वृद्धावस्था |
सोच में है थकन थोड़ी,
अक्ल भी कुछ मन्द सी।
अनुभव पुराने जीर्ण से,
बुद्धि भी कुछ बन्द सी।
है कमर झुकी - झुकी ,
बुझे - बुझे से हैं नयन।
हस्त कम्पित कर रहे,
आज लाठी का चयन।
है जुबां खामोश अब,
मन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
पूछने वाले भी अब,
सीख देने आ रहे।
जिंदगी ये गोप्य तेरे,
मन बहुत दुखा रहे।
जन्म से ले ज्ञान पर,
अंत सब बिसराव है।
शून्य से हुआ शुरू,
शून्य ही ठहराव है।।
34 टिप्पणियां:
प्रिय सुधा जी, अक्लमंद इंसानों को अक्ल के मंद बनाने वाले बुढ़ापे का सटीक वर्णन किया है आपने। सच में लगता है जहां से कोई चलता है, वहीं पहुंच जाना उसकी नियति है। सब विश्वास खण्डित होते देखना एक जर्जर काया वाले वृद्धजन को कैसा लगता होगा इसकी कल्पना भी ह्रदय को कम्पित करती है। बहुत मार्मिक चित्रण किया है आपने बुढ़ापे की दारुण दशा का।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने हेतु।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वृद्धावस्था का सटीक वर्णन । अब हम इसी ओर अग्रसर हैं ।
बेहतरीन सृजन ।।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
हृदयतल से धन्यवाद आ.यशोदा जी!मेरी रचना कोमंच पर साझा करने हेतु।
सादर आभार।
जी,आ. संगीता जी! सही कहा आपने अब मध्याह्न ढ़ल रही है हमारी....
तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
जब भी माँ को देखती हूं महसूस करती हूं ये ही भाव आते हैं,
आंखें नम है सुधाजी और सिसकारियां अंतर में उठ के टूट रही है।🙏🏼
अन्तर्मन को छूती, वृद्धावस्था का सटीक चित्रण करती बेहतरीन रचना ।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर सम्मिलित करने हेतु।
जी कुसुम जी! मैं समझ सकती हूँ जब अपनों को इस स्थिति में देखते हैं तो क्या गुजरती है....
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!
गहन रचना...।
शून्य से हुआ शुरू,
शून्य ही ठहराव है।।
–सत्य कथन
सुन्दर रचना
पूछने वाले भी अब,
सीख देने आ रहे।
जिंदगी ये गोप्य तेरे,
मन बहुत दुखा रहे।
वृद्धा अवस्था की स्थिति का सुंदर वर्णन आदरणीय ।
बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
है जुबां खामोश अब,
मन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि सृजन
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.दीपक जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय मनीषा जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ओंकार जी!
बहुत बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय सुधा दी जी।
सादर
बहुत सुंदर सत्य से ओतप्रोत
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.भारती जी!
खूबसूरत प्रस्तुति।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.नितीश जी!
शून्य से चुरू और अंत भी शून्य ...
जीवन का ये चक्र तो हर किसी को पार करना है ... प्रारम्भ है तो अंत तो होना ही है ...
ये बुढापा एक प्रदाव है ... कष्टकारी है पर इसे पार किये बिना शायद जीवन समझ्पाना भी आसान नहीं ...
संवेदनशील भावपूर्ण रचना ...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!
अन्तर्मन को छूती
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