बुधवार, 7 जून 2017

कर्तव्य परायणता



diya (candle)

उषा की लालिमा पूरब में
नजर आई.......
जब  दिवाकर रथ पर सवार,
गगन पथ पर बढने लगे.....
निशा की विदाई का समय
निकट था......
चाँद भी तारों की बारात संग
जाने लगे ..........

एक दीपक अंधकार से लडता,
एकाकी खडा धरा पर.....
टिमटिमाती लौ लिए फैला रहा 
प्रकाश तब......
अनवरत करता रहा कोशिश वह
अन्धकार मिटाने की......
भास्कर की अनुपस्थिति में उनके दिये
उत्तदायित्व निभाने की....
उदित हुए दिनकर, दीपक ने मस्तक
अपना झुका लिया......
दण्डवत किया प्रणाम ! पुनः कर्तव्य
अपना निभा लिया......
हुए प्रसन्न भास्कर ! देख दीपक की
कर्तव्य परायणता को......
बोले "पुरस्कृत हो तुम कहो क्या
पुरस्कार दें तुमको".......?
सहज भाव बोला दीपक, देव !
"विश्वास भर रखना"........
कर्तव्य सदा निभाऊंगा, मुझ पर
आश बस रखना.......
उत्तरदायित्व मिला आपसे,कर्तव्य मैं
निभा पाया.......
"कर्तव्य" ही सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है ,
 जो मैने आपसे पाया......

10 टिप्‍पणियां:

मेरी लेखनी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कर्तव्य का बोध कराती सुन्दर रचना

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

सहज भाव बोला दीपक, देव !
"विश्वास भर रखना"........
कर्तव्य सदा निभाऊंगा, मुझ पर
आश बस रखना.......
हाँ सहज भाव से स्वीकार कर्त्तव्य ही सर्वोच्च पुरुस्कार है।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है काश आपका परिचय प्राप्त होता।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई!

शुभा ने कहा…

वाह!सुंदर सृजन सुधा जी ।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद शुभा जी!

मन की वीणा ने कहा…

लाजवाब सुधा जी, सच कहूं तो शब्द नहीं है मेरे पास इस अद्वितीय भावों पर क्या लिखूं बस मन गद गंद हो गया सार्थक भाव सृजन ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी स्नेहिल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु...।
सादर आभार।

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