बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

इम्तिहान - "जिन्दगी का "





book with many question mark signs

उम्मीदें जब टूट कर बिखर जाती है,
अरमान दम तोड़ते यूँ ही अंधेरों में ।
कंटीली राहों पर आगे बढ़े तो कैसे ?
शून्य पर सारी आशाएं सिमट जाती हैं ।

विश्वास भी स्वयं से खो जाता है,
निराशा के अंधेरे में मन भटकता है।
जायें तो कहाँ  लगे हर छोर बेगाना सा ,
जिन्दगी भी तब स्वयं से रूठ जाती है।

तरसती निगाहें  सहारे की तलाश में ,
आकर सम्भाले कोई ऐसा अजीज चाहते हैं ।
कौन वक्त गँवाता है , टूटे को जोड़ने में
बेरुखी अपनों की और भी तन्हा कर जाती है ।

बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
कोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।

उस पल जो बाँध लें, खुद को अपने में
इक ज्योत नजर आती मन के अँधेरे में....
हौसला रखकर मन में जो आशा जगाते हैं,
इक नया अध्याय तब जीवन में पाते हैं ।।


               


चित्र : साभार Shutterstock से...






टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना साझा करने के लिए...
    सस्नेह आभार...।

    जवाब देंहटाएं
  3. उस पल जो बाँध लें, खुद को अपने में
    इक ज्योत नजर आती मन के अँधेरे में....
    हौसला रखकर मन में जो आशा जगाते हैं,
    इक नया अध्याय तब जीवन में पाते

    बहुत खूब....., लाज़बाब सृजन सुधा जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ कामिनी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका...

      हटाएं
  4. उम्मीद और विश्वास दीप जलता रहे
    तम जीवन से मोम-सा पिघलता रहे
    ---
    सुंदर सकारात्मक सृजन सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ श्वेता जी!बहुत ही सुन्दर पंक्तियों से उत्साहवर्धन हेतु...
      सहृदय धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  5. बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
    कोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
    बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
    वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ सखी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका...

      हटाएं
  6. बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
    कोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
    बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
    वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।

    सार्थक सामयिक लेखन

    जवाब देंहटाएं
  7. संगीता स्वरूप12 जून 2021 को 9:48 am बजे

    बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
    कोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
    बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
    वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सटीक लिखा है । ऐसे समय धीरज की ज़रूरत है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एशं आभार आ. संगीता जी!

      हटाएं

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