गई शरद आया हेमंत
गई शरद आया हेमंत ,
हुआ गुलाबी दिग दिगंत ।
अलसाई सी लोहित भोर,
नीरवता पसरी चहुँ ओर ।
व्योम उतरता कोहरा बन,
धरा संग जैसे आलिंगन ।
तुहिन कण मोती से बिखरे,
पल्लव पुष्प धुले निखरे ।
उजली छिटकी गुनगुनी धूप,
प्रकृति रचती नित नवल रूप ।
हरियाये सुन्दर सब्ज बाग,
पालक बथुआ सरसों के साग ।
कार्तिक,अगहन व पूस मास,
पंछी असंख्य उतरे प्रवास ।
हुलसित सुरभित यह ऋतु हेमंत
आगत शिशिर, स्वागत वसंत ।।
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर सृजन।
व्योम उतरता कोहरा बन,
धरा संग जैसे आलिंगन ।
तुहिन कण मोती से बिखरे,
पल्लव पुष्प धुले निखरे ।
आगत शिशिर, स्वागत वसंत ।।
प्राकृतिक छटा बिखेरती मनभावन सृजन सुधा जी 🙏
अभिनन्दन आदरणीया !
जय श्री कृष्ण !