अपनों को परखकर यूँ परायापन दिखाते हो
पराए बन वो जाते हैं तो आंसू फिर बहाते हो
न झुकते हो न रुकते क्यों बातें तुम बनाते हो
उन्हें नीचा दिखाने को खुद इतना गिर क्यों जाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
अपनों को परखकर......
मिले रिश्ते जो किस्मत से निभाना है धरम अपना
जीत लो प्रेम से मन को यही सच्चा करम अपना
तुम्हारे साथ में वो हैं तो हक अपना जताते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो।
अपनों को परखकर ......
कोई रिश्ता जुड़ा तुमसे निभालो आखिरी दम तक
सुन लो उसके भी मन की, सुना लो नाक में दम तक
बातें घर की बाहर कर, तमाशा क्यों बनाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
अपनों को परखकर......
ये घर की है तुम्हारी जो, उसे घर में ही रहने दो
कमी दूजे की ढूँढ़े हो, कमी अपनी भी देखो तो
बही थी प्रेम गंगा जो, उसे अब क्यों सुखाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
अपनों को परखकर....
चले घर त्याग करके जो, तो जाने दो न रोको तुम
जहाँ खुश हैं रहें जाकर, न जाके उनको टोको तुम
क्यों जाने वालों को घर की राह फिर फिर दिखाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
अपनों को परखकर....
चित्र साभार गूगल से...
46 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया सुधाजी। आइना दिखाती सार्थक रचना के लिए आपको बधाई।
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
गली हमने कहा था तुम तो दुनिया छोड़ जाते हो (अज्ञात)
ये घर की है तुम्हारी जो, उसे घर में ही रहने दो
कमी दूजे की ढूँढ़े हो, कमी अपनी भी देखो तो
बही थी प्रेम गंगा जो, उसे अब क्यों सुखाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।
वाह! 'अपनों को परखकर यूँ परायापन दिखाते हो'।बहुत सुंदर।
हृदयतल से धन्यवाद आ.विरेन्द्र जी!
सादर आभार।
सादर आभार एवं धन्यवाद सर!
अत्यंत आभार ज्योति जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
वाह!सुधा जी ,बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 10 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर धन्यवाद शुभा जी!
अत्यंत आभार आलोक जी!
पाँच लिंको के प्रतिष्ठित मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद दिव्या जी!
सादर आभार।
सहृदय धन्यवाद कामिनी जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु...
सस्नेह आभार।
सुन्दर सृजन
सारगर्भित अति यथार्थ परक रचना प्रिय सुधा जी।
बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद।
सादर।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी मेरी रचना को प्रतिष्ठित चर्चा मंच पर साझा करने हेतु....
सस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता जी!उत्साहवर्धन हेतु....।
चले घर त्याग करके जो, तो जाने दो न रोको तुम
जहाँ खुश हैं रहें जाकर, न जाके उनको टोको तुम - - सुन्दर सृजन।
मिले रिश्ते जो किस्मत से निभाना है धरम अपना
जीत लो प्रेम से मन को यही सच्चा करम अपना
बहुत सुंदर भाव...
बहुत सुंदर रचना ...
चले घर त्याग करके जो, तो जाने दो न रोको तुम
जहाँ खुश हैं रहें जाकर, न जाके उनको टोको तुम
क्यों जाने वालों को घर की राह फिर फिर दिखाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो
..सारगर्भित पंक्तियाँ..।भावपूर्ण सुंदर रचना..।
चले घर त्याग करके जो, तो जाने दो न रोको तुम
जहाँ खुश हैं रहें जाकर, न जाके उनको टोको तुम
क्यों जाने वालों को घर की राह फिर फिर दिखाते हो
पराये बन वो जाते हैं तो आँसू फिर बहाते हो।।
बढ़िया कविता
साधुवाद,
डॉ. वर्षा सिह
वाह बहुत सुंदर रचना।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आदरणीय सर!
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आ.शरद सिंह जी!
हार्दिक धन्यवाद आ. जिज्ञासा जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हृदयतल से धन्यवाद आ.वर्षा जी!
सादर आभार।
सहृदय धन्यवाद सखी!
सुन्दर प्रस्तुति
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.ओंकार जी!
भावपूर्ण रचना
बहुत सुंदर और गहन बातें कही हैं आपने कविता के माध्यम से, बिल्कुल सदुपदेशों सी ।
यथार्थ पर सार्थक भाव चिंतन।
अभिनव सृजन।
सहृदय धन्यवाद कुसुम जी!
सस्नेह आभार आपका।
लाजवाब
बहुत सुंदर
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.माथुर जी!
बहुत सुंदर
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मनोज जी!
इतना उत्कृष्ट काव्य-सृजन सुधा जी ! प्रशंसा के लिए उपयुक्त शब्द ही नहीं मिल रहे ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.माथुर जी
इसलिए शायद अपनों को कभी नहीं परखना चाहिए ... लगे भी तो भूल जाना चाहिए पर परखने से रिश्ते टूट जाते हैं ...
घर की बात चार दिवारी से क्यों निकले ... निकली तो अनेक रूप ले लेती है ...
हर छंद नयी सीख, एक आधार लिए है जो बहुत ज़रूरी है जीवन में ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
हार्दिक धन्यवाद आ.नासवा जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है...
सादर आभार।
इतनी बात जो समझ में आ जाए तो जीवन अर्थपूर्ण हो जाए ।
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