जाने कब खत्म होगा ,ये इंतज़ार......
तिस पर अनवरत बरसती
ये मुई बरसात
टपक रही मेरी झोपड़ी
की घास-फूस
भीगती सिकुड़ती
मिट्टी की दीवारें
जाने कब खत्म होगा
ये इन्तजार ?
कब होगी सुबह..?
और मिटेगा
ये घना अंधकार !
थम ही जायेगी किसी पल
फिर यह बरसात
तब चमकेंगी किरणें रवि की
खिलखिलाती गुनगुनी सी ।
सूख भी जायेंगी धीरे-धीरे
ये भीगी दीवारें
गुनगुनायेंगी गीत आशाओं के,
मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ ।
झूम उठेगी इसकी घास - फूस की छत
बहेगी जब मधुर बयार
फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम
फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम
यूँ पूनम का इंतज़ार !
जब घुप्प रात्रि में भी
चाँद की चाँदनी में
साफ नजर आयेगी
मेरी झोपड़ी, अपने अस्तित्व के साथ ।
चित्र - "साभार गूगल से"
टिप्पणियाँ
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
सुंदर सृजन