सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ....


hello spring

                     चित्र : साभार Shutterstock से



ऐ रितुराज वसंत ! तुम तो बहुत खुशनुमा हो न !!!
आते ही धरा में रंगीनियां जो बिखेर देते हो !
बिसरकर बीती सारी आपदाएं 
खिलती -मुस्कराती है प्रकृति, मन बदल देते हो,
सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।

हैं जो दुखियारे, जीते मारे -मारे
कुछ उनकी भी सुन लो, कुछ दुख तुम ही हर लो,
पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तेरे रंगीन नजारे, आँखों को तो भाते हैं ।
पर  लब ज्यों ही खिलते हैं, आँसू भी टपक जाते हैं,
अधरों की रूठी मुस्कानो को हंसने की वजह दे दो !
ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तेरी ये शीतल बयार, जख्मों को न भाती है
भूले बिसरे घावों की,पपड़ी उड़ जाती है,
उन घावों पर मलने को, कोई मलहम दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

तरसते है जो भूखे, दो जून की रोटी को
मधुमास आये या जाये, क्या जाने वे तुझको,
आने वाले कल की,उम्मीद नयी दे दो !
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी,  शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को,  एहसास मधुर दे दो !
ऐ वसंत !  तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

खिल जायेंं अब सब चेहरे, हट जायें दुख के पहरे
सब राग - बसंती गायें, हर्षित मन सब मुस्कुराएं,
आये अमन-चैन की बहारें, निर्भय जीवन कर दो 
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।



पढ़िए बसंत ऋतु पर दोहे

टिप्पणियाँ

  1. पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो...
    ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
    बहुत खूब......, लोक कल्याण के भावों से लबरेज अप्रतिम रचना सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका हृदयतल से धन्यवाद,मीना जी!
      सादर आभार....

      हटाएं
  2. वाह सुधा जी बहुत कोमल और सुंदर भावों वाली सुंदर रचना ।प्रभु आपकी सभी मनोकामनाएं फलीभूत करे।
    बहुत सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद, कुसुम जी
      सस्नेह आभार...

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद, शुभा जी !
      सस्नेह आभार....

      हटाएं
  4. सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो.........
    ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।
    आपकी कलम से निकली इस उत्कृष्ट रचना की जितनी भी तारीफ करूँ, कम होगी। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय सुधा देवरानी जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, पुरुषोत्तम जी !

      हटाएं
  5. अब को कुछ नया कर दो .......अबकी सबको खुशियों की वजह दे दो ,बहुत खूब सुधा जी

    जवाब देंहटाएं
  6. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रितु जी !

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया
    सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
    तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
    छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......
    ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद, रविन्द्र जी !
      सादर आभार...

      हटाएं
  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. आपका हृदयतल से आभार श्वेता जी मेरी रचना को विशेषांक में जगह देने के लिए...

    जवाब देंहटाएं
  10. सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
    तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
    छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......बहुत खूब ,लाजवाब

    जवाब देंहटाएं

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