आई है बरसात (रोला छंद)

अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित रोला छंद आया सावन मास, झमाझम बरखा आई। रिमझिम पड़े फुहार, चली शीतल पुरवाई। भीनी सौंधी गंध, सनी माटी से आती। गिरती तुहिन फुहार, सभी के मन को भाती ।। गरजे नभ में मेघ, चमाचम बिजली चमके । झर- झर झरती बूँद, पात मुक्तामणि दमके । आई है बरसात, घिरे हैं बादल काले । बरस रहे दिन रात, भरें हैं सब नद नाले ।। रिमझिम पड़े फुहार, हवा चलती मतवाली । खिलने लगते फूल, महकती डाली डाली । आई है बरसात, घुमड़कर बादल आते । गिरि कानन में घूम, घूमकर जल बरसाते ।। बारिश की बौछार , सुहानी सबको लगती । रिमझिम पड़े फुहार, उमस से राहत मिलती । बहती मंद बयार , हुई खुश धरती रानी । सजी धजी है आज, पहनकर चूनर धानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏 पढ़िए बरसात पर एक और रचना निम्न लिंक पर ● रिमझिम रिमझिम बरखा आई
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना साझा करने के लिए...
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार...।
उस पल जो बाँध लें, खुद को अपने में
जवाब देंहटाएंइक ज्योत नजर आती मन के अँधेरे में....
हौसला रखकर मन में जो आशा जगाते हैं,
इक नया अध्याय तब जीवन में पाते
बहुत खूब....., लाज़बाब सृजन सुधा जी
आभारी हूँ कामिनी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
हटाएंउम्मीद और विश्वास दीप जलता रहे
जवाब देंहटाएंतम जीवन से मोम-सा पिघलता रहे
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सुंदर सकारात्मक सृजन सुधा जी।
आभारी हूँ श्वेता जी!बहुत ही सुन्दर पंक्तियों से उत्साहवर्धन हेतु...
हटाएंसहृदय धन्यवाद आपका।
बस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
जवाब देंहटाएंकोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।
बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी
आभारी हूँ सखी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
हटाएंबस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
जवाब देंहटाएंकोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।
सार्थक सामयिक लेखन
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!
हटाएंबस यही पल अपना इम्तिहान होता है ....
जवाब देंहटाएंकोई सह जाता है , कोई बैठे रोता है ।
बिखरकर भी जो निखरना चाहते है....
वे ही उस असीम का आशीष पाते हैं ।
सटीक लिखा है । ऐसे समय धीरज की ज़रूरत है ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एशं आभार आ. संगीता जी!
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