चित्र : साभार Shutterstock से...
ऐ रितुराज वसंत ! तुम तो बहुत खुशनुमा हो न !!!
आते ही धरा में रंगीनियां जो बिखेर देते हो.....
बिसरकर बीती सारी आपदाएं..........
खिलती -मुस्कराती है प्रकृति, मन बदल देते हो,
सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो.........
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।
हैं जो दुखियारे, जीते मारे -मारे........
कुछ उनकी भी सुन लो, कुछ दुख तुम ही हर लो,
पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो...
पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो...
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
तेरे रंगीन नजारे, आँखों को तो भाते हैं......
तेरे रंगीन नजारे, आँखों को तो भाते हैं......
पर लब ज्यों ही खिलते हैं, आँसू भी टपक जाते हैं,
अधरों की रूठी मुस्कानो को हंसने की वजह दे दो......
ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
तेरी ये शीतल बयार, जख्मों को न भाती है......
भूले बिसरे घावों की,पपड़ी उड़ जाती है,
उन घावों पर मलने को, कोई मलहम दे दो.......
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
तरसते है जो भूखे, दो जून की रोटी को......
मधुमास आये या जाये, क्या जाने वे तुझको,
आने वाले कल की,उम्मीद नयी दे दो.........
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
खिल जायेंं अब सब चेहरे, हट जायें दुख के पहरे.....
सब राग - बसंती गायें, हर्षित मन सब मुस्कुराएं,
आये अमन-चैन की बहारें, निर्भय जीवन कर दो....
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
ऐ वसंत! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
तेरी ये शीतल बयार, जख्मों को न भाती है......
भूले बिसरे घावों की,पपड़ी उड़ जाती है,
उन घावों पर मलने को, कोई मलहम दे दो.......
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
तरसते है जो भूखे, दो जून की रोटी को......
मधुमास आये या जाये, क्या जाने वे तुझको,
आने वाले कल की,उम्मीद नयी दे दो.........
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
खिल जायेंं अब सब चेहरे, हट जायें दुख के पहरे.....
सब राग - बसंती गायें, हर्षित मन सब मुस्कुराएं,
आये अमन-चैन की बहारें, निर्भय जीवन कर दो....
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
15 टिप्पणियां:
पतझड़ से झड़ जायें उनके दुख,कोंपल सुख की दे दो...
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
बहुत खूब......, लोक कल्याण के भावों से लबरेज अप्रतिम रचना सुधा जी ।
वाह सुधा जी बहुत कोमल और सुंदर भावों वाली सुंदर रचना ।प्रभु आपकी सभी मनोकामनाएं फलीभूत करे।
बहुत सुंदर रचना।
वाह!!सुधा जी ,बहुत सुंदर !!
सुनो न ! अब की कुछ तो नया कर दो.........
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो।
आपकी कलम से निकली इस उत्कृष्ट रचना की जितनी भी तारीफ करूँ, कम होगी। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय सुधा देवरानी जी।
अब को कुछ नया कर दो .......अबकी सबको खुशियों की वजह दे दो ,बहुत खूब सुधा जी
आपका हृदयतल से धन्यवाद,मीना जी!
सादर आभार....
बहुत बहुत धन्यवाद, कुसुम जी
सस्नेह आभार...
हार्दिक धन्यवाद, शुभा जी !
सस्नेह आभार....
उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, पुरुषोत्तम जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रितु जी !
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया
सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......
ऐ वसंत ! तुम सबको खुशियों की वजह दे दो ।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदयतल से आभार श्वेता जी मेरी रचना को विशेषांक में जगह देने के लिए...
बहुत बहुत धन्यवाद, रविन्द्र जी !
सादर आभार...
सरहद पे डटे जिनके पिय, विरहिणी की दशा क्या होगी
तेरी शीतल बयार भी, शूलों सी चुभती होगी,
छू कर विरहा मन को, एहसास मधुर दे दो......बहुत खूब ,लाजवाब
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