कर्तव्य परायणता
जब दिवाकर रथ पर सवार,
गगन पथ पर बढने लगे.....
निशा की विदाई का समय
निकट था......
निकट था......
चाँद भी तारों की बारात संग
जाने लगे ..........
जाने लगे ..........
एक दीपक अंधकार से लडता,
एकाकी खडा धरा पर.....
टिमटिमाती लौ लिए फैला रहा
प्रकाश तब......
अनवरत करता रहा कोशिश वह
अन्धकार मिटाने की......
भास्कर की अनुपस्थिति में उनके दिये
उत्तदायित्व निभाने की....
उदित हुए दिनकर, दीपक ने मस्तक
अपना झुका लिया......
दण्डवत किया प्रणाम ! पुनः कर्तव्य
अपना निभा लिया......
हुए प्रसन्न भास्कर ! देख दीपक की
कर्तव्य परायणता को......
बोले "पुरस्कृत हो तुम कहो क्या
पुरस्कार दें तुमको".......?
सहज भाव बोला दीपक, देव !
"विश्वास भर रखना"........
कर्तव्य सदा निभाऊंगा, मुझ पर
आश बस रखना.......
उत्तरदायित्व मिला आपसे,कर्तव्य मैं
निभा पाया.......
"कर्तव्य" ही सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है ,
जो मैने आपसे पाया......
उदित हुए दिनकर, दीपक ने मस्तक
अपना झुका लिया......
दण्डवत किया प्रणाम ! पुनः कर्तव्य
अपना निभा लिया......
हुए प्रसन्न भास्कर ! देख दीपक की
कर्तव्य परायणता को......
बोले "पुरस्कृत हो तुम कहो क्या
पुरस्कार दें तुमको".......?
सहज भाव बोला दीपक, देव !
"विश्वास भर रखना"........
कर्तव्य सदा निभाऊंगा, मुझ पर
आश बस रखना.......
उत्तरदायित्व मिला आपसे,कर्तव्य मैं
निभा पाया.......
"कर्तव्य" ही सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है ,
जो मैने आपसे पाया......
टिप्पणियाँ
"विश्वास भर रखना"........
कर्तव्य सदा निभाऊंगा, मुझ पर
आश बस रखना.......
हाँ सहज भाव से स्वीकार कर्त्तव्य ही सर्वोच्च पुरुस्कार है।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है काश आपका परिचय प्राप्त होता।
सादर आभार।