अपने हिस्से का दर्द
चित्र साभार pixabay से... |
अपनों की महफिल में
हँसते -मुस्कराते
हिल - मिल कर
खुशियाँ मनाते सभी अपने
खुशियों से चमकती - दमकती
इन खूबसूरत आँखों के बीच
नजर आती हैं, कहीं कोई
एक जोड़ी आँखें
सूनी - सूनी पथराई सी ।
ये सूनी पथराई सी आँखें
कोरों का बाँध बना
आँसुओं का सैलाब थामें
जबरन मुस्कराती हुई
ढूँढ़ती हैं कोई
एकांत अंधेरा कोना
जहाँ कुछ हल्का कर सके
पलकों का बोझ।
बोझिल पलकों संग
ये जोड़ी भर आँखें
झुकी - झुकी और
सहमी सी
बामुश्किल छुपाती हैं
कोरों के छलकाव से
आँसुओं संग बहता दर्द ।
हाँ दर्द जिसे नहीं दिखाना चाहती
उसके उन अपनों को
जिन्हें अपना बनाने और
उनका अपनापन पाने में
लगी हैं उसकी
वर्षों की मेहनत।
जानती है अपनों को
अपना दर्द बता कर
मिलेगी उसे संवेदना
पर साथ में उठेंगे सवाल भी।
और जबाब में उधड़ पड़ेंगी
वे सारी गाँठे जिनमें
तुलप-तुलप कर
बाँधे हैं उसने दर्द
अपने हिस्से के...
हर एक दर्द की
अपनी अलग कहानी
किसी की बेरुखी, बेदर्दी तो
किसी की अनदेखी से
पलती बढ़ती
कोई लाईलाज बीमारी ।
नहीं चाहती वह कि उसके
अपने उठायें कभी
अपनी कथनी एवं करनी के
पछतावे का दर्द ।
पेडू को पट्टे से बाँध
कमर कस के होंठ भींचकर
पिघले बहते
दर्द को आँखों में समेट
शामिल होती हैं
घर की खुशियों में
गृहलक्ष्मी बन।
और झेलती है अकेले
अपने हिस्से का दर्द ।
इन रुँआसी आँखों
और नकली मुस्कान
के बीच का फर्क
कोई समझ ही नहीं पाता
या समझना ही नहीं चाहता।
और फिर "रोनी सूरत वाली"
बहु,भाभी,ताई ,चाची
का उपनाम लिए
और भी आसान होता है सहना
उसके लिए
अपने हिस्से का दर्द ।
क्योंकि तब नहीं पूछता कोई
आँसुओं का कारण या
दर्द की वजह
सबको लगता है
शक्ल ही रोनी है।
फिर ये भी मान लेती हैं कि
खुद ही सहना होता है
अपने हिस्से का दर्द ।
टिप्पणियाँ
आपकी कविता ने स्त्री मनोविज्ञान और मर्म को सही जगह स्पर्श किया है। परिवार से मिली उपेक्षा और मन में दबती रही पीड़ा ही किसी लाइलाज बीमारी के रूप में फूटती है बाहर।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
और नकली मुस्कान
के बीच का फर्क
कोई समझ ही नहीं पाता
या समझना ही नहीं चाहता।
सुधा दी,यहीं एक सवाल ऐसा है जिसका जबाब मिलना शायद नामुमकिन है। नारी की वेदना को लोग समझ ही कहाँ पाते है?
बहुत सुंदर।
संवेदनशील रचना।
सुधा जी इस अविस्मरणीय सृजन पर आ0 महीयसी जी की
कालजयी रचना याद आ गई।
"स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा, श्वासों में स्वप्न पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय बयार पली,
मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना, पद चिह्न न दे जाता जाना, सुधि मेरे आगम की जग में, सुख की सिहरन बन अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यहीउमड़ी कल थी मिट आज चली!"
महादेवी वर्मा।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
महीयसी महादेवी वर्मा जी की कालजयी रचना की याद मेरे साधारण से सृजन से...आपके आशीर्वचनों से मेरा सृजन सार्थक हो गया आ. कुसुम जी ! आपकी प्रतिक्रिया पाने बाद मैंने अपने ही लिखे को फिर से पढ़ा । क्या महसूस किया शब्दों में बयां नहीं कर सकती । मेरे लेखन को सार्थक बना मुझे असीम प्रोत्साहन एवं खुशी देने हेतु दिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
सस्नेह 🙏🙏🙏🙏
और नकली मुस्कान
के बीच का फर्क
कोई समझ ही नहीं पाता..... घुटन की वेदना या फिर वेदना का घुटन! नि:शब्द!!!
अपना दर्द बता कर
मिलेगी उसे संवेदना
पर साथ में उठेंगे सवाल भी।
और जबाब में उधड़ पड़ेंगी
वे सारी गाँठे जिनमें
तुलप-तुलप कर
बाँधे हैं उसने दर्द
अपने हिस्से के...समर्पण के बाद रिश्तों से मिलती उपेक्षा एक घुटन देती है, परंतु इस घुटन से निकल हमे एक नया,नवीन रास्ता बनाना ही पड़ता है, और वही रास्ता हमे सुदृढ़ और मजबूत बनाता है,सकारात्मकता एक दिन इस सुंदर सार्थक रचना का सृजन करती है,जिसे मैंने अभी अभी पढ़ा । मन को छूती
एक उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई सखी🌹🌹❤️❤️
मन भर आया पढ़कर सुधा जी।
हँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
अनकहे दर्द की लकीरों को भींचे
जीना पड़ता है क्योंकि जीना है
विष समझो या अमृत गसे पीना है
-----
सस्नेह।
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
विरोध पहली घटना पर हो
मार्मिक रचना
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
बधाई
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ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपको भी अनंत शुभकामनाएं विश्व महिला दिवस एवं महाशिवरात्रि पर्व की ।