अब दया करो प्रभु सृष्टि पर
भगवान तेरी इस धरती में
इंसान तो अब घबराता है
इक कोविड राक्षस आकर
मानव को निगला जाता है
तेरे रूप सदृश चिकित्सक भी
अब हाथ मले पछताते हैं
वरदान से इस विज्ञान को छान
संजीवनी पा नहीं पाते हैं
अचल हुआ इंसान कैद
जीवनगति रुकती जाती है
तेरी कृपादृष्टि से वंचित प्रभु
ये सृष्टि बहुत पछताती है
जब त्राहि-त्राहि साँसे करती
दमघोटू तब अट्हास करे !
अस्पृश्य तड़पती रूहें जब
अरि एकछत्र परिहास करे !
तन तो निगला मन भी बदला
मानवता छोड़ रहा मानव
साँसों की कालाबाजारी में
कफन बेच बनता दानव
अब दया करो प्रभु सृष्टि पर
भूलों को अबकी क्षमा कर दो!
कोविड व काले फंगस को
दुनिया से दूर फ़ना कर दो
चित्र साभार;photopin.com से।
टिप्पणियाँ
भगवान तेरी इस धरती में
इंसान तो अब घबराता है
इक कोविड राक्षस आकर
मानव को निगला जाता है
👌👌👌👌👌
अब दया करो प्रभु सृष्टि पर
भूलों को अबकी क्षमा कर दो!
कोविड व काले फंगस को
दुनिया से दूर फ़ना कर दो।
काश, ईश्वर जल्द से जल्द सून ले।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -5-21) को "अब दया करो प्रभु सृष्टि पर" (चर्चा अंक 4076) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी।
मानवता छोड़ रहा मानव
साँसों की कालाबाजारी में
कफन बेच बनता दानव
बहुत सुंदर रचना,बिन प्रभु कृपा के सुखमय जीवन असम्भव। कुछ इंसान इंसानियत भूल गए।
कोविड-19 को या फिर ब्लैक फंगस फ़ना करने के लिए हमको ख़ुद कोशिश करनी होगी.
वैसे भी भगवान उन्हीं की मदद करता है जो कि ख़ुद अपनी मदद करते हैं.
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर धन्यवाद एवं आभार आपका।
भूलों को अबकी क्षमा कर दो!
जी ईश्वर अब सभी भूलों का माफ कर जीवन को दोबारा उसी तरह खूबसूरत बना दे। बहुत अच्छी रचना है आपकी। खूब बधाई
बस सीधे सादे लोग हस्त जोड़ प्रार्थना कर ईश्वर की स्तुति कर के अपने मन को समझाने का प्रयास कर लेते हैं ।
सुंदर प्रार्थना ...
भूलों को अबकी क्षमा कर दो!
कोविड व काले फंगस को
दुनिया से दूर फ़ना कर दो
अब तो प्रभु सुन ले प्रार्थना। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. संगीता जी!
सहृदय धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
मानवता छोड़ रहा मानव
साँसों की कालाबाजारी में
कफन बेच बनता दानव
लाजवाब
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर धन्यवाद एवं आभार।
इश्वर कुछ तो करो अपनी दया दृष्टि सब पर दिखाओ ... बहुत सार्थक, सटीक आयर सामयिक रचना है ...
सादर आभार।
मानवता छोड़ रहा मानव
साँसों की कालाबाजारी में
कफन बेच बनता दानव
सचमुच, इतना बुरा समय तो कभी नहीं देखा सुधाजी। आपने अपनी कविता में हम सबकी वेदना को अभिव्यक्ति दी है।