बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

चित्र
बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

पीरियड

                      


techers lesson

"पीरियड ! कौन सा"? राहुल ने जैसे ही कहा लड़कियाँ मुँह में हाथ रखकर हा!..कहते हुए एक दूसरे को देखने लगी, 
राहुल-  "अरे!क्या हुआ ? अभी नेहा किस पीरियड की बात कर रही थी"? 
रश्मि(गुस्से में )- "शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए, अभी मैम को बताते हैं। "
सभी लड़कियाँ क्लासटीचर से राहुल की शिकायत करने चली गयी और मैम को सब बताते हुए बोली कि कल भी इसने नेहा के बैग में रखे पैड के बारे में पूछा कि ग्रीन पैकेट में क्या है" ? 
क्लासटीचर ने क्रोधित होते हुए राहुल से पूछा तो उसने सहजता से कहा; "जी मैम! मैंने पूछा था इनसे "।
"बड़े ढ़ीठ हो तुम! गलती का एहसास तक नहीं, अभी तुम्हारे पैरेंट्स को बताती हूँ", कहकर मैम ने उसके घर फोन किया। 
(राहुल अब भी अपनी गलती नहीं समझ पाया ।उसे कक्षा से बाहर खड़ा कर दिया गया)।

उधर फोन सुनकर उसके पैरेंट्स सब काम-काज छोड़ हड़बड़ाकर स्कूल पहुँचे।  
राहुल की माँ-"मैम!क्या हुआ मेरे बेटे को?वो ठीक तो है न" ?
टीचर-"जी!वह तो ठीक है, लेकिन उसकी हरकतें ठीक नहीं हैं, बिगड़ रहा है आजकल । लड़कियों के बैग चैक करता है,उन्हें पीरियड्स के बारे में पूछता है"। 
(टीचर की शिकायत पर राहुल कुछ सकुचा गया)।
राहुल के पापा-  "क्या ये सच है ? राहुल" !
राहुल (धीमें स्वर में) ---"जी,पापा ! पर"..
(जोरदार थप्पड़ की आवाज से पूरी कक्षा गूँज उठी)।
तभी राहुल की माँ ने उसके पापा का हाथ पकड़कर रोकते हुए मैम से निवेदन किया कि उन्हें बेटे से अकेले में बात करने की आज्ञा दें।और राहुल को बरामदे में ले गयी।
थोड़ी ही देर में आकर सब से बोली कि  "इसने नेहा का बैग नोटबुक लेने के लिए उसी के कहने पर खोला।और उसमें ग्रीन पैकेट देखकर पूछा कि इसमें क्या है?... मतलब खाने की कौन सी चीज है"।
"इसने लड़कियों को फुसफुसाते सुना कि पीरियड है, ध्यान रखना! किसी को पता न चले।तो इसने उनसे पूछा कि कौन सा पीरियड? मतलब किस सबजैक्ट का पीरियड"?
"क्योंकि बारह साल का राहुल अभी उस पीरियड्स के बारे में नहीं जानता।जिसे इसी उम्र में लड़कियाँ जान जाती हैं"।
सच जानकर टीचर का सिर पश्चाताप से झुक गया...।

                                 चित्र साभार गूगल से......














टिप्पणियाँ

  1. बालमन की जिज्ञासु प्रवृत्ति पर अनावश्यक डांट-डपट के स्थान पर शिक्षक और अभिभावकों को दायित्व बोध कराती बहुत सुन्दर लघुकथा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर समीक्षा हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!

      हटाएं
  2. सुधा दी, यह कड़वी सच्चाई है कि लोग इसके बारे में बात ही नहीं करना चाहते। लेकिन आजकल सोशल मीडिया की वजह से बच्चों को अधकचरा ज्ञान मिल रहा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी ज्योति जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सांध्य दैनिक मुखरित मौन पर मेरी रचना साझा करने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. यशोदा जी!

      हटाएं
  4. शब्द का चयन सही नही हुआ
    पीरियड और पीरियड्स मे जमीन आसमान का फर्क है
    सुधार कर लीजिए
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय यशोदा जी मैने यहाँ पीरियड के दो मायने रखे हैं एक जिसके बारे में लड़कियां बात कर रही हैं पीरियड्स। और एक जिसे राहुल ने समझा क्लास-पीरियड...।
      आपने शब्द चयन ठीक करने का सुझाव दिया मैं समझ नहीं पायी कहाँ सुधार करना चाहिए शीर्षक में या सभी जगह...? मेरे हिसाब से तो द्विअर्थी और संदेहास्पद शब्द पीरियड सही लिखा है फिर भी यदि आपको लगा हो तो जरूर कहीं कुछ कसर होगी कृपया अर्थ स्पष्ट करते हुए मार्गदर्शन करें...।
      और नासमझी के लिए क्षमा कीजिएगा🙏🙏🙏

      हटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. यथार्थ पर आधारित सटीक लेखन काश टीचर थोड़ी समझदारी दिखाती तो ये नौबत नहीं आती बारह साल का बालक मन ऐसी अबोध बातें करें ये सहज है बस टीचर ने समझने कि प्रयास ही नहीं किया।
    सार्थक सृजन सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, कुसुम जी! कई बार नासमझी होती है और कभी लड़कियों के प्रति अतिसंवेदनशीलता भी लड़कोंं से बेरूखी का कारण बन रही है कई बार लड़कियों की छोटी सी शिकायत पर बिना जाने परखे लड़कों को सजा दे दी जाती है...
      स्कूल में तो क्या घर या समाज में कहीं भी...
      रचना पर विमर्श करती सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  7. अबोध मन तो जिज्ञासा से भरा होता। बहुत सुंदर लघुकथा

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार एवं धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को पाँच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।

      हटाएं
  9. बालमन में उठते प्रश्नों का निवारण अवश्य है अध्यापक एवं माता-पिता बच्चों के प्रति सकरात्मक रखें। माँ की भूमिका सराहनीय उकेरी है आपने आदरणीय दीदी। बहुत ही अच्छी लघुकथा।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. सहृदय धन्यवाद एवं आभार अनीता जी!

    जवाब देंहटाएं
  11. शानदार रचना । मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

    जवाब देंहटाएं
  12. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी!

    जवाब देंहटाएं
  13. अनीता सैनी जी से सहमत।
    संवेदनशील विषय और बाल मनोविज्ञान पर विमर्षशील प्रस्तुति।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार माथुर जीरचना का सार स्पष्ट करने हेतु।
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  14. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद निलेश माहेश्वरी जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  15. संवेदनशील विषय पर बहुत सहज लिखा गया है बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  16. आदरणीया मैम,
    एक संवेदनशील विषय पर बहुत ही सुंदर लेख। हाँ, शिक्षकों और माता -पिता, दोनों को ही बच्चों की जिज्ञासा का ठीक से समाधान करना चाहिए और क्रोधित होने से पहले , उनसे पूरी बात जान लेनी चाहिए पर दुःख की बात की ऐसा सदैव नहीं होता।
    साथ ही साथ हमें लड़कों को भी इस विषय पर मर्यादित रूप से थोड़ा ज्ञान देना चाहिए , आखिर ऐसे कठिन समय में लड़कियों को भी ऐसे लड़के चाहिए जो उनके प्रति संवेदनशील हों। इसी से शायद लड़कियों के प्रति इस समय जो अछूत और अपवित्रता की भावना उतपन्न हुई है, वह भी मिटे। सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनंता जी!
      आपकी सुन्दर एवं सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

पा प्रियतम से प्रेम का वर्षण

आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है