शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

वृद्धावस्था


Oldman hand with stick
वृद्धावस्था
                  चित्र, साभार pixabay से...


सोच में है थकन थोड़ी,

अक्ल भी कुछ मन्द सी।

अनुभव पुराने जीर्ण से,

 बुद्धि भी कुछ बन्द सी।


है कमर झुकी - झुकी ,

बुझे - बुझे से हैं नयन।

हस्त कम्पित कर रहे,

आज लाठी का चयन।


है जुबां खामोश अब,

मन कहीं छूटा सा है।

रुग्ण और क्षीण तन,

विश्वास भी टूटा सा है।


पूछने वाले भी अब,

सीख देने आ रहे।

जिंदगी ये गोप्य तेरे,

मन बहुत दुखा रहे।


जन्म से ले ज्ञान पर,

अंत सब बिसराव है।

शून्य से  हुआ शुरू,

शून्य ही ठहराव है।।


34 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी, अक्लमंद इंसानों को अक्ल के मंद बनाने वाले बुढ़ापे का सटीक वर्णन किया है आपने। सच में लगता है जहां से कोई चलता है, वहीं पहुंच जाना उसकी नियति है। सब विश्वास खण्डित होते देखना एक जर्जर काया वाले वृद्धजन को कैसा लगता होगा इसकी कल्पना भी ह्रदय को कम्पित करती है। बहुत मार्मिक चित्रण किया है आपने बुढ़ापे की दारुण दशा का।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने हेतु।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रचना

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वृद्धावस्था का सटीक वर्णन । अब हम इसी ओर अग्रसर हैं ।
बेहतरीन सृजन ।।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.यशोदा जी!मेरी रचना कोमंच पर साझा करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

जी,आ. संगीता जी! सही कहा आपने अब मध्याह्न ढ़ल रही है हमारी....
तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा

मन की वीणा ने कहा…

जब भी माँ को देखती हूं महसूस करती हूं ये ही भाव आते हैं,
आंखें नम है सुधाजी और सिसकारियां अंतर में उठ के टूट रही है।🙏🏼

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

अन्तर्मन को छूती, वृद्धावस्था का सटीक चित्रण करती बेहतरीन रचना ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर सम्मिलित करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

जी कुसुम जी! मैं समझ सकती हूँ जब अपनों को इस स्थिति में देखते हैं तो क्या गुजरती है....
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

गहन रचना...।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

शून्य से हुआ शुरू,
शून्य ही ठहराव है।।

–सत्य कथन
सुन्दर रचना

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

पूछने वाले भी अब,

सीख देने आ रहे।

जिंदगी ये गोप्य तेरे,

मन बहुत दुखा रहे।

वृद्धा अवस्था की स्थिति का सुंदर वर्णन आदरणीय ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।

Manisha Goswami ने कहा…

है जुबां खामोश अब,
मन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.दीपक जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय मनीषा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ओंकार जी!

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय सुधा दी जी।
सादर

Bharti Das ने कहा…

बहुत सुंदर सत्य से ओतप्रोत

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.भारती जी!

Nitish Tiwary ने कहा…

खूबसूरत प्रस्तुति।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.नितीश जी!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शून्य से चुरू और अंत भी शून्य ...
जीवन का ये चक्र तो हर किसी को पार करना है ... प्रारम्भ है तो अंत तो होना ही है ...
ये बुढापा एक प्रदाव है ... कष्टकारी है पर इसे पार किये बिना शायद जीवन समझ्पाना भी आसान नहीं ...
संवेदनशील भावपूर्ण रचना ...

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!

संजय भास्‍कर ने कहा…

अन्तर्मन को छूती

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...