तितलियाँ,

फूलों का मकरंद गया जम ।


छुपम-छुपाई खेल रहे रवि,

और पवन पुरजोर चल रही ।

दुबके सोये पता ना चलता,

रात कटी कब भोर टल रही ।


दादुर मोर सभी चुप-चुप हैं,

कोयल मैना कहीं खो गये ।

मौन मिलन आलिंगनबद्ध से

वसुधा अम्बर एक हो गये ।


सकल सृष्टि स्तब्ध खड़ी सी,

बाट जोहती ज्यों बसंत का ।

श्रृंगारित होगी दुल्हन सी,

शुभागमन हो रति अनंग का ।



25 टिप्‍पणियां:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपकी यह कविता निश्चय ही प्रशंसनीय है, प्रभावशाली है।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सकल सृष्टि स्तब्ध खड़ी सी,
बाट जोहती ज्यों बसंत का ।
श्रृंगारित होगी दुल्हन सी,
शुभागमन हो रति अनंग का ।
... शीत ऋतु का सजीव और मनोरम चित्रण कर दिया आपने सुधा जी, को दिख रहा वही पढ़ भी रही । सुंदर कविता के लिए बधाई प्रिय सखी ।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बढ़िया रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ठिठुर रहा जन जीवन सारा
ये उत्तर भारत की बात है ।
कट जाता है दिन फिर भी
शामत आती जब रात है ।
सर्दी का सजीव चित्रण करती सुंदर रचना । बस बसंत आने को है , तब तक शीत लहर झेलें ।

Arun sathi ने कहा…

साधु साधु

Banjaarabastikevashinde ने कहा…

नमन संग आभार आपका, इस इकाई अंक वाले, ० से ९ डिग्री तक के तापमान वाले क्षेत्रों में जीने के लिए बाध्य मुझ जैसे प्राणियों को अपने अनूठे बिम्बों से सुसज्जित अपनी रचना की ताप से कुछ-कुछ प्राण-वायु प्रदान करने हेतु ..
"मौन मिलन आलिंगनबद्ध से

वसुधा अम्बर एक हो गये ।"
....
रजाई-कम्बल ओढ़-ओढ़ कर
सभी दुबक-दुबक कर सो गये । .. (गुस्ताख़ी माफ़ 🙏) .. बस यूँ ही ...

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद । आपको भी नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता ! सुन्दर प्रतिक्रिया एवं रचना चयन करने के लिए ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जितेन्द्र जी !

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना सखी सुंदर बिंब ,भाव शरद का जीवंत चित्रण

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत सुन्दर सुधा जी !
आपकी प्यारी सी कविता पढ़ कर ठण्ड का प्रकोप काफ़ी कम हो गया है.

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, शीत ऋतु में सब अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहत में , मनोहारी चित्रण।

मन की वीणा ने कहा…

वाह! सुधाजी यथार्थ सामायिक शीत का इतना सटीक सुंदर चित्रण , बहुत सुंदर कविता।
अभिनव सार्थक सृजन।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

वसुधा अम्बर एक हो गये ..बेहतरीन चित्रण शीत ऋतु का

विश्वमोहन ने कहा…

नि:शब्द!!!

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुंदर सार्थक रचना ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ll

शुभा ने कहा…

अद्भुत!शरद ऋतु का इतना खूबसूरत चित्रण..वाह!!सुधा जी ।

आतिश ने कहा…

आदरणीय मैम नमस्ते!
अति सुन्दर ! भावपूर्ण पक्तियां
कृप्या मेरे पोस्ट पर पधारे और अपना अनुभव साझा करें / / आपकी प्रतिक्रिया ऊर्जातुल्य होगी ॥

"थर थर थर है शिशिर काँपती,
साग-पात सब रोये से हैं ।

मारी-मारी फिरें तितलियाँ,
फूलों का मकरंद गया जम । "


Meena Bhardwaj ने कहा…

लता वृक्ष सब मुरझाए से,
पात बिछड़ने का झेलें गम ।
मारी-मारी फिरें तितलियाँ,
फूलों का मकरंद गया जम ।
शीत ऋतु की ठिठुरन का सजीव चित्रण सुधा जी! मनमोहक एवं अभिराम सृजन ।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

Rupa Singh ने कहा…

ठिठुरती ठंड का सजीव चित्रण...बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

Tarun / तरुण / தருண் ने कहा…

आदरणीया सुधा देवरनी जी ! प्रणाम !

सकल सृष्टि स्तब्ध खड़ी सी,
बाट जोहती ज्यों बसंत का ।

बहुत ही सुन्दर , शुद्ध हिंदी में लिखी , लयात्मक प्रस्तुति , अभिनन्दन

प्रतिक्रया में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूंगा !
आपको मकर सक्रांति एवं उत्तरायण की हार्दिक शुभकामनाएँ !
जय श्री राम !
ईश्वर आपके प्रयास क पूर्णता एवं श्रेष्ठता प्रदान करे , शुभकामनाएं !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

धारद जब आती है ऐसी ही आती है ... कोहरे का संसार, ठिठुरन, जाने क्या क्या लाती है ...
लाजवाब रचना है ...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वसंत के आगमन हेतु प्रकृति मंच तैय्यार कर रही है -परिवर्तन का क्रम चल रहा है.

Atoot bandhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

हो सके तो समभाव रहें

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