भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

चित्र
सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

जाने कब खत्म होगा ,ये इंतज़ार......



old broken house in a plateau surrounded with water from all sides

 ये अमावस की अंधेरी रात
तिस पर अनवरत बरसती
       ये मुई बरसात
 टपक रही मेरी झोपड़ी
      की घास-फूस 
      भीगती सिकुड़ती
       मिट्टी की दीवारें 
     जाने कब खत्म होगा
          ये इन्तजार ?
      कब होगी सुबह..?
           और मिटेगा
        ये घना अंधकार !
       थम ही जायेगी किसी पल 
            फिर यह बरसात
      तब चमकेंगी किरणें रवि की 
       खिलखिलाती गुनगुनी सी ।
       सूख भी जायेंगी धीरे-धीरे 
          ये भीगी दीवारें
    गुनगुनायेंगी गीत आशाओं के,
    मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ ।
   झूम उठेगी इसकी घास - फूस की छत
           बहेगी जब मधुर बयार
 फिर भूल कर सारे गम करेंंगे हम 
         यूँ पूनम का इंतज़ार !
      जब घुप्प  रात्रि में भी
         चाँद की चाँदनी में
          साफ नजर आयेगी
  मेरी झोपड़ी,  अपने अस्तित्व के साथ ।

          
                                      
            चित्र - "साभार गूगल से"

टिप्पणियाँ

  1. बरसात में गरीबो की झोपड़ी में टपकते पानी से उन्हें कितनी तकलीफे होती है ये वो ही समझ सकते है। बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
      सादर आभार।

      हटाएं
  3. जब झोपड़ी की छत न चुए तो पूनम है
    सुंदर सृजन

    जवाब देंहटाएं

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