धार्मिक परम्पराओं एवं रीति रिवाजों पर बने हायकु सैनर्यु कहलाते हैं । हायकु की तरह ही सत्रह वर्णीय इस लघु कविता में तीन पंक्तियों में क्रमशः पाँच, सात, पाँच वर्णों की त्रिपदी में भावों की अभिव्यक्ति होती है।अतः सैनर्यु भी हायकु की तरह एक लघु कविता है जिसमें लघुता ही इसका गुण है और लघुता ही सीमा भी ।
प्राकृतिक बिम्ब एवं कीगो (~) की अनिवार्यता के साथ कुछ सैनर्यु पर मेरा प्रथम प्रयास--
【1】
अक्षय तीज~
मूर्ति निकट खत
रखे विद्यार्थी
【2】
ईद का चांद~
बालक मेमने को
गोद में भींचे
【3】
कार्तिक साँझ~
पालकी में तुलसी
बाराती संग
【4】
कार्तिक साँझ~
कदली पात पर
हल्दी अक्षत
【5】
दुर्गा अष्टमी ~
बकरा सिर लेके
मूर्तिपूजक
【6】
विवाहोत्सव~
शीश पे घट लिए
धार पूजन
(धार = पानी का प्राकृतिक स्रोत)
18 टिप्पणियां:
सुधा दी, शब्दो की इतनी कम मात्रा में अपनी भावनाएं व्यक्त करना सचमुच बहुत ही दुष्कर कार्य है। बहुत सुंदर सैनर्यु।
तहेदिल से धन्यवाद ए्ं आभार ज्योति जी, त्वरित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
सुंदर सैनर्यु...
सुन्दर विचार
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी !
सादर आभार एवं धन्यवाद आ. जोशी जी!
सादर धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
प्रथम प्रयास
सैनरयु लिखने का
अति सुंदर !
तहेदिल से धन्यवाद डॉ. रश्मि जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सैनर्यू -
शब्दों की सरस धार,
स्वाद सुधा-सा!...... एक नयी विधा से परिचय कराने का सादर आभार सुधाजी!!!
सुंदर सरस हाइकु।
सराहनीय प्रयास।
लाजवाब!
आज एक नया शब्द आपके बहाने जान गए हम ...
सभी बहुत लाजवाब हाइकू हैं ...
पहली बार जाना हाइकु के इस प्रकार को. बहुत सुन्दर लिखा आपने। बधाई।
सैनर्यु ~ पहली बार इस विधा के विषय में जानकारी मिली । आभार ।
सुंदर रचनाएँ ।
सार्थक एवं सुन्दर प्रयास।
पहली बार सैनर्यु के बारे में पढ़ा, वाकई छोटी छोटी पंक्तियों में एक सम्पूर्ण चित्र को उकेरने की कला है यह
लाजवाब हाइकू हैं
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