बुधवार, 13 सितंबर 2017

जाने कब खत्म होगा ,ये इंतज़ार......



old broken house in a plateau surrounded with water from all sides

 ये अमावस की अंधेरी रात
तिस पर अनवरत बरसती
       ये मुई बरसात
 टपक रही मेरी झोपड़ी
      की घास-फूस 
      भीगती सिकुड़ती
       मिट्टी की दीवारें 
     जाने कब खत्म होगा
          ये इन्तजार ?
      कब होगी सुबह..?
           और मिटेगा
        ये घना अंधकार !
       थम ही जायेगी किसी पल 
            फिर यह बरसात
      तब चमकेंगी किरणें रवि की 
       खिलखिलाती गुनगुनी सी ।
       सूख भी जायेंगी धीरे-धीरे 
          ये भीगी दीवारें
    गुनगुनायेंगी गीत आशाओं के,
    मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ ।
   झूम उठेगी इसकी घास - फूस की छत
           बहेगी जब मधुर बयार
 फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम 
         यूँ पूनम का इंतज़ार !
      जब घुप्प  रात्रि में भी
         चाँद की चाँदनी में
          साफ नजर आयेगी
  मेरी झोपड़ी,  अपने अस्तित्व के साथ ।

          
                                      
            चित्र - "साभार गूगल से"

6 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बरसात में गरीबो की झोपड़ी में टपकते पानी से उन्हें कितनी तकलीफे होती है ये वो ही समझ सकते है। बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत सुंदर भाव-प्रवण रचना।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
सादर आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब झोपड़ी की छत न चुए तो पूनम है
सुंदर सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!

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