शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

पुस्तक समीक्षा - 'समय साक्षी रहना तुम'

 

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Book review
'समय साक्षी रहना तुम'

अतल गहराइयों में आत्मा की   

जो भरेगा उजास नित - नित

गुजर जायेंगे दिन महीने

ना होगा आँखों से ओझल किंचित

हो न जाऊँ तनिक मैं विचलित

प्राणों में धीरज भर देना तुम

अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम ,

पर समय साक्षी  रहना तुम!!

जी हाँ! दोस्तों! समय साक्षी रहना तुम' ये 'क्षितिज' की उजास है जो ब्लॉग जगत से अब साहित्य जगत तक चमकने लगी है।


*समय साक्षी रहना तुम* पूर्णतया साहित्यिक पुस्तक ब्लॉग जगत की प्रतिष्ठित लेखिका एवं मेरी प्रिय सखी परम विदुषी*रेणु बाला जी*की प्रथम पुस्तक के रूप में सभी साहित्य प्रेमियों एवं सुधि पाठकों के लिए एक अनमोल भेंट है।

बहुत ही मनमोहक कवर पृष्ठ के साथ प्रथम पेज में लेखिका ने अपने स्नेहमयी एवं संस्कारवान स्वभाव के अनुरूप इसे अपने बड़ों को अपने जीवन का जीवट एवं सशक्त स्तम्भ बताते हुए सादर समर्पित किया है

तदन्तर  सुप्रसिद्ध ब्लॉगर एवं स्थापित साहित्यकार अत्यंत सम्मानीय आदरणीय विश्वमोहन जी की चमत्कृत लेखनी से उदृत भूमिका इसकी महत्ता को बढ़ाते हुए इसे और भी रूचिकर बना रही है।

साथ हीअन्य प्रसिद्ध ब्लॉगर साथियों के आत्मीय उद्गारों के साथ विषय सूचि को चार भागों में विभाजित किया गया है।

जिसमें माँ सरस्वती की वंदना के साथ शुरू प्रत्येक भाग में एक से बढ़कर हृदयस्पर्शी एवं मानवीय संवेदनाओं को जगाती रिश्तों के स्नेहिल बंधन, कुदरत के पैगाम, भाव प्रवाह,और समसामयिक विषयों पर आधारित सहज सरल भाषा में कुल मिलाकर 65 रचनाएं सुसज्जित हैं।

प्रथम भाग में कवयित्री ने देश की संस्कृति के अनुरूप माँ सरस्वती की ही नहीं अपितु पूज्य गुरुदेव के साथ -साथ अपने गाँव,  देश के प्रहरी हिमालय एवं देश की रक्षा में जान न्योछावर करते शहीदों का भी वंदन किया है ।  

आज जब पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित युवाओं में संस्कृति का ह्रास दिख रहा है,तब अति आवश्यकता है ऐसे साहित्य की जो याद दिला सके हमें हमारी संस्कृति और संस्कार।   

जहाँ जीव मात्र तो क्या सृष्टि के कण -कण में प्रभु का वास माना जाता है ....पूज्यनीय रही है देश एवं जन्मस्थान की माटी युगों -युगों से।

स्वयं भगवान श्री राम जब चौदह वर्षों के वनवास हेतु निकले तो साथ में अपनी अयोध्या की मिट्टी भी पोटली में साथ ले गये ।और नित्यप्रति उसका वंदन करते थे।

ऐसे ही हमारे ग्रंथ एवं इतिहास साक्ष्य हैं हमारी संस्कृति के जहाँ पेड़ पौधे पर्वत नदियों एवं सभी चर अचराचर का सम्मान एवं वंदन किया जाता है।

फिर बेटी की तो बात ही क्या...असीम अनुराग होता है अपने मायके से उसे...।अपने गाँव की वंदना में कवयित्री गाँव की माटी तो क्या वहाँ की सुबह शाम का भी वंदन करती है...अपने गाँव एवं सभी गाँववालों की खुशहाली की कामना में बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ...👇

ना आये बला कोई ना हो कभी बेहाल तू

ले बेटी की दुआ सदा रहे खुशहाल तू

रौशन रहे उजालों से सुबह शामें तेरी

अपनी चौखट पे सजा खुशी की ताल तू

लहराती रहें हरी फसलें तेरी

मुरझाये ना कभी हरियाला सावन तेरा

तुझसे अलग कहाँ कोई परिचय मेरा?

तेरे संस्कारों में पगा तन-मन मेरा!!!

सभी पूज्यनीयों के वंदन के बाद दूसरे भाग में जीवन के बजूद से जुडे़ सबसे महत्वपूर्ण हिस्से हमारे रिश्ते और इनसे जुड़ी बहुत ही भावपूर्ण कविताएं है...

👇👇👇

माँ बनकर ही मैंने 

तेरी ममता को पहचाना है

माँ बेटी का दर्द का रिश्ता 

क्या होता ये जाना है

दिल को छूती इस भावपूर्ण कविता की सराहना के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास....ऐसे ही हर एक रिश्ते पर एक से बढ़कर उत्कृष्ट रचनाएं 'स्मृति शेष पिताजी', बिटिया, ये तेरी मुस्कान लाडली, धीरे-धीरे पग धरो सजनिया, नवजात शिशु के लिए, ओ नन्हें शिशु, नन्हे बालक, जिस पहर से, बूढ़े बाबा, भाई! तुम हो अनमोल, घर से भागी बेटी के नाम।सभी रचनाएं नेह एवं अपनेपन से ऐसी ओतप्रोत हैं कि पाठक इनमें स्वयं के देखने लगे।

तृतीय भाग-कुदरत के पैगाम में आप समझ सकतें हैं कि कुदरत पर आधारित कविताएं हैं ।अब प्रकृति की सुन्दरता एवं अचरजों से भला कवयित्री की कलम कैसे अछूती रह सकती है.....

औरआप जानते हैं कवि की कल्पनाशीलता और प्रकृति दर्शन का भी अनोखा ही दृष्टिकोण होता है ।

बादल आवारा हैं पर उपकारी हैं इनके बिना धरती का श्रृंगार एवं सृजन असम्भव है...अद्भुत शब्द संयोजन के साथ गुँथी इस कविता को जितनी बार पढ़ो उतना कम है।

इसके अलावा अन्य कविताएं- ओ, री तितली! , सुनो गिलहरी !, पेड़ ने पूछा चिड़िया से , आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया , चलो नहाएं बारिश में, ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल! ,चाँद फागुन का,  मरुधरा पर, गाय बिन बछड़ा' जैसे मनमोहक एवं बरबस आकर्षित करते ये शीर्षक हैं वैसी ही रचनाएं भी हैं जिन्हें जितनी बार पढ़ो मन ही भरता।

अब चतुर्थ एवं अंतिम भाग के तो कहने ही क्या !मन्त्रमुग्ध करती रचनाएं पाठक को निःशब्द करती हैं मेरी लेखनी में इतना दम ही कहाँ कि इनकी समीक्षा कर सके.......हर एक रचना प्रेम की रूहानियत से सरोवार है...आप स्वयं ही देख लीजिए👇

सब कुछ था पास मेरे

फिर भी कुछ ख्वाब अधूरे थे

तुम संग जो बाँटे,

मन के संवाद अधूरे थे

जीवन से ओझल साथी

ये उमंगों के सिलसिले थे

जब हम तुमसे ना मिले थे।

ये तो तब की रूहानियत है जब मिले भी न थे जब मिले तब कैसा होगा !! सोच भी नहीं सकते...उस "चाँदनगर -सा गाँव तुम्हारा" इस बारे मे तो कहना ही क्या!!!कैसा होगा वो गाँव?है न......

फिर मिलन की वो रात जिसमे चाँद साक्षी हो...और मिलन के बाद  वो बिछड़न 'तुम्हारे दूर जाने पर' फिर तुम्हारे आने का इंतजार 'राह तुम्हारी तकते-  तकते' निष्ठुर पिया के तब भी ना लौटने पर 'मन पाखी की उड़ान'  !!!!

अहा ! सिर्फ शीर्षक ही पूरे लिखूँ तो एक कहानी बन जाय ! पर अपनी बोरिंग सी लेखनी से आप सभी को और बोर नहीं करती.... है न...वैसे भी अब तो आप भी पुस्तक पढ़ ही लेंगे।

देखिये ये रचना क्या कहती है आपसे।👇

निःशब्द हो सहेज लेना

अक्षय स्नेहकोश मेरा

याद रखना ये स्नेहिल पल

भुला देना हर दोष मेरा,

दूर आँखों से हो जाओ

ये सजा कभी मत देना तुम

मेरे साथ यूँ ही रहना तुम

कभी अलविदा ना कहना तुम!!

अंततः मैं कह सकती हूँ कि यदि साहित्य प्रेमी होकर आपने ये पुस्तक*समय साक्षी रहना तुम*ना पढ़ी तो क्या ही पढ़ा।

     👇👇👇

     रहेगी ये खुमारी

    मिटेगी हर दुश्वारी

    भले ना जुड़ सके हम

     जुड़ेंगी रूहें हमारी

     और फिर मिलेंगे

     जीवन के पार ह

   *समय साक्षी रहना तुम*

      🙏🙏🙏🙏🙏

    जरूर याद रखना दोस्तों!!!

     समय साक्षी रहना तुम

             (कविता संग्रह)

              रचनाकार

             *रेणु बाला*

पुस्तक प्राप्ति हेतु कृपया निम्न लिंक पर सम्पर्क कीजिए 👇👇👇👇

http://samaysakshibook.ultrafunnels.in/

21 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बेहतरीन,विस्तृत एवं सटीक समीक्षा लिखी है आपने प्रिय सुधा जी।
रेणु दी की पुस्तक के हर भाग को कितनी सूक्ष्मता से आपने उकेरा है सजीव हो उठे सारे पृष्ठ।
निश्चित ही रेणु दी का प्रथम काव्य संग्रह बेशकीमती है।
यूँ तो संग्रह की सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी पर
मुझे बाल कविताओं और प्रेम की भावपूर्ण रचनाओं वाला भाग विशेष रूप से पसंद आया।
आपकी समीक्षा रूचिकर लगी बहुत सारी बधाई स्वीकार करें मेरी।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता जी!सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु ।आपको समीक्षा रूचिकर लगी तो श्रम साध्य हुआ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

रेणु जी की पुस्तक की प्रतीक्षा तो दीर्घकाल से थी। अब पूर्ण हुई है। इसे शीघ्रातिशीघ्र पढ़ना है। आपकी समीक्षा न केवल पुस्तक का एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करती है वरन ऐसी जिज्ञासा जगाती है इसके प्रति कि इसका पाठक इस काव्य-पुस्तक का पारायण किए बिना रह ही न सके।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सरस समीक्षा

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी! प्रोत्साहन हेतु...समीक्षा की तरफ अपना ये प्रथम प्रयास है आप जैसे प्रबुद्ध समीक्षक की सराहना और समर्थन पाकर तसल्ली मिल रही है...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पुस्तक की विस्तृत व्याख्या । आपके लिखे पुस्तक परिचय ने पाठक को पुस्तक पढ़ने के लिए प्रेरित कर दिया है । रेणु की प्रथम काव्य पुस्तक के लिए उसको ढेर सारी बधाई ।
आपके द्वारा दिये सुंदर परिचय के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।

मन की वीणा ने कहा…

प्रिय सुधाजी साधुवाद सहित हृदय से बधाई , रेणु बहन की पुस्तक की आपने जिस ढंग से समीक्षा की है वो सचमुच प्रसंशा के योग्य है,ऐसा लगता है किसी पुस्तक के प्राण तत्वों पर किसी कुशल शिल्पकार ने सुनहरी नक्काशी कर के बहुमूल्य रत्नों से सजाया हो।
पुनः बधाई आपकी अप्रतिम समीक्षा के लिए।
प्रिय रेणु बहन के लेखन की मैं सदा से प्रसंशक रही हूँ उनकी लेखनी में निर्मल सरिता का प्रवाह हैं, संगीत है खनक है ।
रेणु बहन आपका संग्रह "समय साक्षी रहना तुम" साहित्य जगत में धूम मचा दे यही कामना है और
समय साक्षी रहेगा इसका।
रेणु बहन आपको आपके पहले संग्रह की सफलता के लिए अनंत बधाई,हार्दिक शुभकामनाएं ।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी! अभिभूत हूँ आपकी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर।बहुत बहुत शुक्रिया।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.कुसुम जी ! आपकी प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँपहली बार लिखी मेरी इस समीक्षा में मुझे संशय था कि इस अमूल्य निधि के मूल्यांकन को मेरी लेखनी कोई कसर न कर दे...।आप जैसे महानुभवियों के उत्साहवर्धन से प्रोत्साहित हूँ । दिल से आभार आपका।🙏🙏🙏🙏

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी, मेरी पुस्तक की भावपूर्ण समीक्षा कर आपने जो पुस्तक की व्याख्या कर रचनाओं के मर्म को पहचाना है , उसके लिए आपका आभार प्रकट करूँ तो इस निश्छल स्नेह की गरिमा खंडित हो जायेगी | हालांकि, हर रचनाकार को अपनी हर रचना शिशुवत होती है और सबके लिए प्रेम होता है पर फिर ही कुछ रचनाएं बहुत ख़ास होती हैं | आपने अपनी अद्भुत मेधा-शक्ति से सदैव ही मेरी रचनाओं का मर्म पहचाना है आज पैंसठ रचनाओं में से आपने वही रचनाएं छाँटी हैं, जो हर लगभग हर पाठक की पसंद रही |सच कहूँ, तो ये रचनाएँ आभासी जगत के प्रांगण में जन्मी और पनपी,सो ये एक कालखंड विशेष की साक्षी हैं |मेरे पास ना छन्द थे ना अलंकार और ना रसाभिव्यक्ति की योग्यता | या फिर कविता की कोई विशेष दक्षता | फिर भी मेरे लेखन को मान देकर मेरे सुधि और उदारमना स्नेही पाठकों ने असाधारण बना दिया जिसके लिए उनकी ऋणी रहूंगी | पुस्तक से जुड़े आपके निष्कलुष भाव अनायास मन और आँखें दोनों नम कर गये | मेरा हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं आपके लिए |

रेणु ने कहा…

प्रिय श्वेता , प्रिय कुसुम बहन ,आदरणीय आलोक जी , प्रिय संगीता दीदी , आदरणीय जितेद्र जी, पग-पग पर आप लोगों के स्नेह और नैतिक सहयोग ने मेरा मनोबल बढ़ाया है और लेखनी को अपार शक्ति दी है | आज आभार शब्दों में नहीं समाता | सभी का सस्नेह अभिनन्दन और अभिवादन |

विश्वमोहन ने कहा…

आपकी इस विलक्षण समीक्षा पर मेरे मन के अनुराग को 'मन की वीणा' ने पहले ही झंकृत कर दिया है। अद्भुत विवेचना। सादर नमन।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

बढ़िया समीक्षा

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से अभिनंदन आपका प्रिय रेणु जी! आपकी सभी रचनाएं सराहनीय हैं
आपको समीक्षा अच्छी लगी मेरा श्रम साध्य हुआ। आपके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

Sudha Devrani ने कहा…

आपके प्रोत्साहन की इस अद्भुत कला को नमन।अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.मुकेश जी !

Kamini Sinha ने कहा…

कुसुम जी की बातों से मैं भी पुरी तरह सहमत हूं सुधा जी, आपकी लेखनी से प्रिय रेणु की कविताओं में चार चांद लग गए। प्रिय रेणु की पुस्तक समीक्षा लिखने की मेरी भी दिली ख्वाहिश थी पर इन दिनों कुछ परिस्थितियों में बुरी तरह उलझी हूं।सो लिख नहीं पाईं और मेरी ये ख्वाहिश अधुरी ही रह गई।
आप दोनों को मेरा ढ़ेर सारा स्नेह और शुभकामनाएं 🙏

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी!आपकी सराहना पाकर प्रोत्साहित हूँ।भगवान से प्रार्थना करूंगी कि वे आपकी उलझने शीघ्र सुलझाएं आगे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो...
सस्नेह आभार।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

वाह ! सुधाजी आपकी कहानी, कविता तो पढ़ती थी, परंतु आज रेणु जी की पुस्तक की सुंदर,सरस और सारगर्भित समीक्षा पढ़ने का अवसर मिला,बहुत सुंदर अहसास होता है, जब आप और रेणु जी जैसी विदुषी अपनी बहनों का साथ हो, मैं भी रेणु जी की इस काव्ययात्रा की साक्षी हूं और उनके लिए निरंतर असीम शुभकामनाएं प्रेषित करती हूं 💐💐🙏🙏

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी! निरन्तर सहयोग हेतु दिल से आभार।

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जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...