पूनम के चाँद आज तुम उदास क्यों?
चित्र साभार गूगल से
पूनम के चाँद आज तुम उदास क्यों ?
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
फाग के रंग भी तुमको न भा रहे,
होली हुड़दंग से क्यों जी चुरा रहे ?
धरा के दुख से हो इतने उदास ज्यों !
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
होलिका संग दहन होंगी बुराइयां,
पट भी जायेंगी जातिवाद खाइयां ।
क्रांति इक दिन यहाँ जरूर आयेगी !
यकीं करो धरा फिर मुस्करायेगी !
खो रहे हो चाँद ऐसे आश क्यों.....?
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
कोरोना भय से आज विश्व रो रहा,
सनातनी संस्कृति जब से खो रहा ।
सनातन धर्म आज जो अपनायेगा!
कोरोना भय उसे न यूँ सतायेगा।
वैदिक धर्म पे करो विश्वास यों !
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
पूनम के चाँद आज तुम उदास क्यों ?
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
टिप्पणियाँ
मैं जो रचना पोस्ट कर रहा हूँ इसमें कई फिल्मी गाने छिप हैं। गानों के नाम तथा उनके फिल्म के नाम बताने हैं।
होल के हुड़दंग में, पी के भंग मैं
गोरी के गाल से गुलाल चुरा लूँ।
रंग बरसे तो भींगे चुनर वाली
अंग से अंग मैं साजन लगा लूँ।
आज ना छोड़ेंगे हमजोली
खेलेंगे सब मिल होली।
नीला पीला हरा गुलाबी
रंग सभी ले आली रे आली।
जोगी जी धीरे-धीरे, होली खेले रघुवीरा।
कान्हा खेले राधा के संग, रंग बड़ा अलबेला।
बोली गोरी आजा सारे, मल दे गुलाल मोहे।
ओ भोले भोले सूरत वाले, दूँगी पलट गाली तोहे।
होली के इतने सारे गाने अलग अलग फिल्मों के...
अच्छा रंग जमाया है आपने...
अनन्त शुभकामनाएं आपको।
सादर आभार।
आपको भी होली की अनन्त शुभकामनाएं।
सादर आभार।
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों.....?
बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी ।
अनुपम।
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों.....?
फाग के रंग भी तुमको न भा रहे,
होली हुड़दंग से क्यों जी चुरा रहे ?
धरा के दुख से हो इतने उदास ज्यों !
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों ?
आपकी लेखनी की विशेषता है यथार्थ वादी चित्रण।
बहुत सुंदर लेखन सुधा जी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार।
सस्नेह आभार....।
सादर आभार।
आपको भी होली की अनन्त शुभकामनाएं।
सादर आभार।
सस्नेह आभार आपका।
सादर आभार।
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
पर आपकी काव्य रस धारा निर्विरोध है ... सुंदर रचना और समय अनुसार ... बहुत बधाई फागुन के रंगों की ...
आपको भी बधाई एवं अत्यन्त आभार।
सादर
पढ़ें- कोरोना