आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
वाह!सुधा जी ,बहुत सुंदर हायकु सृजन ।
जवाब देंहटाएंआत्मीय आभार शुभा जी!
हटाएंबेहतरीन और लाजवाब हाइकु सुधा जी!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी!
हटाएंवाह!लाजवाब हाइकु दी।
जवाब देंहटाएंसभी सराहनीय
शरद भोर~
बादलों के ऊपर
बैठी बिल्ली..वाह!
हार्दिक आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर हायकू, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंबहुत सुंदर हाइकु
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार सखी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 26 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआत्मिक आभार एवं धन्यवाद,आ.यशोदा जी! मेरी रचना को ब्लॉग "पाँच लिंको का आनंद में साझा करने हेतु...।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम जी!
हटाएंवाह ! क्या बात है
जवाब देंहटाएंआत्मिक आभार एवं धन्यवाद आ.सर!
हटाएंशरद भोर~
जवाब देंहटाएंबादलों के ऊपर
बैठी बिल्ली
वाह! सुंदर अभिव्यक्ति
हृदयतल से आभार सधु जी!
हटाएंबेहतरीन हायकू
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद सर!
हटाएंसुन्दर सृजन - नमन सह।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद सर!
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२८-११-२०२०) को 'दर्पण दर्शन'(चर्चा अंक- ३८९९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंबिंब समीपता सुन्दर बन पड़ा है । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आ.अमृता जी!
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। बहुत खूब। आपको बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.विरेन्द्र जी!
हटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुंदर हायकू...
अत्यंत आभार आ. शरद सिंह जी!
हटाएंशरद भोर~
जवाब देंहटाएंबादलों के ऊपर
बैठी बिल्ली
ये विशेष अच्छा लगा। वैसे सारे हायकू अच्छे हैं।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद, सखी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर हाइकु,प्रकृतिक बिंबों के साथ।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी!
हटाएंबेहतरीन कविताएं
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.वर्षा जी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर हैं सभी हाइकू ...
जवाब देंहटाएंकुछ शब्दों में दूर की गहरी बात समेट ली है आपने ... बहुत सुन्दर ...