पुस्तक समीक्षा - 'कासे कहूँ'
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मन की महकी गलियों में,
बस दो पल हमें भी घर दो ना!
लो चंद मोती मेरी पलकों के
मुस्कान अधर में भर लो ना!
प्यार और मनुहार से अधरों में मुस्कान अर्पण कर 'कासे कहूँ , हिया की बात' तक विविधता भरी संवेदना के चरम को छूती पूरी इक्यावन कविताओं का संग्रह ब्लॉग जगत के स्थापित हस्ताक्षर एवं जाने -माने साहित्यकार पेशेवर इंजीनियर आदरणीय 'विश्वमोहन जी' के द्वितीय संग्रह 'कासे कहूँ' के रूप में साहित्य जगत के लिए अनमोल भेंट है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आदरणीय विश्वमोहन जी एवं उनकी पुस्तक के विषय में विभिन्न शिक्षाविद् भाषाविद् एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों के आशीर्वचन पुस्तक को और भी आकर्षक बना रहे हैं।
प्रस्तुत संग्रह की प्रथम कविता 'सपनों का साज' ही मन को बाँधकर सपनों की ऐसी दुनिया में ले जाता है कि पाठक का मन तमाम काम-धाम छोड़ इसकी अन्य सभी रचनाओं के आस्वादन के लिए विवश हो जाता है।
चटक चाँदनी की चमचम
चंदन का लेप लगाऊँ
हर लूँ हर व्यथा थारी
मन प्रांतर सहलाऊँ।
आ पथिक, पथ में पग-पग-
सपनों के साज सजाऊँ।
सहज सरल भाषा में आँचलिकता की मिठास एवं अद्भुत शब्दसंयोजन पाठक को विस्मित कर देता है।
जज्बातों की खूबसूरती एवं विभिन्न अलंकारों से अलंकृत आपकी समस्त रचनाओं में भावों की प्रधानता को तो क्या ही कहने!!!
प्राची से पश्चिम तक दिन भर
खड़ी खेत में घड़ियाँ गिनकर।
नयन मीत में टाँके रहती,
तपन प्यार का दिनभर सहती।
क्या गुजरी उस सूरजमुखी पर,
अँधियारे जब डाले पहरे।
तुम क्या जानो , पुरुष जो ठहरे!
'तुम क्या जानो, पुरुष जो ठहरे' कविता में कवि की नारीभावना उजागर हुई है।
नारी के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान इनकी कविताओं में यत्र-तत्र पल्लवित एवं पुष्पित हुआ है
'जुलमी फागुन! पिया न आयो। में नारी के प्रति संवेदना हो या फिर 'नर-नपुंसक' में युग-युग से नारी शोषण व अत्याचार पर दम्भी कायर पुरुषत्व को फटकार।👇👇
राजनीति या राजधरम यह,
कायर नर की अराजकता है।
सरयू का पानी भी सूखा,
अवध न्याय का स्वाँग रचता है
हबस सभा ये हस्तिनापुर में,
निरवस्त्र फिर हुई नारी है।
अन्धा राजा, नर-नपुंसक,
निरलज ढीठ रीत जारी है!
आपके दृष्टिकोण में नारी के प्रति संवेदना ही नहींअपितु अपार श्रद्धा भी है जो आपकी कविता 'नर-नारी' और 'परमब्रह्म माँ शक्ति-सीता' एवं समस्त सृजन में भी साफ दृष्टिगोचर होती है
कवि नारी को पुरुष से श्रेष्ठ एवं अत्यधिक सहनशील मानते हुए कहते हैं कि
मातृ-शक्ति, जनती-संतति,
चिर-चैतन्य, चिरंतन-संगति।
चिन्मय-आलोक, अक्षय-ऊर्जा,
सृष्टि सुलभ सुधारस सद्गति।
प्रतीक बिम्ब सब राम कथा में,
कौन है हारा और कौन जीता।
राम भटकता जीव मात्र है
परमब्रह्म माँ शक्ति-सीता।
माँ शक्ति-सीता परमब्रह्म एवं श्रीराम जीव मात्र!
नारी के प्रति श्रद्धा श्रेष्ठता और सम्मान के ऐसे उदाहरण आपके सृजन में यत्र-तत्र उद्धृत हैं ।
कवि हमेशा सीमाएं तोड़ता है।चाहे वह आर्थिक हो राजनीतिक हो या फिर सामाजिक।
'कासे कहूँ' में अपने बेबाक एवं धारदार लेखन से सम सामयिकी, मीडिया, सियासत और अन्य व्यवस्थाओं की धांधलेबाजियों पर करारा कटाक्ष करते हुए कवि कहते हैं कि..
कैसलेस, डिजिटल समाज,
मंदी....फिर...आर्थिक बुलंदी।
जन-धन आधार माइक्रो एटीएम
आर्थिक नाकेबन्दी!जय नोटबंदी!!
ऐसे ही आह नाजिर! और वाह नाजिर!में देखिये...
जहाँ राजनीति का कीड़ा है
वहीं भयंकर पीड़ा है।
जय भारत जय भाग्य-विधाता,
जनगण मनधन खुल गया खाता।
दिग्भ्रमित लेखकों और पत्रकारों पर कटाक्ष है 'पुरस्कार वापसी'...
कलमकार कुंठित- खंडित है
स्पंदनहीन हुआ दिल है।
वाद पंथ के पंक में लेखक,
विवेकहीन मूढ़ नाकाबिल है।।
दल-दलदल में हल कर अब,
मिट जाने का अंदेशा है।
साहित्य-सृजन अब मिशन नहीं,
पत्रकार-सा पेशा है।।
डेंगू काल में चिकित्सा व्यवस्था के गिरते स्तर पर करारी चोट...
'प्लेटलेट्स की पतवार फँसी 'डेंगी'में।
धन्वन्तरी के धनिक अनुयायी
चिकित्सा की दुकान
पर बैठे व्यवसायी
कुत्सित-चित्त
धिक-धिक पतित।
कोरोना काल की त्रासदी और लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा तथा शहरी एवं सरकारी उपेक्षा पर...
छुप गये सारे सियार , अपनी माँद में।
अगर पहले ही कोई कह देता
"आओ ,रहो ,ठहरो
अब तक तमने खिलाया
अब हमारी भी थोड़ी खाओ
वह 'नीति-निष्ठुरवा' नहीं न बकबकाता
कवि समाज में फैली बुराइयों रूढियों में जकड़ी जिंदगियों और दरकती मानवीय संवेदनाओं से व्यथित होकर कहते हैं
गाँजे का दम
हाकिम की मनमानी।
दारू की तलाशी
खाकी की चानी
कुटिल कौम ! कैसी फितरत!में सियासत का कच्चा चिट्ठा खोलते हुए कवि कहते हैं..
सियासत की सड़ी सड़कों पर,
गिद्ध चील मंडराते हैं।
बच्चों की लाशों को जुल्मी,
नोंच -नोंच कर खाते हैं।
तमाम विसंगतियों और विडम्बनाओं में भी कवि आशा का दामन नहीं छोड़ते कवि के अनुसार 'आशा का बीज' कहीं न कहीं अंकुरित हो ही जाता है.....
मरा मानव
पर जागी मानवता
दम भर छलका करूणा का अमृत
थामने को बढ़े आतुर हाथ,
और बाँटने को
आशा का नया बीजन।
समवेत स्वर।
सृजन!सृजन!!सृजन!!!
विलुप्त होती गौरैया हो या भोर-भोरैया कवि की लेखनी से कोई भी विषय अछूता नहीं है...फिर रिश्तों की तो बात ही क्या...
'बाबूजी' में देखिये मध्यमवर्गीय परिवार का ऐसा हृदयस्पर्शी शब्दचित्रण भावुक कर देता है...
कफ और बलगम नतमस्तक!
अरमान तक घोंटने में माहिर,
जेब की छेद में अँगुली नचाते
पकता मोतियाबिंद, और पकाते
सपनों के धुँधले होने तक!
बाबूजी की आँखों में, रोशन अरमान
बच्चों के बनने का सपना!
ऐसे ही समूचे देश के 'बापू' को एक हृदयस्पर्शी आवाहन ...
उठ न बापू ! जमना तट पर ,
क्या करता रखवाली?
'गरीबन के चूल्हा' /पानी - पानी/ बैक वाटर/बेटी बिदा/मृग मरीचिका/रिश्तों की बदबू/आस्तीन का साँप /पंथ-पंथ मौसेरे भाई'दुकान से दूर । साहित्यकार,'भूचाल, फुटपाथ, जनता जनार्दन की जय आदि जैसे बरबस आकर्षित करते शीर्षक हैं वैसी ही अप्रतिम एवं गहन चिंतनपरक रचनाएं भी।
ऐसी कविताएं भावनाओं की प्रसव पीड़ा के उपरान्त ही जन्म लेती हैं जिनमें सृजनात्मकता एवं गहन अनुभूति का चरमोत्कर्ष होता है।
भोर भिनसारे,कउआ उचरे,
छने-छने,मन भरमात।
जेठ दुपहरिया, आग लगाये,
चित चंचल , अचकात।
कासे कहूँ, हिया की बात!
अनेकानेक विसंगतियों की विकलता विविधतापूर्ण सृजनात्मकता आकुल कवि मन कहे तो किससे कहे। अतः ,'कासे कहूँ' शीर्षक पुस्तक को सार्थकता प्रदान करता है।
'कासे कहूँ' पूर्ण साहित्यिक पुस्तक पाठक को अपने काव्याकर्षण में बाँध सकने में पूर्णतः सक्षम है।
फिर भी समीक्षा के नियमों के तहत पुस्तक की आलोचना करूँ तो मेरे हिसाब से
●अनुक्रमणिका में कविताओं कोअलग-अलग भागों में(विषयवस्तु के आधार पर)बाँटते हुए क्रमबद्ध किया होता, शायद ज्यादा बेहतर होता।
● कविताओं में लिखे आँचलिक भाषा के शब्दों का हिन्दी अर्थ जैसे पुस्तक के अंतिम पृष्ठ में दिये हैं हर कविता के अंत में होते तो रचनाएं सभी को समझने में और भी सुलभ होती।
इसके अलावा काव्य सृजन की दृष्टि से सभी कविताएं बेहद उत्कृष्ट हैं भाषा में प्रवाह है कविता में लय एवं शिल्प सौन्दर्य है।खूबसूरत कवरपृष्ठ के साथ प्रस्तुत संग्रह सभी काव्य प्रेमियों एवं साहित्य सेवियों के लिए अत्यंत संग्रहणीय एवं पठनीय पुस्तक है
यदि आप समीक्षा पढ़ रहे हैं तो संग्रह भी अवश्य पढ़िएगा ताकि इस समीक्षा की सत्यता को जाँच सकें।
उत्तम संग्रह हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
पुस्तक : कासे कहूँ
लेखक : © विश्वमोहन
प्रकाशक :
विश्वगाथा, सुरेन्द्रनगर - 363 002, गुजरात
मूल्य: 150/-
आप निम्न लिंक से पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं
https://www.amazon.in/Kase-kahu-Vishwamohan/dp/8194261090/ref=sr_1_1?crid=3GKSK4ZBVWNWF&keywords=kase+kahu&qid=1640337321&s=books&sprefix=kase+kahu+%2Cstripbooks%2C183&sr=1-1
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टिप्पणियाँ
आदरणीय विश्वमोहन जी की प्रतिभा से भला ब्लॉग जगत में कौन अपरिचित है? उनकी काव्य-रचनाओं का संग्रह निश्चय ही साहित्य-प्रेमियों के निमित्त एक संजोकर रखने योग्य धरोहर होगा। 'कासे कहूँ' की आपने समीक्षा ही नहीं की है, एक वातायन खोला है अपने पाठकों के लिए जिससे वे इस काव्य-कोष की एक विहंगम दृष्टि प्राप्त करें तथा इस सम्पूर्ण सृजन के आस्वादन हेतु आतुर हो जाएं। शुभकामनाएं विश्वमोहन जी को तथा आभार आपका सुधा जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी!
हटाएंसादर आभार।
ब्लॉग-जगत की उत्तम पाठिका, अत्यंत उदार टिप्पणीकार और लेखकों को अपने प्रोत्साहन का पीयूष-पान कराने वाली सधी समीक्षक सरस्वती-सुता सुधा जी का मेरी पुस्तक का सूक्ष्म विश्लेषण मेरे लिए परम सौभाग्य का विषय है। विशेष रूप से समीक्षा के उत्तर खंड में लिखे गए आलोचना के शब्द मेरे लिए 'सुधा' सदृश ही हैं। आपके ये आशीर्वचन हमारे भविष्य के लेखन-पथ को महत्वपूर्ण प्रकाश-स्तम्भ के समान सदैव आलोकित करते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी समीक्षा की सराहना कर उत्साहवर्धन हेतु.....ये आपका बड़प्पन है कि आलोचना को भी सकारात्मक लेते हैं परन्तु मैं नियमावली के तहत की हुई इस आलोचना के लिए संकुचित हूँ आप और आपका सृजन मेरे लिए हमेशा पथप्रदर्शक रहे हैं...ऐसे में आलोचना..छोटे मुँह बड़ी बात है.. क्षमाप्रार्थी 🙏🙏🙏🙏
हटाएंसादर आभार।
पुस्तक की सार्थकता और सफलता के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं💐
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार डबराल भाई!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी! मेरी रचना को चर्चा मंच पर चयन हेतु...
हटाएंसस्नेह आभार।
प्रिय सुधा जी, आदरणीय विश्वमोहन जी की सुंदर पुस्तक ' कांसे कहूं 'की सांगोपांग समीक्षा कर आपने अतुलनीय समीक्षात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है | उनका लेखन ब्लॉग जगत में अपनी पहचान आप रखता है और उस विद्वतापूर्ण लेखन का अवलोकन और मूल्यांकन सहज कार्य नहीं है |'उनके पास भाषा का ज्ञान और संस्कार दोनों हैं | कांसे कहूँ ' मैंने भी महीनों पहले मंगवाई थी और एक समीक्षा भी लिखी थी पर कई अपरिहार्य कारणों से ब्लॉग पर ना डाल सकी | आपकी समीक्षा पढकर लगा ये बहुत जरूरी है कि हम जो पुस्तक पढ़ते हैं उस पर बेबाक राय प्रकट करना अनिवार्य है , जिसके लिए जैसे भी हो समय देना बहुत जरूरी है | आपने समीक्षा के जरिये पुस्तक के सभी पक्षों को बड़ी बेबाकी से रखा है |सभी विषयों पर लिखी गयी रचनाएँ मन को छूती भी है और कचोटती भी है | साहित्य -जगत में इस पुस्तक का उचित मूल्यांकन हो यही कामना है | आपको हार्दिक आभार इस प्रयास विशेष के लिए और विश्वमोहन जी को पुस्तक हेतु शुभकामनाएं| |
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद प्रिय रेणु जी!उत्साहवर्धन हेतु...। बस यही संकोच कि समीक्षा विभिन्न मापदंडों पर खरी उतरेगी या नहीं ..आपकी सराहना पाकर चैन मिला...अत्यंत आभार आपका।
हटाएंबहुत विस्तृत और सारगर्भित समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी का लेखन जितना स्तरीय है उसकी एक झलक इतनी कमाल है तो पुस्तक दिलचस्प होने वाली है ...
बहुत बहुत बधाई आपको और विश्वमोहन जी को ...
जी, नासवा जी ! वाकई विस्तृत तो है परन्तु आ.विश्वमोहन जी का लेखन है ही इतना लाजवाब कि क्या छोड़ें क्या लिखें कशमोकश में समीक्षा विस्तृत हो गयी...
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद विस्तृत समीक्षा को समय देकर पढ़ने हेतु।
आपकी लेखनी से सृजित लाजवाब समीक्षा सुधा जी! बहुत बहुत आभार आपका आ. विश्व मोहन जी पुस्तक "कासे कहूँ" की गहन समीक्षा के माध्यम से पाठकों को पुस्तक से परिचित करवाने हेतु।आपको सुन्दर समीक्षा के लिए बहुत बहुत बधाई आ. विश्व मोहन जी को भी “कासे कहूँ” के प्रकाशन के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मीना जी! उत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
पुस्तक के प्रति रुचि जगाती समीक्षा।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!
हटाएंआदरणीय विश्व मोहन जी सर को पुस्तक 'कासे कहूँ' के प्रकाशन पर अनेकानेक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंइनके लेखन की जितनी तारीफ़ की जाए कम ही होगी।
सुधा दी के शब्द पुस्तक के प्रति मोह उत्पन्न करती सराहनीय समीक्षा।
दोनों को हार्दिक बधाई।
सादर स्नेह
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
हटाएंविश्व मोहन जी एक उच्च कोटि के रचनाकार हैं ये सभी ब्लागर और पाठक अच्छी तरह से जानते हैं,उन का भाषा सौष्ठव, शब्दों पर गहरी पकड़, अप्रचलित शब्दों के साथ सुंदर प्रवाह लिए अप्रतिम सृजन, अलंकारों का सांगोपांग प्रयोग, विशेष कर यमक की आलोकित चमक हर दृष्टि से पाठक को विस्मित करती है,
जवाब देंहटाएंवे निःसंदेह शब्दों के जादूगर, भावों के प्रणेता,कुशल शिल्पी है। मैं सदा से गूगल प्लस से उन्हें पढ़ती आई हूँ और उनकी प्रशंसक रही हूँ और आज भी हूँ।
आदरणीय विश्व मोहन जी को उनके इस संकलन के लिए अनंत बधाई एवं शुभकामनाएं।
पुस्तक समीक्षा के बारे में मैं सच निशब्द हूँ, सुधा जी ने सुंदर काव्य फूलों को यथोचित सम्मान देकर उन पर विस्तृत प्रकाश ही नहीं डाला बल्कि एक उत्तम समालोचक की दृष्टि से हर पहलू पर अपनी बेबाक टिप्पणी दी है, जो कि उन्हें एक उत्कृष्ट लेखिका के साथ उत्कृष्ट समालोचक भी बनाती है।
सुधा जी को इस श्र्लाघ्य समीक्षा के लिए साधुवाद एवं बधाई।
पुस्तक की समीक्षा सोने पर सुहागा है जो उस की चमक को द्विगुणित कर रही हैं।
पुनः लेखक और समिक्षिका जी को हृदय से बधाई।।
तहेदिल से धन्यवाद आ. कुसुम जी!आपकी अनमोल सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ ..सादर आभार आपका।
हटाएंवाह लाजबाव समीक्षा, विश्व मोहन जी को अनंत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार भारती जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी!
हटाएंमेरी रचना साझा करने हेतु।
समीक्षा बहुत बहुत सुन्दर और सराहनीय है ।जो काफी कुछ स्पष्ट कर देती है । पीआर अभी एसबी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया हूं । पूरी विवेचना बाद मैं करूंगा ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आ.आलोक जी!
हटाएंसादर आभार।
आदरणीय मैम,
जवाब देंहटाएंआपने विश्वमोहन जी के सृजन को सहजते हुए , उनके अनमोल एक - एक शब्दों के साथ पुर्ण न्याय किया है।
जितनी रोचक उनकी कविताएं है उतनी ही सराहने योग्य एवं सुन्दर आपकी समीक्षा भी है।
अपना स्नेह एवं अनुभव युही साझा करती रहें । आपसे बहुत कुछ सीखना है ।
धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आतिश जी!प्रोत्साहन हेतु।
हटाएंपुस्तक की गहन समीक्षा पढ़ने को मिली ।।समीक्षा के माध्यम से स्पष्ट हो रहा है कि पुस्तक उत्कृष्ट साहित्य का नमूना है । विश्व मोहन जी को जितना पढ़ा है उसके आधार पर कह सकती हूँ कि बेहतरीन समीक्षा की है । विश्व मोहन जी को पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआपको सटीक समीक्षा के लिए साधुवाद ।
हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी! सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहद्विगुणित करने हेतु...
हटाएंसादर आभार।
बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कविता जी!
हटाएंलाजबाव समीक्षा, विश्व मोहन जी की रचनाए मन मोह लेती हैं विश्व मोहन जी को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
जवाब देंहटाएंजवाब दें
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अंकित जी !
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुन्दर समीक्षा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी!
हटाएंविश्व मोहन जी को जितनी बार पढ़ा है उतनी ही बार कुछ नया समझा व सीखा है।
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा करने के अंदाज से इस बुक को पढ़ने का मन करने लगा है।
आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रोहिताश जी!
हटाएंप्रोत्साहन हेतु।
विश्वमोहन जी ने अपनी उत्कृष्ठ रचनाओं से ब्लॉग जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। विश्व मोहन जी पुस्तक "कासे कहूँ" की गहन और सुंदर समिक्षा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं