तन में मन है या मन में तन ?

ये मन भी न पल में इतना वृहद कि समेट लेता है अपने में सारे तन को, और हवा हो जाता है जाने कहाँ-कहाँ ! तन का जीव इसमें समाया उतराता उकताता जैसे हिचकोले सा खाता, भय और विस्मय से भरा, बेबस ! मन उसे लेकर वहाँ घुस जाता है जहाँ सुई भी ना घुस पाये, बेपरवाह सा पसर जाता है। बेचारा तन का जीव सिमटा सा अपने आकार को संकुचित करता, समायोजित करता रहता है बामुश्किल स्वयं को इसी के अनुरूप वहाँ जहाँ ये पसर चुका होता है सबके बीच। लाख कोशिश करके भी ये समेटा नहीं जाता, जिद्दी बच्चे सा अड़ जाता है । अनेकानेक सवाल और तर्क करता है समझाने के हर प्रयास पर , और अड़ा ही रहता है तब तक वहीं जब तक भर ना जाय । और फिर भरते ही उचटकर खिसक लेता वहाँ से तन की परवाह किए बगैर । इसमें निर्लिप्त बेचारा तन फिर से खिंचता भागता सा चला आ रहा होता है इसके साथ, कुछ लेकर तो कुछ खोकर अनमना सा अपने आप से असंतुष्ट और बेबस । हाँ ! निरा बेबस होता है ऐसा तन जो मन के अधीन हो। ये मन वृहद् से वृहद्तम रूप लिए सब कुछ अपने में समेटकर करता रहता है मनमानी । वहीं इसके विपरीत कभी ये पलभर में सिकुड़कर या सिमटकर अत्यंत सूक्ष्म रूप में छिपक...
बालमन की जिज्ञासु प्रवृत्ति पर अनावश्यक डांट-डपट के स्थान पर शिक्षक और अभिभावकों को दायित्व बोध कराती बहुत सुन्दर लघुकथा.
जवाब देंहटाएंरचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर समीक्षा हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
हटाएंसुधा दी, यह कड़वी सच्चाई है कि लोग इसके बारे में बात ही नहीं करना चाहते। लेकिन आजकल सोशल मीडिया की वजह से बच्चों को अधकचरा ज्ञान मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन पर मेरी रचना साझा करने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. यशोदा जी!
हटाएंशब्द का चयन सही नही हुआ
जवाब देंहटाएंपीरियड और पीरियड्स मे जमीन आसमान का फर्क है
सुधार कर लीजिए
सादर
आदरणीय यशोदा जी मैने यहाँ पीरियड के दो मायने रखे हैं एक जिसके बारे में लड़कियां बात कर रही हैं पीरियड्स। और एक जिसे राहुल ने समझा क्लास-पीरियड...।
हटाएंआपने शब्द चयन ठीक करने का सुझाव दिया मैं समझ नहीं पायी कहाँ सुधार करना चाहिए शीर्षक में या सभी जगह...? मेरे हिसाब से तो द्विअर्थी और संदेहास्पद शब्द पीरियड सही लिखा है फिर भी यदि आपको लगा हो तो जरूर कहीं कुछ कसर होगी कृपया अर्थ स्पष्ट करते हुए मार्गदर्शन करें...।
और नासमझी के लिए क्षमा कीजिएगा🙏🙏🙏
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जवाब देंहटाएंयथार्थ पर आधारित सटीक लेखन काश टीचर थोड़ी समझदारी दिखाती तो ये नौबत नहीं आती बारह साल का बालक मन ऐसी अबोध बातें करें ये सहज है बस टीचर ने समझने कि प्रयास ही नहीं किया।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन सुधा जी।
जी, कुसुम जी! कई बार नासमझी होती है और कभी लड़कियों के प्रति अतिसंवेदनशीलता भी लड़कोंं से बेरूखी का कारण बन रही है कई बार लड़कियों की छोटी सी शिकायत पर बिना जाने परखे लड़कों को सजा दे दी जाती है...
हटाएंस्कूल में तो क्या घर या समाज में कहीं भी...
रचना पर विमर्श करती सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
अबोध मन तो जिज्ञासा से भरा होता। बहुत सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार सखी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को पाँच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंबालमन में उठते प्रश्नों का निवारण अवश्य है अध्यापक एवं माता-पिता बच्चों के प्रति सकरात्मक रखें। माँ की भूमिका सराहनीय उकेरी है आपने आदरणीय दीदी। बहुत ही अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद एवं आभार अनीता जी!
जवाब देंहटाएंशानदार रचना । मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी!
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी से सहमत।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील विषय और बाल मनोविज्ञान पर विमर्षशील प्रस्तुति।
सादर
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार माथुर जीरचना का सार स्पष्ट करने हेतु।
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बोहोत अच्छा लेख लिखा है आपने प्रेरणादायक सुविचार
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद निलेश माहेश्वरी जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
संवेदनशील विषय पर बहुत सहज लिखा गया है बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार, राकेश जी!
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंएक संवेदनशील विषय पर बहुत ही सुंदर लेख। हाँ, शिक्षकों और माता -पिता, दोनों को ही बच्चों की जिज्ञासा का ठीक से समाधान करना चाहिए और क्रोधित होने से पहले , उनसे पूरी बात जान लेनी चाहिए पर दुःख की बात की ऐसा सदैव नहीं होता।
साथ ही साथ हमें लड़कों को भी इस विषय पर मर्यादित रूप से थोड़ा ज्ञान देना चाहिए , आखिर ऐसे कठिन समय में लड़कियों को भी ऐसे लड़के चाहिए जो उनके प्रति संवेदनशील हों। इसी से शायद लड़कियों के प्रति इस समय जो अछूत और अपवित्रता की भावना उतपन्न हुई है, वह भी मिटे। सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनंता जी!
हटाएंआपकी सुन्दर एवं सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।