रविवार, 21 नवंबर 2021

छूटे छूटता नहीं और टूटे जो तो जुड़ता भी नहीं पहले सा फिर से..

 




Memories dairy
चित्र, साभार pixabay से

फिर से कहाँ शुरू होता है न,

जो छोड़ दिया जाता है उस समय 

कि बाद में करेंगे 

पहले सा फिर से.......

कितना कुछ छूटा सा है न पीछे 

इंतजार में कि कुछ समय 

बाद सब ठीक होने पर

शुरू करेंगे इसे

पहले सा फिर से....


याद है वो नन्हीं प्यारी गुड़िया

घंटो खेले जिससे,

बतियाये और 

खेल - खेल में 

जिसका ब्याह रचाये

फिर एक दिन माँ ने कहा,

"बोर्ड परीक्षा में अच्छे नम्बर 

लाने पर मिलेगी 

एक और गुड़िया" !

इस लालच में बन्द किया उसे,

अलमारी में बनाये उस नन्हें से 

डॉलहाउस में ये कहके कि 

"जल्द ही लौटेंगे आपसे खेलने 

आपके लिए एक और प्यारी सी

 सहेली लेकर

पहले सा फिर से".......


ऐसे ही तो धरे के धरे रह गये न 

बाकियों के भी कंचे, कार्ड 

और भी ना जाने क्या -क्या

जो न खेल पाये कभी उन्हें

पहले सा फिर से ....

और इनकी जगह माँग बैठे 

लैपटॉप या मोबाइल

और भी अच्छी पढ़ाई के नाम से

बहुत समझदार बनके...

 फिर पढ़ते - लिखते ही 

मिले दोस्तों से,...और

कुछ दिन कैसे चढ़ा न

 खुमार दोस्ती का  !

घूमना, फिरना, हँसना, बोलना...

पर ये क्या!

कब एकाकी दौड़ने लगे

हायर एजुकेशन के लिए कि 

समय ही न मिला वैसी दोस्ती का

पहले सा फिर से.....

फिर तो जॉब, शादी,  घर-गृहस्थी 

और ना जाने क्या-क्या जिम्मेवारियाँ

फँसे  ऐसे कि देख तक 

न पाये पीछे मुड़के

पहले सा फिर से....

इतनी लम्बी दौड़ दौड़ते-भागते

एक के बाद एक 

कुछ छोड़ते तो कुछ पाते 

जाने कितनी दूर शायद बहुत दूर 

निकल आये  कि अब

सम्भव ही नहीं 

देखना पीछे मुड़के

उस छूटे हुए को

पहले सा फिर से......


सोचिए कि लौट पड़ें अगर

पीछे बहुत पीछे..... 

जहाँ से शुरू किया था छोड़ना

दौड़ना फिर नया पाना....

क्या शुरू कर पायेंगे

उस छूटे हुए को 

उतनी ही खुशी से

उन्हीं भावों के साथ

पहले सा फिर से....?

शायद नहीं ! कभी नहीं !

खेल-खिलोने तो क्या कोई 

छूटे टूटे रूठे रिश्ते को ही लो

दूरियाँ कब खाइयाँ बनती हैं

कि पटाये नहीं पटती

जोड़े नहीं जुड़ती 

पहले सी फिर से......

कैसा तारतम्य है न

छूटे छूटता नहीं और टूटे जो 

तो जुड़ता भी नहीं 

पहले सा फिर से.....


कहाँ शुरू होता है न 

कुछ भी छोड़ा हुआ

पहले सा फिर से....


पढ़िए  मेरी एक और रचना --

● हाँ ! मैने कुछ रिश्तों को टूटते-बिखरते देखा है


24 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.यशोदा जी रचना साझा करने हेतु।
सादर आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नहीं होता शुरू पहले सा फिर से ........भागमभाग में छूटता जाता है बहुत कुछ कुछ नया करने की चाह या ज़रूरत ,मुड़ने नहीं देती पीछे . बेहतरीन लिखा .

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत अपना सा लगा आपका सृजन । कहाँ मिलता है वह बचपन गुड़िया और कंचे । जीवन की आपाधापी में बहुत कुछ छूट जाता है हाथों से..., बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ।



Sudha Devrani ने कहा…

सादर आभार एवं धन्यवाद आ.संगीता जी!अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद मीना जी रचना पसंद कर प्रोत्साहन हेतु।
सस्नेह आभार।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

यथार्थ चित्रण

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

मन को छू गई रचना सुधा जी, पहले सा कुछ भी नहीं हो पाता,जीवन एक नया जाल बुनवाता जाता है,और हम उसी में उलझते जाते हैं । पहले सा फिर से कुछ नहीं कर पाते..सच.. सुंदर रचना ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपने जो कहा, उसे मैंने अपने मन की गहराई में महसूस किया और अभी भी कर रहा हूँ। और क्या कहूँ? शायद कुछ कहने की ज़रूरत है भी नहीं।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.विभा जी!
सादर आभार।

विश्वमोहन ने कहा…

वाह!!! अंतर्मन को भिगोती रचना!

अनीता सैनी ने कहा…

बेहतरीन जीवन दर्शन।
सराहनीय सृजन आदरणीय सुधा दी जी।
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार जितेन्द्र जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आलोक.जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय अनीता जी!

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२५-११-२०२१) को
'ज़िंदगी का सफ़र'(चर्चा अंक-४२५९ )
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद प्रिय अनीता जी! मेरी रचना चर्चा मंच में सम्मिलित करने हेतु
सस्नेह आभार।

मन की वीणा ने कहा…

सुधाजी बहुत ही गहन रचना जैसे हम सब की कहानी आपने अपनी जुबानी लिख दी।
और ये अंत कहां है आज के दिन तक अभी के पल तक हम कितने काम सोचते हैं कल, या फुर्सत होते ही करते हैं और वो बस ठंडे बस्ते में चले जाते हैं मन की अथक सोचों की तरह।
लाजवाब! सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.कुसुम जी आपका समर्थन हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देता है
सादर आभार।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है आपने ..
जो एक बार छूट जाता है वो हाथ नहीं आता ... समय आने भी नहीं देता इसलिए जो है उसे कास के पकडे रखना ही ठीक होता है ... बचपन की गहरी यादों को ले कर बहुत ही सुन्दर भावों में पिरोया है इस रचना को आपने ...
लाजवाब सिर्फ लाजवाब ...

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका प्रोत्साहन हेतु।

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