धन्य-धन्य कोदंड (कुण्डलिया छंद)

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💐 विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं💐 पुरुषोत्तम श्रीराम का, धनुष हुआ कोदंड । शर निकले जब चाप से, करते रोर प्रचंड ।। करते रोर प्रचंड, शत्रुदल थर थर काँपे। सुनकर के टंकार, विकल हो बल को भाँपे ।। कहे सुधा कर जोरि, कर्म निष्काम नरोत्तम । सर्वशक्तिमय राम,  मर्यादा पुरुषोत्तम ।। अति गर्वित कोदंड है,  सज काँधे श्रीराम । हुआ अलौकिक बाँस भी, करता शत्रु तमाम ।। करता शत्रु तमाम, साथ प्रभुजी का पाया । कर भीषण टंकार, सिंधु का दर्प घटाया ।। धन्य धन्य कोदंड, धारते जिसे अवधपति । धन्य दण्डकारण्य, सदा से हो गर्वित अति । सादर अभिनंदन 🙏🙏 पढ़िए प्रभु श्रीराम पर एक और रचना मनहरण घनाक्षरी छंद में ●  आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है

बीती ताहि बिसार दे

 

Story let go

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए ।

ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। 

पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए ।

कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । 

परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।  

ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने लगता है ।

उन यादों के झुरमुट से कुछ खुशियाँ, कुछ अच्छे अनुभव और ज्ञान लेकर झटपट वर्तमान की झोली में डाल नकारात्मक अनुभवों की यादों को लेट गो करके तटस्थ भाव से वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित कर पाएं तो ठीक वरना 'बीती ताहि बिसार दे'  की कहावत ही सही क्योंकि कहीं हमारे अतीत से जुड़ी ये कुछ नकारात्मक यादें हमारे अवेयरनेस को बोझिल कर हमारे आज की खुशियों को भी फीका ना कर दें ।



सादर आभार एवं अभिनंदन आपका 🙏🙏

पढ़िए एक और लेख निम्न लिंक पर

● तन में मन है या मन में तन



टिप्पणियाँ

  1. यादों के झुरमुट से
    कुछ खुशियाँ,
    कुछ अच्छे अनुभव और
    ज्ञान लेकर
    झटपट वर्तमान की झोली में
    डाल नकारात्मक
    अनुभवों की यादों को
    लेट गो करके
    व्वाहहहह
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन यात्रा में खट्टी-मीठी स्मृतियों की पोटलियाँ ही एकमात्र पूँजी ही जो साँसों के साथ खनकती रहती है हमारे मन के गलियारों में आजीवन और समय की बारिश में स्मृतियों की सारी कड़ुवाहट फीकी पड़ जाती है बस इतनी सी बात है।
    बहुत सुंदर जीवन दर्शन लिखा है आपने।
    सस्नेह।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छा लिखा है। मन का काम ही है बीते समय में भटकना।

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक सारगर्भित अभिव्यक्ति सुधा जी , साथाही संदेश प्रद।
    हार्दिक बधाई सुंदर आलेख के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक चिंतन के साथ जीने के कला ही जीवन की नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर करती हैं । आपके प्रेरक विचार हृदय के क़रीब लगे । बहुत सुन्दर पोस्ट ।

    जवाब देंहटाएं

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