बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
प्रिय सुधा जी, अक्लमंद इंसानों को अक्ल के मंद बनाने वाले बुढ़ापे का सटीक वर्णन किया है आपने। सच में लगता है जहां से कोई चलता है, वहीं पहुंच जाना उसकी नियति है। सब विश्वास खण्डित होते देखना एक जर्जर काया वाले वृद्धजन को कैसा लगता होगा इसकी कल्पना भी ह्रदय को कम्पित करती है। बहुत मार्मिक चित्रण किया है आपने बुढ़ापे की दारुण दशा का।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने हेतु।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदयतल से धन्यवाद आ.यशोदा जी!मेरी रचना कोमंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
वृद्धावस्था का सटीक वर्णन । अब हम इसी ओर अग्रसर हैं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन ।।
जी,आ. संगीता जी! सही कहा आपने अब मध्याह्न ढ़ल रही है हमारी....
हटाएंतहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर सम्मिलित करने हेतु।
हटाएंजब भी माँ को देखती हूं महसूस करती हूं ये ही भाव आते हैं,
जवाब देंहटाएंआंखें नम है सुधाजी और सिसकारियां अंतर में उठ के टूट रही है।🙏🏼
जी कुसुम जी! मैं समझ सकती हूँ जब अपनों को इस स्थिति में देखते हैं तो क्या गुजरती है....
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
अन्तर्मन को छूती, वृद्धावस्था का सटीक चित्रण करती बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंगहन रचना...।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!
हटाएंशून्य से हुआ शुरू,
जवाब देंहटाएंशून्य ही ठहराव है।।
–सत्य कथन
सुन्दर रचना
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!
हटाएंपूछने वाले भी अब,
जवाब देंहटाएंसीख देने आ रहे।
जिंदगी ये गोप्य तेरे,
मन बहुत दुखा रहे।
वृद्धा अवस्था की स्थिति का सुंदर वर्णन आदरणीय ।
हार्दिक धन्यवाद आ.दीपक जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
हटाएंहै जुबां खामोश अब,
जवाब देंहटाएंमन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि सृजन
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय मनीषा जी!
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार ओंकार जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय सुधा दी जी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर सत्य से ओतप्रोत
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.भारती जी!
हटाएंखूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.नितीश जी!
हटाएंशून्य से चुरू और अंत भी शून्य ...
जवाब देंहटाएंजीवन का ये चक्र तो हर किसी को पार करना है ... प्रारम्भ है तो अंत तो होना ही है ...
ये बुढापा एक प्रदाव है ... कष्टकारी है पर इसे पार किये बिना शायद जीवन समझ्पाना भी आसान नहीं ...
संवेदनशील भावपूर्ण रचना ...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!
हटाएंअन्तर्मन को छूती
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